
Introduction- The Intelligent Investor Book Summary in Hindi
(परिचय)
हेलो दोस्तों, स्वागत है आपका। आज हम The Intelligent Investor Book Summary in Hindi को कवर करेंगे।
द इंटेलिजेंट इन्वेस्टर एक ऐसी किताब है जो हमें समझदारी से इन्वेस्ट यानी निवेश करना सिखाती है। यह बुक पहली बार 1949 में प्रकाशित हुई थी और तब से लेकर आज तक इसे इन्वेस्टर्स के लिए एक बहुत ही उपयोगी बुक माना जाता है। बुक के ऑथर Benjamin Graham हैं जिन्हे फ़ादर ऑफ़ वैल्यू इन्वेस्टिंग कहा जाता है। वह ऐसे स्टॉक्स को खरीदने का सुझाव देते हैं जिनका मूल्य कम है और साथ ही साथ स्पेकुलेशन यानी सट्टेबाजी से बचने के लिए भी कहते हैं। बेंजामिन ग्राहम हमें किसी भी कंपनी की इन्ट्रिंसिक वैल्यू के आधार पर निवेश करने की सलाह देते हैं क्यूंकि उनके अनुसार, इन्ट्रिंसिक वैल्यू कंपनी की असल वैल्यू है।
Part I: Investment vs. Speculation
(निवेश बनाम अटकलें)
“द इंटेलिजेंट इन्वेस्टर” के पहले पार्ट में ऑथर बेंजामिन ग्राहम इन्वेस्टमेंट यानी निवेश और स्पेकुलेशन यानी सट्टेबाजी के बीच अंतर को समझाते हैं। इंटेलीजेंट इन्वेस्टर बनने की दिशा में इस डिफरेंस को समझना ज़रूरी है।

ऑथर बेंजामिन ग्राहम कहते हैं की लॉन्ग टर्म के लिए और अच्छी तरह से रिसर्च और एनालिसिस करने के बाद जो स्टॉक्स ख़रीदे जाते हैं उसे इन्वेस्टमेंट यानी निवेश कहा जाता है। वहीँ दूसरी ओर, अटकलों और अनुमान के आधार पर त्वरित लाभ कमाने की इच्छा के आधार पर स्टॉकस की ख़रीद फ़रोख़्त को स्पेकुलेशन कहते हैं।
ऑथर के अनुसार, निवेश और सट्टेबाजी के बीच मुख्य अंतर इस प्रकार हैं:
- लंबी अवधि तक अपने पास रखने की उम्मीद से स्टॉक खरीदना ही निवेश है। जो निवेशक लंबी अवधि के लिए स्टॉक खरीदते हैं, उनके पैसा कमाने की संभावना अधिक होती है क्योंकि वे बाजार में अल्पकालिक उतार-चढ़ाव से बच सकते हैं।
- सट्टा जल्दी लाभ कमाने की उम्मीद से स्टॉक को खरीदने या बेचने को कहते हैं। जो निवेशक सट्टा लगाते हैं उनके पैसे डूबने की संभावना अधिक होती है क्योंकि बाजार में गिरावट होने पर वो तुरंत स्टॉक बेचने के चक्कर में रहते हैं।
- निवेश सावधानीपूर्वक शोध और विश्लेषण पर आधारित है। जो निवेशक निवेश करते हैं वे उन कंपनियों को समझने के लिए अपना होमवर्क करते हैं जिनमें वे निवेश कर रहे हैं। वे ऐसे शेयरों की भी तलाश करते हैं जिनका मूल्य कम है, जिसका अर्थ है कि वे अपने आंतरिक मूल्य से कम पर कारोबार कर रहे हैं।
- सट्टेबाज़ी अटकलें आशा, अनुमान और त्वरित लाभ कमाने की इच्छा पर आधारित होती हैं। जो निवेशक सट्टा लगाते हैं वे अक्सर अपना होमवर्क नहीं करते हैं और ऐसे स्टॉक खरीद सकते हैं जिनका मूल्य अधिक है।

निवेश निर्णयों में मानव मनोविज्ञान
ऑथर कहते हैं की मनुष्य बहुत ही इमोशनल प्राणी होता हैं, और ये इमोशंस उनके द्वारा लिये गए निवेश निर्णयों को प्रभावित कर सकते हैं। उदाहरण के लिए, जब किसी व्यक्ति पर लालच सवार होता है तो उनके स्टॉक खरीदने की सम्भावना ज़्यादा होता है वहीँ दूसरी ओर जब कोई व्यक्ति भयभीत होता है तो उनके स्टॉक बेचने की संभावना ज़्यादा होती है।
इन्वेस्टमेंट बिहेवियर पर इमोशंस का असर निम्नलिखित तरीकों से देखा जा सकता है:
- डर: जब हम भयभीत या डरे हुए होते हैं, तो हम अपने स्टॉक बेच सकते हैं, भले ही उनका मूल्य कम हो। इससे हमें नुकसान हो सकता है।
- लालच: जब हम लालची होते हैं, तो हम स्टॉक खरीद सकते हैं, भले ही उनका मूल्य अधिक हो। इससे भी हमें नुकसान हो सकता है।
- अति आत्मविश्वास: जब हम अति आत्मविश्वास में होते हैं, तो हम जोखिम भरे इन्वेस्टमेंट डिसिशन ले सकते हैं जो हम सतर्क होते तो नहीं लेते।
