Introduction (परिचय)
हेलो दोस्तों, स्वागत है आपका Atomic Habits Book Summary in Hindi में ।
दोस्तों, जेम्स क्लियर द्वारा लिखित “एटॉमिक हैबिट्स” एक ऐसी सेल्फ-हेल्प बुक है जो हमें अपनी आदतों को बदलने के लिए छोटे छोटे लेकिन रोज़ किया गए changes की चमत्कारिक शक्ति के बारे में बताती है। बुक की मेन थीम यह है की लगातार किये गए काम छोटे छोटे काम भी लम्बे समय में चौंकाने वाले रिजल्ट्स दे सकते हैं। इसी प्रिंसिपल का यूज़ करके हम अच्छी आदतें बना सकते हैं और बुरी आदतों को छोड़ सकते हैं लेकिन इसके लिए हमें सबसे पहले अपनी आदतों को समझना चाहिए और ये identify करना चाहिए की हम किन आदतों को छोड़ना चाहते हैं और कइने अपनाना चाहते हैं।
तो चलिए Atomic Habits Book Summary in Hindi को start करते हैं-
The Surprising Power of Tiny Habits (छोटे छोटे बदलावों की आश्चर्यजनक शक्ति)
बुक के शुरआती चैप्टर में ऑथर जेम्स क्लियर कहते हैं Atomic Habits यानी छोटी आदतें ऐसे छोटे और आसान changes हैं जिन्हें हम अपने जीवन में कर कर सकते हैं। ये बदलाव इतने छोटे होते हैं उन्हें करना ज़्यादा मुश्किल नहीं होता और यही वजह है की उन changes को करने में failure के chances न के बराबर होते हैं। ये changes दिखने में भले ही छोटे हो और हम इन्हे atomic habits कहते हों लेकिन समय के साथ, वे बड़े बदलाव ला सकते हैं।
जेम्स क्लियर का कहना है कि छोटी-छोटी आदतें हमारे जीवन में स्थायी परिवर्तन ला सकती हैं। वह कहते हैं कि एक ही बार में बड़े बदलाव करने की कोशिश करने की तुलना में बहुत सारे छोटे-छोटे बदलाव करना बेहतर है। ऐसा इसलिए है क्योंकि छोटे परिवर्तन अधिक टिकाऊ होते हैं और विफलता की संभावना कम होती है।
छोटी-छोटी आदतों के कुछ उदाहरण इस प्रकार हो सकते हैं:
- रोज़ 10 पुश-अप्स करना।
- किसी बुक का एक पेज रोज़ पढ़ना।
- रोज़ दो मिनट मैडिटेशन करना।
ऑथर जेम्स क्लियर का कहना है कि हमें एक किसी एक छोटी आदत से शुरुआत करनी चाहिए और इसे अपनी दिनचर्या का हिस्सा बनाने पर ध्यान देना चाहिए। कोशिश ये करनी चाहिए के पहले किसी एक आदत को अपने जीवन में अच्छी तरह शामिल किया जाए और उसपर mastery हासिल की जाए तभी किसी दूसरी आदत पर ध्यान देना चाहिए। सब कुछ एक साथ करने की कोशिश करने से कुछ भी हासिल नहीं होगा।
ऑथर नयी आदतों को अपनाने के लिए 2 Minute Rule का इस्तेमाल करने की सलाह देते हैं। यह रूल कहता है कि ऐसी किसी भी आदत को शुरू किया जा सकता है और बनाए रखा जा सकता है जिसे पूरा करने में दो मिनट से ज्यादा समय न लगे। ऐसा इसलिए है क्योंकि बड़े कामों को छोटे, दो मिनट के कामों में डिवाइड करने से वे कम मुश्किल लगते हैं और उन्हें टाले जाने की संभावना भी कम होती है।
उदाहरण के लिए, यदि आप व्यायाम करने की आदत शुरू करना चाहते हैं, तो आप हर दिन दो मिनट जंपिंग जैक करके शुरुआत कर सकते हैं। एक बार जब आप इसे आदत बना लेते हैं, तो आप धीरे-धीरे व्यायाम करने में लगने वाले समय को बढ़ा सकते हैं।
दो मिनट का नियम छोटी या बड़ी किसी भी आदत पर लागू किया जा सकता है। बड़े tasks को छोटे छोटे भागों में विभाजित करके, हम अच्छी आदतों को शुरू करना और बनाए रखना आसान बना सकते हैं।
ऑथर हमें ये भी बताते हैं की हमें अपने environment यानी वातावरण को उन छोटी-छोटी आदतों के अनुकूल बनाना चाहिए जिन्हे हम अपनाना चाहते हैं या छोड़ना चाहते हैं। उदाहरण के लिए, यदि हम बुक्स पढ़ने की आदत डालना चाहते हैं तो, हमें किताबें ऐसी जगह रखनी चाहिए जो हमारी पहुँच से ज़्यादा दूर न हो और हमारी नज़र उन पर पड़ती रहे।
ऑथर कहते हैं कि हमें अपनी छोटी-छोटी आदतों को अपनी वांछित पहचान के साथ जोड़ना चाहिए। हम किस प्रकार का इंसान बनना चाहते हैं? अगर हम स्वस्थ रहना चाहते हैं, तो हमें ऐसी छोटी-छोटी आदतें बनानी चाहिए जो उस पहचान को बनाने में सहायक हों, जैसे स्वस्थ भोजन खाना और नियमित रूप व्यायाम करना।
इन सभी बातों को अपने जीवन में अपनाकर, हम अपने जीवन में स्थायी परिवर्तन लाने के लिए छोटी-छोटी आदतों की शक्ति का उपयोग कर सकते हैं।
व्यवहार परिवर्तन के चार नियम
जेम्स क्लीयर के अनुसार व्यवहार परिवर्तन यानी अच्छी आदतें बनाने और बुरी आदतें छोड़ने के लिए चार नियम होते हैं जोकि इस प्रकार हैं:
- Make it obvious– इस नियम में हमें उन आदतों की visibility बढ़ानी होती है जिन्हे हम अपनाना चाहते हैं। ऑथर कहते हैं की व्यवहार को आकार देने में संकेतों (Cues) और ट्रिगर महत्वपूर्ण रोल प्ले करते हैं। किसी आदत को obvious बनाने के लिए , ऑथर हमें Habit Stacking (किसी नई आदत को किसी मौजूदा आदत से जोड़ना), वांछित व्यवहार को बढ़ावा देने के लिए अपने वातावरण को डिज़ाइन करना और visual cues या reminders का उपयोग करने की सलाह देते हैं। इस रूल का मकसद है की नयी आदत को शुरू करना जितना संभव हो उतना आसान बनाना। अगर इसे शुरू करना आसान बन गया, तो हमारे इसके साथ बने रहने की अधिक संभावना है।
- Make it attractive– यह नियम के अनुसार नयी आदतों को अपनाने में उनके साथ पॉजिटिव और अट्रैक्टिव फीलिंग्स जोड़ने से उन्हें अपनाना आसान हो जाता है। ऑथर कहते हैं की ऐसा इसलिए होता है क्यूंकि हमारे मस्तिष्क में “फील-गुड” रसायन का प्रवाह होता है। किसी आदत को आकर्षक बनाने के लिए उसे मनोरंजक और आनंदमय बनाया जा सकता है, टेम्पटेशन बंडलिंग (कम आकर्षक काम को ज़्यादा आकर्षक काम के साथ जोड़ना) और immediate reward का उपयोग किया जा सकता है। जब किसी आदत में हमें आनंद और संतुष्टि मिलेगी तो उसे दोहराने की संभावना अधिक होगी।
- Make it easy– नयी हैबिट को execute करना जितना आसान होगा उसे अपनाना भी उतना ही आसान हो जायेगा, यही इस रूल का मतलब है। ऑथर कहते हैं की नयी आदत को अपनानाने के रास्ते में आने वाली बाधाओं और फ्रिक्शन को हम जितना काम कर पाएंगे उस नयी आदत को अपनाना उतना ही आसान हो जायेगा। 2 मिनट रूल , नयी आदत को छोटे छोटे manageable steps में डिवाइड करके और एक प्लान बनाकर हम नयी आदत को अपनाने के रास्ते को आसान बना सकते हैं।
- Make it satisfying– इस रूल का मक़सद यह सुनिश्चित करना है कि हम अपनी वांछित आदत पूरी करने के बाद अपने बारे में अच्छा महसूस करें। अगर हम अपने बारे में अच्छा महसूस करते हैं, तो हमारे अपनी आदत पर कायम रहने की सम्भावना बढ़ जाती है। अच्छा महसूस करने के लिए हम अपनी प्रोग्रेस को ट्रैक कर सकते हैं, प्रोग्रेस देखकर हमें आगे बढ़ने के लिए मोटिवेशन मिलेगा। छोटे छोटे milestones का जश्न मनाकर भी हम खुद को मोटीवेट और खुश रख सकते हैं। हम एक accountability पार्टनर भी बना सकते हैं जो हमारी प्रोग्रेस के बारे में हमसे सवाल कर सके। हम किसी habit building कम्युनिटी को भी ज्वाइन कर सकते हैं।
How Your Habits Shape Your Identity and Vice Versa (आपकी पहचान आपकी आदतों से बनती है)
James Clear अपनी बुक “एटॉमिक हैबिट्स” के इस चैप्टर में ये बताते हैं कि हमारी आदतों से ही हमारी पहचान बनती है। वह कहते हैं की हम जो भी काम रोज़ करते हैं वो ये बताते हैं की हम कौन हैं।
उदाहरण के लिए, अगर हम रोज़ सुबह जल्दी उठकर एक्सरसाइज करते हैं तो हम खुद को तथा दुसरे लोग भी हमें एक एथलिट के रूप में देखेंगे और यही छवि/आत्म-छवि हमें उस आदत को continue करने के लिए मोटीवेट करेगी।
ऑथर कहते हैं की नयी आदतों को अपनाना और बुरी आदतों को छोड़ना अपनी पहचान को बदलकर ही संभव है। वह कहते हैं की अगर हम एक अलग इंसान बनना चाहते हैं तो फिर हमें एक अलग इंसान की तरह ही व्यवहार भी करना होगा।
इसका मतलब है कि अपनी एक्टिविटीज को अपनी वांछित पहचान के साथ align करने के लिए हर दिन छोटे-छोटे कदम उठाना। उदाहरण के लिए, अगर हम अपनी प्रोडक्टिविटी को बढ़ाना चाहते हैं, तो आप रोज़ अपने दिन की शुरुआत 30 मिनट पहले कर सकते हैं।
जैसे ही हम ये छोटे कदम उठाना शुरू करेंगे, हम खुद को ज़्यादा प्रोडक्टिव इंसान की तरह देखना शुरू कर देंगे। और यही वह चीज़ है जो हमें उन छोटे छोटे स्टेप्स को लेने के लिए मोटीवेट करती रहेगी और धीरे धीरे, हम वह इंसान बन जाएंगे जो हम बनना चाहते हैं।
अगर संक्षेप में कहा जाए तो, हमारी आदतें हमारी पहचान को आकार देती हैं, और हमारी पहचान हमारी आदतों को आकार देती है। अपनी आदतें बदलकर हम अपनी पहचान बदल सकते हैं। और अपनी पहचान बदलकर हम अपनी आदतें बदल सकते हैं।
How to Build Better Habits in 4 Simple Steps (अच्छी आदतें कैसे बनाएं)