आंतरिक मूल्य (Intrinsic Value) पर ध्यान दें
ऑथर कहते हैं की इन्वेस्टर्स को ऐसे शेयर्स के इन्ट्रिंसिक वैल्यू पर ध्यान देना चाहिए जीने वो खरीदने पर विचार कर रहे हैं। इन्ट्रिंसिक वैल्यू कंपनी के एसेट्स, इनकम फ्यूचर प्रॉस्पेक्ट्स पर निकली जाती है और यही उस स्टॉक की असल वैल्यू होती है। जबकि शेयर मार्किट में उस स्टॉक की वैल्यू उसकी इन्ट्रिंसिक वैल्यू से कम या ज़्यादा हो सकती है। इसलिए शेयर ख़रीदते समय उसकी इन्ट्रिंसिक वैल्यू पर फोकस करना चाहिए।
मार्जिन ऑफ़ सेफ्टी
मार्जिन ऑफ़ सेफ्टी या सुरक्षा का मार्जिन, किसी स्टॉक की कीमत और आप उसके लिए कितना भुगतान करते हैं, के बीच के डिफरेंस को दर्शाता है। दुसरे शब्दों में मार्जिन ऑफ़ सेफ्टी किसी एसेट की मार्किट वैल्यू और उसकी इन्ट्रिंसिक वैल्यू के बीच डिफरेंस को दर्शाता है। इन्ट्रिंसिक वैल्यू उस स्टॉक की असल वैल्यू है जो उसके फंडामेंटलस पर आधारित है जबकि मार्किट वैल्यू वह वैल्यू है जिसपर वह स्टॉक मार्किट में कारोबार कर रहा है। सुरक्षा का मार्जिन जितना बड़ा होगा, आप उतना ही कम जोखिम लेंगे। ऑथर कहते है कि आपको केवल तभी स्टॉक खरीदना चाहिए जब उनका मूल्य काफी कम हो, ताकि स्टॉक की कीमत नीचे जाने की स्थिति में आपको राहत मिले।

ऐसे किसी एसेट या स्टॉक को जिसकी मार्किट वैल्यू उसकी इन्ट्रिंसिक वैल्यू से कम हो को undervalued कहा जाता है। ऑथर कहते हैं की स्टॉक सिर्फ तभी खरीदना चाहिए जब उसकी मार्किट वैल्यू काफी कम हो क्यूंकि मार्किट हमेशा इल्लॉजिकल होता है। रिस्क किसी इन्वेस्टमेंट पर पैसे को खोने की सम्भावना को दर्शाता है। जोखिम जितना अधिक होगा, नुकसान की संभावना उतनी ही अधिक होगी। जिन शेयरों का मूल्य काफी कम है, उन्हें खरीदकर निवेशक संभावित नुकसान से खुद को बचा सकते हैं।
Defensive vs. Enterprising Investors
ऑथर कहते हैं की इन्वेस्टर्स अक्सर दो तरह के होते हैं: डिफेंसिव यानी रक्षात्मक और enterprising यानी उद्यमशील।
डिफेंसिव इन्वेस्टर्स केयरफुल होते हैं और कम रिस्क लेते हैं। उनके पोर्टफोलियो में हाई क्वालिटी स्टॉक्स और बांड्स होते हैं और पोर्टफोलियो डाइवर्सिफाइड है। enterprising या उद्यमी इन्वेस्टर्स ज़्यादा रिटर्न की तलाश में जोखिम लेने के अधिक इच्छुक होते हैं। वे व्यक्तिगत स्टॉक या रिस्की एसेट क्लास, जैसे कमोडिटीज़ या कर्रेंसी में इन्वेस्ट करते हैं।
डिफेंसिव इन्वेस्टर्स
- कम जोखिम पसंद करते हैं।
- हाई क्वालिटी स्टॉक और बॉन्ड के डाइवर्सिफाइड पोर्टफोलियो में निवेश करते हैं।
- अपने निवेश को सरल बनाने के लिए इंडेक्स फंड या म्यूचुअल फंड का उपयोग कर सकते हैं।
- बार-बार स्टॉक खरीदने बेचने से बचते हैं।
- इन्वेस्टमेंट को लम्बे समय तक बनाये रखते हैं।
उद्यमशील निवेशक
- ज़्यादा जोखिम लेते हैं।
- व्यक्तिगत स्टॉक या रिस्की एसेट क्लास में निवेश कर सकते हैं।
- स्टॉक्स को अक्सर ख़रीदते या बेचते रहते हैं।
- जब उन्हें लाभ कमाने का अवसर दिखाई देता है तो उनके अपने निवेश को बेचने की अधिक संभावना होती है।
आप किस तरह के निवेशक बनना चाहते हैं ये आपकी व्यक्तिगत परिस्थितियों और जोखिम सहनशीलता पर निर्भर करता है। अगर आप निवेश में नए हैं, तो बेहतर ये होगा की आप रक्षात्मक दृष्टिकोण के साथ शुरुआत करें और अनुभव बढ़ने के साथ धीरे-धीरे अधिक उद्यमशील बनें।
डायवर्सिफिकेशन
डायवर्सिफिकेशन या विविधीकरण अपने पैसे को डिफरेंट एसेट क्लास में इन्वेस्ट करने को कहते हैं। इससे फायदा यह होता है की इन्वेस्टर्स के रिस्क को कम करता है। अगर कोई एक एसेट क्लास सही परफॉर्म नहीं कर रहा है तो इसका पूरा इम्पैक्ट एक डाइवर्सिफाइड पोर्टफोलियो पर नहीं पड़ेगा।
उदाहरण के लिए, अगर कोई व्यक्ति अपना सारा पैसा स्टॉक में निवेश करते हैं और स्टॉक मार्केट क्रैश हो जाता है, तो उनका बहुत सारा पैसा डूब सकता है। लेकिन अगर उनका पोर्टफोलियो डाइवर्सिफाइड है और उन्होंने अपना कुछ पैसा बांड और रियल एस्टेट में भी निवेश किया है, तो उनका उतना पैसा नहीं डूबेगा।

ऑथर हमें यह सलाह देते हैं की रिस्क कम करने के लिए ये ज़रूरी है की हम अपने पोर्टफोलियो में विविधता लाएं। वह कहते हैं की सिर्फ स्टॉक्स में ही निवेश न करके हमें अन्य इन्वेस्टमेंट ओपशंस जैसे बांड्स, कमोडिटीज़ इत्यादि में भी निवेश करना चाहिए।
ऑथर ने हमें विविधीकरण के कई फायदे बताये हैं जिनमे से कुछ का ज़िक्र नीचे किया गया हैं-
- जोखिम कम करता है: डायवर्सिफिकेशन किसी एक एसेट क्लास में हमारे एक्सपोज़र को कम करके हमारे पोर्टफोलियो के रिस्क यानी जोखिम को कम करके जोखिम को कम करता है।
- रिटर्न बढ़ाता है: विविधीकरण हमारे पोर्टफोलियो को अलग अलग एसेट क्लास के संपर्क में लाकर रिटर्न बढ़ाने में भी मदद करता है जो अलग-अलग समय पर अच्छा प्रदर्शन कर सकते हैं।
- पोर्टफोलियो को मैनेज करना आसान बनाता है: डायवर्सिफिकेशन का एक फायदा यह भी है की हमें किसी एक एसेट को लगातार मॉनिटर नहीं करना पड़ता, इससे हमारे समय की बचत होती है।
Part II: The Investor and Market Fluctuations
(निवेशक और बाजार में उतार-चढ़ाव)
ऑथर हमें समझाते हुए कहते हैं की इन्वेस्टर्स को ये ध्यान रखना चाहिए की स्टॉक और अन्य निवेशों की कीमतें हर समय ऊपर-नीचे होती रहती हैं और इसे ही बाज़ार में उतार-चढ़ाव फ्लक्चुएशन कहा जाता है। यह निवेश का एक सामान्य हिस्सा है। निवेशकों को बाजार के उतार-चढ़ाव से नहीं डरना चाहिए. इसके बजाय, उन्हें इस फ्लक्चुएशन का फ़ायदा उठाना चाहिए।
जब बाजार नीचे हो तो ये इन्वेस्ट करने का सही समय है। ऐसा इसलिए है क्योंकि कम क़ीमत पर आप उस इन्वेस्टमेंट की ज़्यादा क्वांटिटी ख़रीद सकते हो। जब बाजार ऊपर हो, तो इन्वेस्टमेंट को सेल करने का यह अच्छा समय है। ऐसा इसलिए है क्योंकि इन्वेस्टमेंट की क़ीमत ज़्यादा होने की वजह से आप ज़्यादा मुनाफ़ा यानी प्रॉफिट कमा सकते हैं।
जब बाजार नीचे हो तो खरीदारी करके और जब बाजार ऊपर हो तो बेचकर, निवेशक समय के साथ पैसा कमा सकते हैं। हालाँकि, यह याद रखना ज़रूरी है कि इन्वेस्टमेंट एक लॉन्ग टर्म गेम है। रास्ते में उतार-चढ़ाव आएंगे, लेकिन अगर आप धैर्यवान और अनुशासित रहेंगे, तो संभवतः आप सफल होंगे।
बाज़ार की अस्थिरता और निवेशकों पर इसका प्रभाव
बाजार की अस्थिरता जिसे मार्किट वोलैटिलिटी भी कहते हैं शेयर बाजार के उतार-चढ़ाव को कहते हैं। यह बहुत ही अनप्रेडिक्टेबल होता है और इसे प्रेडिक्ट करना बहुत मुश्किल होता है। एक इन्वेस्टर के तौर पर हमें यह समझना चाहिए की इस वोलैटिलिटी का हमारे इन्वेस्टमेंट पर क्या असर पड़ेगा। मार्किट वोलैटिलिटी से हमें अपने पोर्टफोलियो की वैल्यू में काफी फ्लक्चुएशन देखने को मिल सकता है। ज़रूरी ये है की हम इससे घबराएं नहीं और कोई गलत इन्वेस्टमेंट डिसिशन न लें।
मिस्टर मार्केट Analogy
ऑथर ने शेयर बाज़ार की तुलना मिस्टर मार्केट नामक एक काल्पनिक व्यक्ति से की है। मिस्टर मार्केट लगातार अलग-अलग कीमतों पर स्टॉक खरीदने या बेचने की सलाह देते रहते हैं, जो किसी लॉजिक के आधार पर न होकर इमोशंस के आधार पर होती हैं । ऑथर कहते हैं कि निवेशकों को मिस्टर मार्केट के ऑफर को गंभीरता से नहीं लेना चाहिए। इसके बजाय, उन्हें उन शेयरों के आंतरिक मूल्य पर ध्यान देना चाहिए जिन्हें वे खरीदने पर विचार कर रहे हैं।
मिस्टर मार्केट का इमोशनल साईकल