“एटॉमिक हैबिट्स” के इस चैप्टर में ऑथर, जेम्स क्लियर हमें बेहतर आदतें बनाने के लिए एक 4-Step framework के बारे में बताते हैं जिसकी मदद से आदतें लंबे समय तक टिकती है। ये फ्रेमवर्क सरल होने के साथ साथ काफी पावरफुल है, और यह हमें हमारे लक्ष्यों और आकांक्षाओं को प्राप्त करने में हमारी सहायता कर सकता है।
Cue/संकेत (Make It Obvious)
किसी नयी आदत को अपनाने का पहला स्टेप उसे obvious यानी स्पष्ट बनाना है। इसका मतलब है हम जिस आदत अपनाना चाहते हैं उसे एक clear और noticeable संकेत यानी cue के साथ जोड़ें जोड़ना। cue ही आदत को ट्रिगर करता है, इसलिए cue ऐसा चाहिए जिसे हम भूल न सकें।
उदाहरण के लिए, अगर हम सुबह एक्सरसाइज करने का रूटीन बनाना चाहते हैं, तो हम अपने एक्सरसाइज करने के कपड़े अपने bed के पास रख सकते हैं जिससे सुबह सबसे पहले हमारी नज़र उनपर पड़े। यह एक स्पष्ट और ध्यान देने योग्य संकेत होगा जो हमें एक्सरसाइज करने की याद दिलाएगा।
हम जो आदत बनाना चाहते हैं उसे किसी एक particular time, जगह, इमोशंस या preceding actions के साथ जोड़कर भी नए cues बना सकते हैं। जैसे की हम अपना चेहरा धोने के बाद अपने दाँत ब्रश कर सकते हैं, या सोने से पहले कुछ कुछ देर तक कोई किताब पढ़ सकते हैं।
ऑथर कहते हैं की हम अपना cue यानी संकेत जितना ज़्यादा स्पष्ट कर सकेंगे, शुरुआत करना और अपनी आदत पर कायम रहना उतना ही आसान होगा।
Craving/तीव्र इच्छा (Make it Attractive)
किसी नयी आदत को बनाने में दूसरा स्टेप है उसे आकर्षक बनाना। लालसा (Craving) नयी आदत को करने की इच्छा या प्रेरणा है। क्रेविंग की वजह से हम सबसे पहले इस आदत को करने के लिए प्रेरित होते हैं। उदाहरण के लिए, अपने दांतों को ब्रश करने की craving की वजह दांत को साफ़ करने करने की भावना हो सकती है।
इसका मतलब है हम जो आदत अपनाना चाहते हैं उसे पॉजिटिव फीलिंग्स और rewards से जोड़ना। जब हम अपनी आदत को किसी ऐसी चीज़ से जोड़ते हैं जिसे हम एन्जॉय करते हैं, तो इस बात की ज़्यादा सम्भावना है की हम उसे करने के लिए ज़्यादा प्रेरित होंगे।
जैसे अगर हम एक्सरसाइज शुरू करना चाहते हैं, तो हम व्यायाम करते समय अपना पसंदीदा संगीत सुन सकते हैं। इससे एक्सरसाइज करना ज़्यादा मनोरंजक हो जाएगा और इसलिए अधिक संभावना है कि हम इसे जारी रखेंगे।
हम अपनी इस आदत को delayed reward से भी जोड़ सकते हैं। इसका मतलब है कि इस नए behavior के लिए हमें जो reward मिलेगा वो थोड़ा देर से और आगे चलकर मिलेगा। उदाहरण के लिए, अगर हम सेविंग्स शुरू करना चाहते हैं, तो हर महीने ₹500 बचाने का गोल सेट कर सकते हैं। इससे नयी आदत बनेगी और उसका फल हमें थोड़े समय के बाद देखने को मिलेगा।
ऑथर के अनुसार हम अपनी आदत को जितना ज़्यादा अट्रैक्टिव बना सकते हैं, उतनी अधिक संभावना है कि हम उससे जुड़े रहेंगे।
Response/प्रतिक्रिया– Make It Easy
नयी आदत को बनाने में तीसरा कदम response को आसान बनाना है। Response उस actual behavior को कहते हैं जो हम करते हैं। रिस्पांस को आसान बनाने के लिए हम नयी आदत को छोटे छोटे स्टेप्स में डिवाइड कर सकते हैं और उन बाधाओं को दूर कर सकते हैं जो हमें इस बिहेवियर को continue रखने के रास्ते में आती हैं। जैसे ऊपर दिए गए example में अपने दांतों को ब्रश करना craving का response हो सकता है।
ऑथर कहते हैं की प्रतिक्रिया (response) को आसान बनाकर, हम अपनी आदत को continue करने की संभावना को बढ़ाते हैं।
Reward/पुरस्कार– Make It Satisfying
रिवॉर्ड संतुष्टि या खुशी की भावना है जो हमें उस आदत को करने से मिलती है। उदाहरण के लिए, अपने दांतों को ब्रश करने का इनाम ताजी सांस लेने का एहसास हो सकता है। आदत बनाने का last step reward को satisfying बनाना है। इसका मतलब है छोटी छोटी जीत का जश्न मनाना, प्रोग्रेस को ट्रैक करना और internal या external rewards ढूंढना जो हमारे अनुरूप हों।
जब हम किसी आदत को पूरा करने के लिए खुद को पुरस्कृत करते हैं, तो हम उस behavior को मजबूत कर रहे होते हैं और यह संभावना बढ़ा रहे होते हैं कि हम आगे चलकर भी उसपर कायम रहेंगे।