मिस्टर मार्केट शेयर बाजार उतार-चढ़ाव के समय, विभिन्न कीमतों पर स्टॉक खरीदने या बेचने की सलाह देता रहता है। ऑथर कहते हैं की इन्वेस्टर्स की इन्वेस्टर्स को मिस्टर मार्केट की कीमतों को सच न मानकर उन शेयरों की इन्ट्रिंसिक वैल्यू या आंतरिक मूल्य पर ध्यान देना चाहिए जिनमें वे निवेश करने की सोच रहे हैं।

मिस्टर मार्केट के इमोशनल साईकल को पाँच स्टेप्स में विभाजित किया जा सकता है जो इस प्रकार हैं:
- आशावाद/Optimism: इस फेज में मार्किट में प्राइस बढ़ रहे होते हैं और आमतौर पर इन्वेस्टर्स भविष्य को आशान्वित होते हैं और शेयरों के लिए ऊंची कीमत चुकाने को तैयार भी होते हैं।
- उत्साह/Euphoria: मार्किट के इस फेज में स्टॉक प्राइस बहुत बढ़ जाती हैं और काफी अनस्टेबल हो जाती हैं। किसी भी स्टॉक के फंडामेंटल्स की परवाह किए बिना, निवेशक स्टॉक के लिए कोई भी कीमत चुकाने को तैयार हैं।
- चिंता/Anxiety: यह इमोशनल साईकल का वह फेज है जिसमे मिस्टर मार्केट को भविष्य की चिंता होने लगती है और कीमतें गिरने लगती हैं। निवेशक शेयरों के लिए चुकाई गई ऊंची कीमतों पर सवाल उठाने लगते हैं।
- डर/Fear: इस फेज में मिस्टर मार्केट मंदी महसूस कर रहा होता है और स्टॉक प्राइस नीचे गिर रहे होते हैं। निवेशक किसी भी कीमत पर स्टॉक बेचना चाहते हैं, भले ही उन्हें उनका काम मूल्य मिले।
- घबराहट/Panic: इस फेज में मिस्टर मार्केट पैनिक मोड में आ जाता है क्यूंकि स्टॉक प्राइस बहुत तेज़ी से नीचे गिरते हैं। निवेशक जल्द से जल्द स्टॉक बेचना चाहते हैं और कोई भी नुकसान उठाने को तैयार हैं।
ऑथर इन phases से हमें ये समझाना चाहते हैं की हम निवेश करते समय मिस्टर मार्केट के इमोशनल साईकल को पहचानें और अपने इमोशंस को अपने ऊपर हावी न होने दें।
जब मिस्टर मार्केट आशावादी महसूस कर रहा हो, तो निवेशकों को सतर्क रहना चाहिए और शेयरों के लिए ज़्यादा प्राइस नहीं पे नहीं करना चाहिए। जब मिस्टर मार्केट उत्साह महसूस कर रहा हो, तो निवेशकों को बहुत सावधान रहना चाहिए और हर कीमत पर स्टॉक खरीदने से बचना चाहिए। जब मिस्टर मार्केट चिंतित महसूस कर रहा हो, तो निवेशकों को स्टॉक बेचने पर विचार करना शुरू कर देना चाहिए। जब मिस्टर मार्केट भयभीत महसूस कर रहा हो, तो निवेशकों को स्टॉक खरीदना शुरू कर देना चाहिए। और जब मिस्टर मार्केट घबराया हुआ महसूस कर रहा हो, तो निवेशकों को उतने स्टॉक खरीदने चाहिए जितने वे खरीद सकते हैं।
मार्किट फ्लक्चुएशन का फायदा उठाने के लिए स्ट्रेटेजीज
मार्किट फ्लक्चुएशन का मतलब स्टॉक और अन्य एसेट्स की कीमतों में नियमित बदलाव है। इस फ्लक्चुएशन की कई वजह हो सकती है, जैसे आर्थिक समाचार, राजनीतिक घटनाएं और इन्वेस्टर सेंटीमेंट।
बाज़ार के उतार-चढ़ाव का लाभ उठाने का अर्थ है कीमतों में इन बदलावों से पैसा कमाना। ऐसी कई स्ट्रेटेजीज हैं जिनका उपयोग निवेशक ऐसा करने के लिए कर सकते हैं, जिनमें से कुछ प्रकार हैं:
- वैल्यू इन्वेस्टिंग: इस स्ट्रेटेजी के तहत ऐसे स्टॉक खरीदे जाते हैं जो अपने आंतरिक मूल्य यानी इन्ट्रिंसिक वैल्यू से नीचे कारोबार कर रहे हैं। इसका मतलब यह है कि स्टॉक का वर्तमान में मूल्यांकन कम है, और निवेशक का मानना है कि स्टॉक की कीमत अपने वास्तविक मूल्य की ओर अवश्य बढ़ेंगी। वैल्यू इन्वेस्टर्स स्टॉक की वैल्यू निर्धारित करने के लिए फंडामेंटल एनालिसिस का उपयोग करते हैं जिसमे वो उस कंपनी के फाइनेंसियल स्टेटमेंट्स को एनालाइज करने के साथ कंपनी के मैनेजमेंट, इंडस्ट्री इत्यादि को भी एनालाइज करते हैं।