दोस्तों, ऑथर द्वारा बताये गए इस फ्रेमवर्क का उपयोग हम अपनी आदतों को समझने और नई आदतें बनाने के लिए कर सकते हैं। इस फ्रेमवर्क को समझकर हम अपनी आदतों को आटोमेटिक और ज़्यादा टिकाऊ बना सकते हैं।
Habit Stacking
ऑथर ने इस चैप्टर में नयी आदतों को बनाने के एक और रास्ता बताया है और वह है – हैबिट स्टैकिंग। हैबिट स्टैकिंग का मतलब है अपनी किसी आदत को दूसरी आदत से जोड़ना।
उदाहरण के लिए, यदि आप ज़्यादा एक्सरसाइज करना शुरू करना चाहते हैं, तो आप अपने दांतों को ब्रश करने की आदत डाल सकते हैं। हर बार जब हम अपने दाँत ब्रश करें, तो हम 10 पुश-अप भी कर सकते हैं। इससे एक्सरसाइज को याद रखना आसान हो जाएगा क्योंकि यह उस आदत से जुड़ा होगा जिसे आप पहले से ही हर दिन करते हैं।
ऑथर कहते हैं की अपनी मौजूदा आदतों को ज़्यादा effective बनाने के लिए भी हैबिट स्टैकिंग का उपयोग किया जा सकता है। उदाहरण के लिए, अगर हम अपनी प्रोडक्टिविटी बढ़ाना चाहते हैं, तो हम कॉफी पीने की आदत डाल सकते हैं। हर बार जब हम कॉफी पीने के लिए ब्रेक लेते हैं, तो हम अपनी to do लिस्ट को चेक जांच कर सकते हैं और अपने दिन के लिए एक प्लान बना सकते हैं। इससे हमें focussed रहने और ट्रैक पर बने रहने में मदद मिलेगी।
The Man Who Didn’t Look Right
एटॉमिक हैबिट्स के इस इस चैप्टर में जेम्स क्लियर बताते है कि कैसे लोगों के बारे में first impression, जैसे कि उनके looks और behavior इत्यादि को बनाने में छोटे छोटे subtle cues रोल प्ले करते हैं। ऑथर कहते हैं की इन cues की वजह से हम लोगों के गलत सोच भी बना सकते हैं जो की सही नहीं होती है और जिसकी वजह से हमारे रिश्तों, करियर इत्यादि पर इसका बुरा असर होता है।
अपनी बात को समझाने के लिए ऑथर जेम्स क्लियर हमें एक प्रतिभाशाली वैज्ञानिक यूजीन पॉली की कहानी बताते हैं। पॉली की काबिलियत को लोग उनके unusual looks की वजह से सही ढंग से समझ ही नहीं पाए जिसकी वजह से वह अपने काम को दुनिया के सामने रखने करने के अवसरों से वंचित रह गए।
पॉली एक बहुत ही टैलेंटेड साइंटिस्ट थे जिन्होंने कैंसर जैसे गंभीर रोग के ऊपर रिसर्च में अद्वित्य योगदान दिया। लेकिन उनकी शक्ल-सूरत ऐसी थी की लोग उन्हें अक्सर नकार देते थे। वह दिखने में लम्बे और काफी पतले थे और उनके लंबे बाल और दाढ़ी थी। इतना ही नहीं पॉली को जल्दी-जल्दी और तेज़ आवाज़ में में बोलने की भी आदत थी, जिसकी वजह से लोग उन्हें नापसंद करते थे।
अपनी इन्ही आदतों की वजह से पॉली को कई grants और फ़ेलोशिप्स से वंचित कर दिया गया, और उन्हें प्रमोशन के टाइम भी अनदेखा कर दिया जाता था। यहां तक कि उन्हें अपनी रिसर्च को साइंटिफिक जर्नल्स में पब्लिश कराने में भी परेशानी हुई।
इस सबके बावजूद, पॉली अपनी रिसर्च पर काम करते रहे और आख़िरकार उन्होंने कैंसर की आनुवंशिक उत्पत्ति पर एक अभूतपूर्व पेपर प्रकाशित किया। हालाँकि, उनके काम को वैज्ञानिक समुदाय द्वारा काफी हद तक नजरअंदाज किया गया।
पॉली के example के ज़रिये ये चैप्टर first इम्प्रैशन की पॉवर को दर्शाता है। ऑथर कहते हैं की जब हम किसी से पहली बार मिलते हैं, तो हम उनके लुक्स, बॉडी लैंग्वेज इत्यादि के आधार पर उनके बारे में एक मेन्टल इमेज बना लेते हैं। और फिर आगे चलकर इन मेन्टल इमेजेस को झुठलाना मुश्किल होता है चाहे ये गलत ही क्यों न हों।
James Clear हमें यह भी सुझाव देते हैं की उन संकेतों (cues) के प्रति सचेत रहना चाहिए जिनसे हम लोगों की मेन्टल इमेज अपने मस्तिष्क में बना लेते हैं। हमें पूर्वाग्रहों (biases) से बचना चाहिए और इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि अगर कोई व्यक्ति हमारे preconceived notions में फिट नहीं बैठता वह हमारे लिए एक valuable asset साबित हो सकता है ।
The Best Way to Start a New Habit (नई आदत शुरू करने का सबसे अच्छा तरीका)
अपनी बुक एटॉमिक हैबिट्स में, जेम्स क्लियर नई आदतें शुरू करने के लिए एक आसान रास्ता बताते हैं और कहता हैं की आदत को जितना सरल और आसान बनाया जायेगा उसे अपनाना भी उतना ही आसाम होगा। वह अपनी बात को समझाते हुए कहते हैं की हमें बड़ी शुरुआत की जगह छोटी शुरुआत करनी चाहिए और धीरे धीरे उस छोटी शुरुआत को बड़ा बनाना चाहिए। हम छोटे क़दमों से से शुरुआत कर सकते हैं और जैसे-जैसे हम बेहतर होते जाएं, धीरे-धीरे कठिनाई का लेवल बढ़ा सकते हैं। वह कहते हैं की आदत को लम्बे समय तक कायम रखने के लिए उसे अट्रैक्टिव और satisfying बनाना भी ज़रूरी है।