वैल्यू इन्वेस्टिंग एक लॉन्ग-टर्म स्ट्रेटेजी है जो बुल और बेयर, दोनों मार्किट में काम करती है। ध्यान इस बात का रखना चाहिए की इन्वेस्टर्स थोड़ा धैर्य रखें और डिसिप्लिनड रहे क्यूंकि स्टॉक को उसकी इन्ट्रिंसिक वैल्यू तक पहुँचने में समय लग सकता है। - डॉलर/रुपए-कॉस्ट अवेरजिंग: इस स्ट्रेटेजी के तहत एसेट के प्राइस की चिंता किया बिना, एक नियमित अंतराल पर उस एसेट में एक निश्चित राशि का निवेश करना होता है। इसका फायदा यह होता है की स्टॉक प्राइस कम होता है तो हमें उस स्टॉक की ज़्यादा यूनिट खरीद सकते हैं स्टॉक प्राइस ज़्यादा होता है तो हम काम शेयर्स खरीद पाते हैं जिससे मार्किट वोलैटिलिटी के असर को कम करने में मदद मिलती है और समय के साथ रिटर्न को भी बेहतर बनाने में मदद मिलती है।
- विरोधाभासी (Contrarian) निवेश: इस स्ट्रेटेजी के तहत मार्किट ट्रेंड के विरुद्ध इन्वेस्टमेंट करना होता है। इसका मतलब यह है कि जब दुसरे लोग बेच रहे होते हैं आप तब खरीदते हैं और जब दूसरे खरीद रहे होते हैं तो आप बेचते हैं। इस स्ट्रेटेजी को फॉलो करने वाले इन्वेस्टर्स का मानना मार्किट अक्सर irrational होता है और कीमतें या तो बहुत ज़्यादा होती हैं या बहुत कम इसलिए ट्रेंड के अपोजिट जाकर वह इसका फायदा उठा सकते हैं। यहाँ ध्यान देने लायक बात यह है की यह एक जोखिम भरी रणनीति हो सकती है, लेकिन साथ ही साथ यह बहुत फायदेमंद भी हो सकती है।
Part III: The Analysis of Individual Securities
(इंडिविजुअल स्टॉक्स का विश्लेषण)
“द इंटेलिजेंट इन्वेस्टर” के इस पार्ट में ऑथर इन्वेस्टर्स को किसी स्टॉक या बांड की एनालिसिस करना सिखाते हैं और अच्छे इन्वेस्टमेंट options चुनने के लिए ज़रूरी चीज़ों को समझाते हैं और अच्छे निर्णय लेने के लिए फाइनेंसियल स्टेटमेंट्स को पढ़ना सिखाते हैं।
अच्छे निवेश कैसे चुनें
हम सब अच्छे निवेश को चुनना चाहते हैं लेकिन हमें ये नहीं पता होता की एक ‘अच्छे निवेश’ का क्या क्राइटेरिया होता है। हमारी इस समस्या के समाधान के लिए ऑथर ने हमें इसी तरह के कुछ क्राइटेरिया बताये हैं जो इस प्रकार हैं –
- सुरक्षा का मार्जिन: जैसा की हमने ऊपर बताया है मार्जिन ऑफ़ सेफ्टी किसी स्टॉक की मार्किट वैल्यू और उसकी इन्ट्रिंसिक वैल्यू को दर्शाता है। सुरक्षा का मार्जिन जितना ज़्यादा होगा, निवेशक का जोखिम भी उतना ही कम होगा।
- डायवर्सिफिकेशन: आप अपने पोर्टफोलियो को जितने अलग अलग एसेट्स को शामिल करेंगे आप अपने रिस्क को उतना ही कम कर पाएंगे।
- लॉन्ग टर्म पर्सपेक्टिव: इंस्टेंट ग्रैटिफिकेशन या तुरंत लाभ कमाने के चक्कर में न पड़कर लॉन्ग टर्म बेनिफिट्स के बारे में सोचना चाहिए। शेयर मार्किट शार्ट टर्म में अक्सर अस्थिर रहता है, लेकिन लॉन्ग टर्म में ये फ़ायदा देता है।
फाइनेंसियल स्टेटमेंट्स का रोल

फाइनेंसियल स्टेटमेंट ऐसे डाक्यूमेंट्स होते हैं जो किसी कंपनी की फाइनेंसियल हेल्थ के बारे में जानकारी देते हैं। ऐसे कई फाइनेंसियल स्टेटमेंट्स हैं जिनको इन्वेस्ट करने से पहले स्टडी करने की सलाह दी जाती है जैसे की इनकम स्टेटमेंट, बैलेंस शीट, कैश फ्लो स्टेटमेंट इत्यादि। आइये एक नज़र डालते हैं और समझते हैं इन स्टेटमेंट्स को –
- इनकम स्टेटमेंट– यह स्टेटमेंट किसी कंपनी के revenue और एक्सपेंसेस का विवरण देता है। रेवेन्यू वह पैसा है जो कंपनी अपने उत्पाद या सर्विसेज को बेचकर कमाती है और एक्सपेंस उस ख़र्च दर्शाते हैं जो कंपनी को अपने बिज़नेस को चलने के लिए उठाने पड़ते हैं। रेवेन्यू और एक्सपेंस के डिफरेंस को कंपनी की नेट इनकम कहा जाता है।
- बैलेंस शीट– बैलेंस शीट ऐसा फाइनेंसियल स्टेटमेंट है जो किसी कंपनी के एसेट्स, लॉएबिलिटीज़ और इक्विटी का विवरण देता है। एसेट्स ऐसी चीज़ें है जो कंपनी के पास होती हैं जैसे कैश, इन्वेंटरी, प्रॉपर्टी इत्यादि। लाईबिलिटीज़ कंपनी के ऊपर बकाया ऋण या देनदारियों को कहते हैं जैसे लोन, एकाउंट्स पेयबल आदि। इक्विटी एसेट्स और लाईबिलिटीज़ के डिफरेंस को दर्शाता है।
- कैश फ़्लो स्टेटमेंट– ये स्टेटमेंट कंपनी के कैश इनफ्लो और ऑउटफ्लो को दर्शाता है। कैश इनफ्लो वह पैसा है जो कंपनी को सेल्स, इन्वेस्टमेंट इत्यादि से मिलता है और कैश ऑउटफ्लो कंपनी के ख़र्च को दर्शाता है।
रिस्क मैनेजमेंट
ऑथर कहते हैं की इन्वेस्टर्स को अपना रिस्क कम करने के लिए निवेश से जुड़े सभी जोखिमों को अच्छी तरह समझना चाहिए। रिस्क अस्सेस्मेंट के लिए इन्वेस्टर्स इंडस्ट्री ट्रेंड्स, कॉम्पिटिटिव लैंडस्केप और इकनोमिक कंडीशन को समझने का प्रयास कर सकते हैं।
एनालिसिस की कला में महारत हासिल करना
ऑथर बेंजामिन ग्राहम इन्वेस्टर्स को निवेशकों को अपनी एनालिटिकल स्किल्स को सुधारने और निवेश से पहले रिसर्च करने का सुझाव देते हैं। वह कहते हैं की शेयर बाजार को प्रभावित करने वाले विभिन्न कारणों को समझकर, इन्वेस्टर्स स्टॉक को ख़रीदने और बेचने का बेहतर निर्णय ले सकते हैं।
Part IV: General Portfolio Policy
(सामान्य पोर्टफोलियो नीति)
“द इंटेलिजेंट इन्वेस्टर” के इस पार्ट भाग में, ऑथर बेंजामिन ग्राहम हमें एक बैलेंस्ड इन्वेस्टमेंट पोर्टफोलियो बनाना और साथ ही साथ इसे मैनेज करना भी सिखाते हैं। वह रिस्क को कम करने के लिए पोर्टफोलियो को डाइवर्सिफाई करना और लॉन्ग टर्म सोच विकसित करना भी सिखाते हैं। ऑथर द्वारा बताई गयी asset allocation strategies को फॉलो करके और अपने पोर्टफोलियो में डायवर्सिफिकेशन लेकर हम रिस्क को कम कर सकते हैं और खुद को मार्किट की वोलैटिलिटी से बचा सकते हैं।
बैलेंस्ड पोर्टफोलियो

एक बैलेंस्ड पोर्टफोलियो बनाना किसी भी इन्वेस्टर के लिए मुश्किल हो सकता है और नीचे दिए गए स्टेप्स हमारी मदद कर सकते हैं –
एसेट एलोकेशन: एसेट एलोकेशन का मतलब है अपने इन्वेस्टमेंट को अलग अलग एसेट्स जैसे स्टॉक, बांड, कैश इत्यादि में आवंटित करना है। एसेट एलोकेशन का गोल है पैसे को ऐसे अलग अलग एसेट क्लास, जिनकी परफॉरमेंस एक दुसरे से काफी अलग होती है में इन्वेस्ट करके रिस्क को कम करना।

The Weighted Scales: इन्वेस्टमेंट के कॉन्टेक्स्ट में बैलेंस स्केल एक ऐसा टूल है जो हमें अलग अलग एसेट क्लासेज को नापने और अपने पोर्टफोलियो को रीबैलन्स करने में हमारी मदद करता है।
रिस्क-रिटर्न स्पेक्ट्रम: यह एक ऐसा स्पेक्ट्रम है जो बताता है की कैसे अलग अलग एसेट एलोकेशन अलग-अलग रिस्क-रिटर्न प्रोफाइल बना सकता है। रिस्क पैसा डूबने की सम्भावना को बताता है और रिटर्न पैसा कमाने की। रिस्क-रिटर्न प्रोफाइल कन्सेर्वटिव से लेकर अग्रेसिव तक लुक भी हो सकता है। कन्सेर्वटिव एसेट एलोकेशन वह होता है जिसमे रिस्क कम होता है लेकिन इसके साथ ही रिटर्न भी कम होता है। वहीँ दूसरी ओर एग्रेसिव एसेट एलोकेशन में हाई रिस्क के साथ हाई रिटर्न होता है। इस स्पेक्ट्रम की सहायता से हम अपनी प्राथमिकताओं के अनुरूप एसेट एलोकेशन चुन सकते हैं।
पोर्टफोलियो मैनेजमेंट में लॉन्ग टर्म पर्सपेक्टिव
लॉन्ग टर्म पर्सपेक्टिव का मतलब आने वाले कुछ महीनो या क्वार्टर के बारे में न सोचकर आने वाले कुछ सालों के बारे में सोचने से है। ऑथर हमें ऐसे कुछ कारण बताते हैं जिनकी वजह से पोर्टफोलियो को मैनेज करने के लिए लॉन्ग टर्म पर्सपेक्टिव ज़रूरी है और इन कारणों को संक्षेप में नीचे दिया गया है।