उदाहरण के लिए, अगर हम एक्सरसाइज शुरू करना चाहते हैं, तो हम रोज़ 10 मिनट पैदल चलकर शुरुआत कर सकते हैं। एक बार जब हम इसके आदि हो जाएँ, तो हम धीरे-धीरे अपने वर्कआउट का समय और intensity बढ़ा सकते हैं।
ऑथर कहते हैं की छोटे, incremental changes समय के साथ बड़े परिणाम दे सकते हैं। उनकी सलाह का पालन करके, हम नई आदतों को शुरू करना और बनाए रखना आसान बना सकते हैं जो हमें हमारे लक्ष्यों को पाने में मदद करेंगी।
जेम्स क्लियर आगे कहते हैं कि नई आदतें शुरू करने के लिए सिर्फ इच्छाशक्ति यानी willpower ही काफी नहीं है। ऑथर के अनुसार किसी आदत के शुरू के पहले कदम को आसान बनाकर, हम अपनी झिझक को दूर कर सकते हैं और धीरे धीरे मोमेंटम बिल्ड कर सकते हैं। ऑथर इसे “2 Minute Rule” कहते हैं।
जैसे की, अगर हम एक्सरसाइज शुरू करना चाहते हैं, तो हम दिन में एक पुश-अप करके शुरुआत कर सकते हैं। यह एक छोटी और आसान शुरुआत है, इसलिए इसे रोज़ करना ज़्यादा मुश्किल भी नहीं होगा। एक बार जब हम एक पुश-अप रोज़ करने करने के आदि हो जायेंगे तो हम खुद बी खुद और ज़्यादा पुश-अप करने के लिए मोटीवेट होंगे।
ऑथर हमें ये भी समझाते हैं की शुरआत में हमें परफेक्शन पर ध्यान न देकर continuity पर ध्यान देना चाहिए। जब हम किसी काम को लम्बे समय तक करेंगे तो उसे करने में हम पारंगत भी हो जायेंगे। कहने का मतलब यह है कि किसी बड़ी आदत को परफेक्शन के साथ करने से अच्छा है की हम किसी छोटी आदत को लगातार करें।
Motivation Is Overrated; Environment Often Matters More
एटॉमिक हैबिट्स के इस चैप्टर में, ऑथर जेम्स क्लियर कहते हैं की आदत को बनाने में मोटिवेशन सबसे बड़ा कारण नहीं है। उनका कहना है कि हम उस आदत को अपनाने के लिए जो माहौल बनाते हैं, उसका हमारे व्यवहार पर कहीं ज़्यादा गहरा असर पड़ता है।
ऑथर कहते हैं कि मोटिवेशन बहुत काम समय के लिए रहता है और इसपर ज़्यादा भरोसा नहीं किया जा सकता है। हम एक नई आदत शुरू करने के लिए मोटिवेटेड फील कर सकते हैं, लेकिन अगर हमारे पास इस आदत को शुरू करने के लिए सही वातावरण (environment) नहीं है तो मोटिवेशन जल्दी ही फीका पड़ जायेगा।
उदाहरण के लिए, अगर हम एक्सरसाइज शुरू करना चाहते हैं, लेकिन हमारे पास एक्सरसाइज करने के लिए कपडे या equipments नहीं हैं, तो हमारे एक्सरसाइज शुरू करने की संभावना कम है। इसको एक और उद्दाहरण से समझते हैं -या, अगर हम स्वस्थ भोजन करना चाहते हैं, लेकिन हम घर में जंक फूड रखते हैं, तो हमारे जंक फ़ूड खाने के chances ज़्यादा हैं।
ऑथर जेम्स क्लियर सलाह देते हैं की हम ऐसा माहौल बनाने पर फोकस करें जिससे जो काम हम करना चाहते हैं उसे करना आसान हो जाए। इसका मतलब यह सुनिश्चित करना है कि हमारे पास सही resources, टूल्स और support systems मौजूद हैं। ऐसा करके हम उन obstacles और distractions को दूर कर सकते हैं जो उस काम को करना मुश्किल बनाते हैं।
अपने वातावरण को अनुकूल बनाकर, हम सफलता के लिए परिस्थितियाँ बना सकते हैं और इस बात की अधिक संभावना बना सकते हैं कि हम अपनी नई आदतों पर कायम रहेंगे।
The Secret to Self-Control (आत्म-नियंत्रण का रहस्य)
चैप्टर में ऑथर जेम्स क्लियर कहते हैं की आत्म-नियंत्रण (self-control) कोई ऐसी चीज़ नहीं है जिसके साथ हम पैदा होते हैं, बल्कि ये एक ऐसी आदत है जिसे हम विकसित कर सकते हैं। उनका कहना है कि आत्म-नियंत्रण एक ऐसी स्किल है जिसे प्रैक्टिस से सीखा और इम्प्रूव किया जा सकता है।
ऑथर अपनी बात को सपोर्ट करने के लिए एक रिसर्च का हवाला देते हैं जिसमे आत्म-नियंत्रण को हमारी muscle यानी मांसपेशी से compare किया गया है। जितना ज़्यादा हम इसका इस्तेमाल करते हैं, यह उतना ही यह मजबूत होता जाता है। और जितना कम हम इसका इस्तेमाल करते हैं, यह उतना ही कमजोर होता जाता है।
इसका मतलब यह है कि अगर हम अपने आत्म-नियंत्रण को बेहतर बनाना चाहते हैं, तो हमें इसकी रेगुलर प्रैक्टिस करनी होगी। प्रैक्टिस के लिए हम ऐसी चीज़ें चुन सकते हैं जिनमे आत्म-नियंत्रण की ज़रुरत होती है, जैसे स्वस्थ भोजन खाना, एक्सरसाइज करना और टेम्पटेशन को दूर रखना।