- कंपाउंड इंटरेस्ट: अपने रिटर्न्स पर रिटर्न पाने को कंपाउंड इंटरेस्ट कहते हैं। इसका मतलब यह है कि आप जितना ज़्यादा टाइम तक निवेश करेंगे, उतना ज़्यादा पैसा कमाएंगे क्यूंकि जैसे-जैसे आपका निवेश बढ़ता है, आपका रिटर्न भी बढ़ता है, जिससे आपका निवेश और भी ज़्यादा बढ़ता है। कंपाउंड इंटरेस्ट का जादू देखने के लिए आपको अपने रिटर्न को पुनर्निवेश करना है। इसका मतलब यह है कि आप अपने निवेश से कमाए गए पैसे को निकलकर खर्च नहीं करते हैं। आप इसे दोबारा निवेश करें ताकि यह बढ़ता रहे।
- मैराथन: मैराथन एक लंबी दूरी की दौड़ है जिसमें धैर्य और दृढ़ संकल्प की ज़रुरत होती है। इन्वेस्टमेंट के कॉन्टेक्स्ट में जो इन्वेस्टर्स buy and hold की स्ट्रेटेजी रणनीति अपनाते हैं, उन्हें मैराथन रनर्स माना जाता है, क्योंकि उन्हें धैर्य रखने और अनुशासित रहने की ज़रुरत होती है। ऐसे लोग लॉन्ग टर्म पर्सपेक्टिव रखते हैं और शार्ट टर्म प्राइस मूवमेंट्स से नहीं घबराते। buy and hold स्ट्रेटेजी में किसी स्टॉक को ख़रीदकर उसे लम्बे समय तक रखना होता है चाहे शार्ट टर्म में मार्किट में गिरावट आये लेकिन स्टॉक को नहीं बेचा जाता है।
- ओक ट्री: जिस तरह एक ओक के पेड़ को mature होने में कई साल लगते हैं, उसी तरह एक निवेश पोर्टफोलियो को अपनी पूरी क्षमता तक पहुंचने के लिए समय की ज़रुरत होती है। एक इन्वेस्टमेंट पोर्टफोलियो भी ओक के पेड़ के समान है जिसे बढ़ने और mature होने में समय लगता है। लेकिन एक बार जब यह mature हो जाता है, तो मार्किट के उतार-चढ़ाव का अच्छी तरह सामना कर सकता है और आपको वित्तीय सुरक्षा दे सकता है।
Part V: The Investor and His Advisers
(निवेशक और उनके सलाहकार)
द इंटेलीजेंट इन्वेस्टर” के इस पार्ट में ऑथर बेंजामिन ग्राहम ने हमें फाइनेंसियल एडवाइजर के साथ काम करने के फ़ायदे और नुकसानों के बारे में बताया है। साथ ही साथ एक अच्छा फाइनेंसियल एडवाइजर चुनने के लिए ज़रूरी सलाह भी दी हैं।
फाइनेंसियल एडवाइजर की वैल्यू
ऑथर कहते हैं की फाइनेंसियल एडवाइजर इन्वेस्टर्स के लिए बहुत ही वैल्युएबल हो सकते हैं, क्योंकि उनकी मदद से इन्वेस्टर्स इन्फोर्मेड इन्वेस्टमेंट डिसिशन ले सकते हैं तथा एक ऐसा फाइनेंसियल प्लान बना सकते हैं जो उन्हें उनके गोल्स तक पहुँचने में उनकी मदद करेगा। ऑथर साथ ही साथ हमें ये भी कहते हैं की हमें फाइनेंसियल एडवाइजर के साथ काम करने से पहले इसके संभावित नुकसानों के बारे में भी पता होना चाहिए।
फाइनेंसियल एडवाइजर के साथ काम करने के कुछ संभावित नुकसानों का ज़िक्र नीचे किया गया है-
- हितों का टकराव– फाइनेंसियल एडवाइजर और हमारे हितों में टकराव हो सकता है, जैसे कि वे उन कंपनियों के प्रोडक्ट्स ज़्यादा बेचेंगे जिनसे उन्हें ज़्यादा कमीशन मिलता है। हो सकता है की वो प्रोडक्ट्स हमारे फाइनेंसियल गोल्स को पूरा करने में हमारी मदद न कर सकें। इससे उनकी एडवाइस पक्षपातपूर्ण हो सकती है।
- हाई फ़ीस– कुछ फाइनेंसियल एडवाइजर ऐसे भी होते हैं जो काफी हाई फीस लेते हैं और ये छोटे इन्वेस्टर्स के लिए नुकसानदायक हो सकता है क्यूंकि यह उनके निवेश रिटर्न को खा सकता है।
- पारदर्शिता का अभाव– कुछ वित्तीय सलाहकार अपनी फीस या निवेश रणनीतियों को लेकर पारदर्शी नहीं होते हैं। इससे आपको निवेश के बारे में सोच-समझकर निर्णय लेना मुश्किल हो सकता है।
- अनुपयुक्त सलाह– कुछ फाइनेंसियल एडवाइजर आपको ऐसी दे सकते हैं जो आपके लिए उपयुक्त नहीं है। इससे आपके आपको निवेश संबंधी निर्णय गड़बड़ा सकते हैं।
- मिसरेप्रेसेंटेशन– कुछ फाइनेंसियल एडवाइजर अपनी योग्यता या अनुभव को मिसरेप्रेसेन्ट कर सकते हैं। इससे आपको उनकी योग्यता को लेकर ग़लतफहमी हो सकती है।
- फ्रॉड– कुछ वित्तीय सलाहकार धोखाधड़ी वाली गतिविधियों में शामिल हो सकते हैं, जैसे आपका पैसा चुराना या जोखिम भरे या अनुपयुक्त उत्पादों में निवेश करना।
एक अच्छा फाइनेंसियल एडवाइजर कैसे चुनें?

एक अच्छा फाइनेंसियल एडवाइजर चुनने के लिए ऑथर ने कुछ सुझाव दिए हैं जो इस प्रकार हैं:
- फ्रेंड्स, फ़ैमिली या सहकर्मियों से सलाह लें और उनसे वित्तीय सलाहकारों के साथ उनके अनुभवों के बारे में पूछें।
- फाइनेंसियल एडवाइजर चुनने से पहले से पहले कई अलग-अलग एडवाइजर से बाते करें और उनकी फीस, इन्वेस्टमेंट फिलॉसफी और एक्सपीरियंस के बारे में समझें।
- फाइनेंसियल एडवाइजर के साथ कॉन्ट्रैक्ट करें जो यह सुनिश्चित करेगा कि वे आपके सर्वोत्तम हित में कार्य करने के लिए कानूनी रूप से बाध्य हैं।
- सलाहकार की फीस और इन्वेस्टमेंट स्ट्रेटेजी के बारे में पूछें। आपको ये पता होना चाहिए की आप किस चीज़ के लिए फीस दे रहे हैं और सलाहकार आपके पैसे का निवेश कैसे करेगा।
- सब कुछ लिखित में प्राप्त करें। किसी भी अनुबंध पर हस्ताक्षर करने से पहले, सुनिश्चित करें कि आप सभी नियम और शर्तों को समझते हैं।
प्रोएक्टिव इन्वेस्टर कैसे बनें

अगर आप फाइनेंसियल एडवाइजर के साथ काम करने के संभावित नुकसान से खुद को बचाना चाहते हैं तो इसके लिए आपको खुद को भी बेसिक फाइनेंसियल एजुकेशन लेनी होगी और पूरी तरह एडवाइजर पर निर्भर नहीं पड़ेगा। आप खुद भी अलग अलग इन्वेस्टमेंट स्ट्रेटेजीज और मार्किट में उपलब्ध अलग अलग इन्वेस्टमेंट प्रोडक्ट्स की जानकारी ले सकते हैं जिससे आप अपने इन्वेस्टमेंट के बारे में बेहतर निर्णय ले सकें।
बेहतर इन्वेस्टर बनने के लिए ऑथर ने कुछ सुझाव दिए हैं जो नीचे दिए गए हैं:
- फाइनेंसियल एजुकेशन लें: फाइनेंसियल एजुकेशन सीखने के लिए बुक्स, ब्लॉग्स, कोर्स इत्यादि की सहायता ली जा सकती है।
- वित्तीय समाचार और रिपोर्ट पढ़ें: ख़ुद को मार्केट की न्यूज़ से अपडेट रखें जिससे आप इन्फोर्मेड फाइनेंसियल निर्णय ले सकें।
- प्रोएक्टिव इन्वेस्टर बनें: एक इन्वेस्टर को प्रोऐक्टिवली अपने पोर्टफोलियो की नियमित रूप से समीक्षा करते रहना चाहिए और आवश्यकतानुसार बदलाव करने चाहिए।
- प्रश्न पूछें: अगर आपको इन्वेस्टमेंट के बारे में कुछ समझना या जानना चाहते हैं, तो किसी फाइनेंसियल एडवाइजर या किसी अन्य विश्वसनीय सलाहकार से पूछें।
अपनी जानकारी बढाकर, आप बेहतर निवेश निर्णय ले सकते हैं और अपने वित्तीय भविष्य को भी बेहतर बना सकते हैं।
Conclusion
(सारांश)
तो दोस्तों, ये थी “द इंटेलिजेंट इन्वेस्टर बुक समरी इन हिंदी”
दोस्तों, ये इन्वेस्टमेंट के ऊपर लिखी गयी सर्वश्रेष्ठ बुक्स में से एक है जिसमे ऑथर बेंजामिन ग्राहम ने वैल्यू इन्वेस्टिंग के बारे में बताया है। ऑथर को वैल्यू इन्वेस्टिंग के जनक के रूप में जाना जाता है उनकी इस बुक में दिए गए सिद्धांत आज भी प्रासंगिक हैं क्यूंकि वैल्यू इन्वेस्टिंग एक ऐसी इन्वेस्टमेंट फिलॉसोफी है जो कभी भी ऑउटडेटेड नहीं होगी।
दोस्तों, आशा है की आपको ये समरी पसंद आयी होगी। इससे अपने फॅमिली और फ्रेंड्स के साथ अवश्य शेयर करें। आप अपना वैल्युएबल फीडबैक कमैंट्स सेक्शन में शेयर कर सकते हैं।
पोस्ट को पूरा पढ़ने के लिए धन्यवाद।
FAQs
(अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न)
Is The Intelligent Investor A Hard read?
द इंटेलिजेंट इन्वेस्टर, बेंजामिन ग्राहम द्वारा लिखित, वैल्यू इन्वेस्टिंग पर एक क्लासिक बुक है जिसे दशकों से व्यापक रूप से पढ़ा और सम्मानित किया गया है। जबकि पुस्तक को पढ़ना कठिन तो नहीं है, लेकिन इसके कॉन्सेप्ट्स को पूरी तरह से समझने के लिए एक निश्चित स्तर के वित्तीय ज्ञान और शब्दावली की आवश्यकता होती है।
What are the main points of The Intelligent Investor?/What is the summary of The Intelligent Investor
The main points (summary) of The Intelligent Investor by Benjamin Graham are:
1. Invest in stocks with a margin of safety, focusing on their intrinsic value and avoiding speculation.
2. Diversify your portfolio across different asset classes and industries to reduce risk.
3. Use dollar-cost/rupee-cost averaging to invest regularly and avoid market timing.
4. Be patient and disciplined in your investment approach, focusing on long-term results rather than short-term market fluctuations.
5. Be aware of and avoid common investment pitfalls, such as emotional investing, overconfidence, and excessive fees.
6. Understand the difference between investing and speculation, and choose a strategy that aligns with your goals and risk tolerance.
7. Always conduct thorough research and analysis before making investment decisions.
Overall, The Intelligent Investor promotes a conservative, value-oriented approach to investing that emphasizes discipline, patience, and a focus on the long-term.
Is The Intelligent Investor good for India?
जी हां, बेंजामिन ग्राहम की द इंटेलिजेंट इन्वेस्टर भारत में निवेशकों के लिए एक अच्छी बुक है। वैसे तो यह पुस्तक मुख्य रूप से अमेरिकी दर्शकों को ध्यान में रखकर लिखी गई थी, लेकिन पुस्तक में उल्लिखित वैल्यू इन्वेस्टिंग और साउंड इन्वेस्टमेंट प्रैक्टिसेज के प्रिंसिपल्स भारत सहित दुनिया भर के निवेशकों पर लागू होते हैं।
क्या इंटेलिजेंट इन्वेस्टर किताब पढ़ने लायक है?
जी हां, बेंजामिन ग्राहम की द इंटेलिजेंट इन्वेस्टर वैल्यू इन्वेस्टिंग पर एक timeless क्लासिक बुक है जिसे हर एक इन्वेस्टर को अवश्य पढ़ना चाहिए।
Is The Intelligent Investor A Good book for Indian stock market?
बेंजामिन ग्राहम की द इंटेलिजेंट इन्वेस्टर भारतीय शेयर बाजार सहित किसी भी शेयर बाजार में निवेशकों के लिए एक timeless क्लासिक है।
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