समय के साथ, ये छोटे-छोटे बदलाव और बड़ा बदलाव लाएंगे। हम अच्छे विकल्प चुनने और टेम्पटेशन को दूर करने में बेहतर हो जायेंगे।
ऑथर यह भी कहते हैं कि आत्म-नियंत्रण को आसान बनाना ज़रूरी महत्वपूर्ण है। इसका मतलब obstacles और distractions को दूर करना है। उदाहरण के लिए, यदि हम स्वस्थ खाना चाहते हैं, तो हम स्वस्थ भोजन को अपने सामने रख सकते हैं और unhealthy भोजन को अपनी नज़रों से दूर रख सकते हैं।
आत्म-नियंत्रण को आसान बनाकर, हम इस बात की अधिक संभावना हैं कि हम अपनी अच्छी आदतों पर कायम रहेंगे।
Temptation Bundling
ऑथर नयी आदतों को अपनाने में मददगार एक और तकनीक के बारे में बताते हैं जिसका नाम है “टेम्पटेशन बंडलिंग” जिसमे की हम जिस काम कर को करना चाहते हैं उसे उस काम के साथ जोड़ते हैं जो हमें करना ही करना है। जैसे की बच्चे अपना होमवर्क पूरा करने के बाद अपना पसंदीदा टीवी शो देख सकते हैं।
चूंकि यह तकनीक immediate gratification के सिद्धांत पर आधारित है इसलिए यह बखूबी काम करती है और टालमटोल दूर करने में मदद करती है। जब हमारे सामने कोई ऐसा काम आता है जो हम नहीं करना चाहते तो हमारा दिमाग अक्सर उससे बचने के तरीके ढूंढने की कोशिश करता है। लेकिन अगर हम उस कार्य को उस चीज़ के साथ जोड़ सकें जो हम करना चाहते हैं, तो इसे शुरू करना बहुत आसान हो जाता है।
उदाहरण के लिए, अगर हमारे ऑफिस का कुछ काम बचा हुआ है और हमें उसे करना है, तो हम खुद से वादा कर सकते हैं कि काम करने के बाद हम थोड़ी देर नेटफ्लिक्स देखेंगे। इससे इस बात की अधिक संभावना होगी कि हम अपना काम जल्दी पूरा कर लेंगे।
टेम्पटेशन बंडलिंग हमारे आत्म-नियंत्रण को बढ़ाने और ज़्यादा काम करने का एक शानदार तरीका है। जो काम हम करना चाहते हैं उन्हें उन कामों के साथ जोड़कर जो हमें करने ही करने है, हम नयी आदतों को अपनाना आसान बना सकते हैं।
How to Make a Habit Irresistible (आदत को अनूठा कैसे बनाएं)
टेम्पटेशन इस चैप्टर में, जेम्स क्लियर इस बारे में बात करते हैं कि आदतों को कैसे ज़्यादा अट्रैक्टिव और आसानी से कायम रखने लायक बनाया जाए। वह हैबिट स्टैकिंग, टेम्पटेशन बंडलिंग, और laziness के लिए डिजाइनिंग जैसी तकनीकों का उपयोग करने का सुझाव देते हैं।
हैबिट स्टैकिंग किसी मौजूदा आदत में एक नई आदत को जोड़ने को कहते हैं। उदाहरण के लिए, हम एक्सरसाइज करने के तुरंत बाद प्रोटीन रिच डाइट लेने की आदत दाल सकते हैं या ट्रेवल करते टाइम बुक पढ़ने की आदत डाल सकते हैं। हैबिट स्टैकिंग नयी आदत को करना आसान बना देता है क्यूंकि एक आदत के तो पहले से आदि होते ही हैं बस हमें उसके साथ कोई और अच्छी आदत जोड़नी होती है।
जब हम 2 ऐसी आदतों को जोड़ते हैं जिनमे से एक को करना हम पसंद करते हैं और दूसरी को नहीं तो उसे टेम्पटेशन बंडलिंग कहते हैं। उदाहरण के लिए, हम अपना healthy खाना खाने के बाद नेटफ्लिक्स पर कोई मूवी देख सकते हैं, या घर की सफाई करने के बाद शॉपिंग सकते है। ऐसा करके हम काम अट्रैक्टिव आदत को भी और अट्रैक्टिव बना सकते हैं क्योंकि यह आदत उस आदत से जुड़ी होती है जिसे हम करना चाहते हैं।
अगर हम नयी आदत को अपनाना इतना आसान बना लें की उसे न करने का कोई बहन ही न बना सकें तो ये Designing for Laziness कहलाता है। मतलब ये है की
हम नयी आदत को अपनाना जितना हो सके उतना सिंपल बना लें। उदाहरण के लिए, हम अपने एक्सरसाइज के कपडे रात को सोने से पहले ऐसी जगह रख सकते हैं जिससे सुबह उठकर हमें उन्हें ढूंढने में परेशानी न हो।
(अपने मस्तिष्क की शक्ति को समझने के लिए Napolean Hill की famous book Think and Grow Rich की समरी पढ़ें)
The Role of Family and Friends in Shaping Your Habits (आपकी आदतों को आकार देने में परिवार और दोस्तों की भूमिका)
जेम्स क्लियर “एटॉमिक हैबिट्स” के इस चैप्टर हमारी आदतों को बनाने में फैमिली और फ्रैंड्स के रोल के बारे में बात करते हैं। वह कहते हैं की जिन लोगों के साथ हम हम रहते हैं उनका हमारी आदतों पर भी असर पड़ता है। ऑथर के अनुसार हमारी आदतें उन पांच लोगों की आदतों का एवरेज हैं जिनके साथ हम सबसे ज़्यादा टाइम बिताते हैं। और हम सबसे ज़्यादा टाइम या तो अपनी फैमिली के साथ बिताते हैं या फिर अपने फ्रेंड्स के साथ। ऑथर यह भी कहते हैं की हमारी फैमिली और फ्रेंड्स अच्छी आदतें अपनाने और बुरी आदतों को छोड़ने में हमें सक्षम बना सकते हैं।
चूंकि हमारे पास ये ऑप्शन नहीं होता के हम अपनी फैमिली को चुन सकें क्यूंकि वो एक given फैक्टर है लेकिन दोस्त ऐसी चीज़ हैं जिन्हे हम खुद चुनते हैं और ऑथर के अनुसार हमें काफी समझदारी से दोस्त चुनने चाहिए और अपने आस पास ऐसे लोगों को रखना चाहिए जिनके जैसा हम बनना चाहते हैं। उद्धारण के लिए अगर हम healthy बनना चाहते हैं तो हमें health conscious लोगों के साथ रहना चाहिए। अगर हम सफल होना चाहते हैं तो अपने आस पास ऐसे लोगों को रखना चाहिए जो सफल हैं।
ऑथर हमें ये भी सुझाव देते हैं की हम अपनी फैमिली और फ्रैंड्स को अपना accountability partner भी बना सकते हैं। एकाउंटेबिलिटी पार्टनर हमें सही रास्ते पर चलने में हमारी मदद कर सकता है और हमें रास्ता भटकने से बचा सकता है। हमें ऐसे लोगों को एकाउंटेबिलिटी पार्टनर बनाना चाहिए जो ढूंढें जो हमें हमारे गोल्स के लिए जवाबदेह ठहराएगा और हमें मोटीवेट भी करेगा।
अपने फैमिली मेंबर और फ्रैंड्स को accountability partner बनाने के लिए ऑथर ने कुछ टिप्स दिए हैं जोकि इस प्रकार हैं-
- हमें अपने accountability partner को अपने के साथ गोल्स से अवगत करना चाहिए। उन्हें ये पता होना चाहिए की हम क्या हासिल करने की कोशिश कर रहे हैं।
- अपने accountability partner से regularly बात करते रहनी चाहिए। हम उन्हें अपनी प्रोग्रेस के बारे में बता सकते हैं और उनकी राय मांग सकते हैं।
- अपनी सफलताओं को अपने accountability partner के साथ celebrate करें। अपनी success को अपनों से शेयर करने और उसे celebrate करने जैसी कोई और फीलिंग नहीं है। इससे न सिर्फ हमारी अच्छी आदतें मज़बूत बनेंगी बल्कि हमें और आगे बढ़ने के लिए मोटिवेशन भी मिलेगा।
इन टिप्स का उपयोग करके हम अपनी फैमिली और फ्रेंड्स को अच्छी आदतें अपनाने में अपना मददग़ार बना सकते हैं और एक ऐसा वातावरण बना सकते हैं जो हमें हमारे गोलास तक पहुँचने में मदद करेगा।
How to Find and Fix The Cause of Your Bad Habits (अपनी बुरी आदतों के कारणों को कैसे खोजें और ठीक करें)
इस चैप्टर में ऑथर जेम्स क्लियर कहते हैं की बिहेवियर चेंज के 4 rules, हैबिट लूप, हैबिट स्टैकिंग और implementation intentions का उपयोग करके हम बुरी आदतों के कारण पहचान सकते हैं और उन्हें ठीक करने के लिए काम कर सकते हैं।
इन टेक्निक्स का उपयोग करके हम अपनी बुरी आदतों को unclear, unattractive, tough और dissatisfying बनाकर उन्हें दूर करने का प्रयास कर सकते हैं।
ऑथर हमें implementation intention के बारे में भी बताते हैं जो एक तरह की गोल setting है जो हमें हमारी बुरी आदतों को बदलने में सहायक हो सकती है। । वे implementation intention में हमें किसी बुरी आदत के ट्रिगर (cue) मिलने पर उसे न करने के लिए पहले से प्लान बनाना होता है जिसमे उस टेम्पटेशन को रेसिस्ट करने के लिए options के बारे में सोचना होता है।
Implementation intention में 2 चीज़ें होती हैं जोकि इस प्रकार हैं:
संकेत (Cue): cue उस ट्रिगर का काम करता है जो हमें बुरी आदत को करने के लिए सिग्नल देगा।। जैसे की कुछ लोगों के लिए तनाव इस बात का संकेत हो सकता है के उन्हें स्मोकिंग करनी चाहिए या फिर अलकोहल का सेवन करना चाहिए।
प्रतिक्रिया (Response): यह वो एक्शन है जोकि आपने किसी cue या ट्रिगर के लिए प्लान किया होता है। जैसे ऊपर वाले उद्दाहरण में तनाव के लिए आप यह प्लानिंग कर सकते हैं की आप मैडिटेशन करेंगे या ब्रीथिंग एक्सरसाइज करेंगे।
ऑथर कहते हैं की ये तकनीक इसलिए उपयोगी होती है क्यूंकि ये हमारे बिहेवियर को ऑटोमेट करने में मदद करती है। जब भी हमें किसी बुरी आदत का ट्रिगर मिलता है तो हमने अपने मस्तिष्क को उस ट्रिगर को अच्छा रिस्पांस देने के लिए प्रोग्राम किया हुआ होता है।
ऑथर कहते हैं की इन तकनीक का उपयोग करके हम बुरी आदतों से छुटकारा पा सकते हैं।
Walk Slowly, But Never Backward (धीरे चलें, लेकिन कभी पीछे न हटें)
जेम्स क्लियर अपनी किताब “एटॉमिक हैबिट्स” के इस चैप्टर में बताते हैं की किसी आदत को बनाने में consistency सबसे ज़्यादा ज़रूरी चीज़ है। हमें एकदम किसी बड़े बदलाव को करने की जगह छोटे लेकिन लगातार किये जाने वाले बदलावों पर फोकस करना चाहिए। अपनी बात को समझने के लिए वह कछुए और खरगोश की कहानी का उद्दाहरण देते हुए बताते हैं की कछुआ दौड़ इसलिए जीतता है क्योंकि वह बिना रुके लगातार चलता रहा और उसने कंसिस्टेंसी पर फोकस किया, जबकि खरगोश हार जाता है क्योंकि वह रुक जाता है और लगातार नहीं दौड़ता भले ही वह कछुए से ज़्यादा बड़ी छलांग क्यों न लगता हो।
Plateau of Latent Potential
ऑथर कहते हैं की जब हम किसी आदत को बदलने की कोशिश करते हैं तो हमें patience रखना चाहिए और continuity maintain करनी चाहिए। हो सकता है की कभी हमें अपने मन मुताबिक रिजल्ट्स न मिलें लेकिन इसका ये मतलब नहीं है की हम प्रोग्रेस नहीं कर रहे हैं।
ऑथर इसे “Plateau of Latent Potential” कहते हैं जिसमे की हमें न दिखने/महसूस होने वाले छोटे छोटे changes अपना काम कर रहे होते हैं।
समय के साथ और सयंम से हमें सफलता ज़रूर मिलेगी बस हमें कोशिश करना नहीं छोड़ना है और continuity मेन्टेन करनी है।
1% Rule
ऑथर हमें ये भी समझते हैं की हमें एक ही बार में सब कुछ बदलने की कोशिश न करके, छोटे, incremental changes करने पर फोकस करना चाहिए। ऑथर यहाँ हमें
“1% Rule” के बारे में बताते हैं जो ये कहता है की हमें रोज़ सिर्फ 1% बेहतर करने की कोशिश करनी चाहिए और समय के साथ इसी से हम noticeable बदलाव ला सकते हैं।
1% Rule बड़े बदलाव करने की कोशिश करने की तुलना में ज़्यादा बेहतर ऑप्शन है क्यूंकि बड़े बदलाव हमें विफ़लता की ओर ले जाते हैं।
गोल्डीलॉक्स ज़ोन
सभी आदतें एक जैसी नहीं बनाई जातीं। कुछ आदतें बहुत आसान होती हैं और उन्हें बनाना ज़्यादा मुश्किल नहीं होता, जबकि कुछ आदतें बनाना बहुत मुश्किल होता है।
सबसे अच्छी आदतें वे हैं जिन्हें अपनाने में हमें ज़रुरत भर की चुनौती का सामना करना पड़े तभी हम engage रह सकते हैं, लेकिन नयी आदतें इतनी कठिन नहीं होनी चाहिए के उन्हें अपनाना हमें भारी पड़ जाए। इसी ‘कम्फर्ट ज़ोन’ को “गोल्डीलॉक्स ज़ोन” के नाम से जाना जाता है।
हैबिट स्कोरकार्ड
अपनी प्रोग्रेस को ट्रैक करना बहुत ज़रूरी है जिससे हमें पता लग सके की हम कैसा परफॉर्म कर रहे है और इम्प्रूवमेंट के areas को identify कर सकें।
ऑथर अपनी प्रोग्रेस को ट्रैक करने के लिए “हैबिट स्कोरकार्ड” का उपयोग करने की सलाह देते हैं। इस टूल का उपयोग करके हम अपनी डेली आदतों को ट्रैक कर सकते हैं और खुद को स्कोर दे सकते हैं ।
हैबिट ट्रैकर के रेगुलर इस्तेमाल से हमें ट्रैक पर रहने में मदद मिलेगी और ज़रुरत के मुताबिक परिवर्तन करने में भी ये टूल सहायक है।
दो बार कभी न चूकें
ऑथर कहते हैं की सेटबैकस को टाला तो नहीं जा सकता, लेकिन ज़रूरी यह है कि एक सेटबैक को विफ़लता का रूप न लेने दिया जाए। अगर नयी आदत को अपनाते टाइम हमसे कोई गलती या चूक हो जाती है, तो यह एक नार्मल बात है और हमें इसके लिए खुद को दोष नहीं देना चाहिए। बस जितनी जल्दी हो सके हमें ट्रैक पर वापस आ जाना चाहिए।
जितनी जल्दी हम असफलता के बाद वांछित व्यवहार फिर से शुरू करेंगे, अपनी पुरानी आदतों में वापस आने की संभावना उतनी ही कम होगी।
The Law of Least Effort (कम से कम प्रयास का लॉ)
मानव व्यवहार और एनर्जी का कंज़र्वेशन
इस चैप्टर में ऑथर हमें Law of Least Effort के बारे में बताते हैं जो कहता है की इंसानी फ़ितरत होती है की वह ऐसा रास्ता चुनते हैं जिसमे मुश्किलें कम से कम हों और ऐसा इसलिए है क्योंकि इसमें कम एनर्जी और एफर्ट की ज़रुरत पड़ती है।
ऑथर बताते हैं की हम अच्छी आदतों को आसान बनाकर इस लॉ का उपयोग अपने लाभ के लिए कर सकते हैं। यह बड़ी आदतों को छोटे-छोटे चरणों में बांटकर, उन्हें आसान बनाकर और उन्हें ऐसी दूसरी आदतों के साथ जोड़कर किया जा सकता है जो हम पहले से ही करते हैं।
अपनी आदतों को आसान बनाकर, हम परिवर्तन के शुरुआती प्रतिरोध पर काबू पा सकते हैं और मोमेंटम बिल्ड कर सकते हैं। एक बार मोमेंटम बन जाता है, तो आगे बढ़ना और स्थायी परिवर्तन करना आसान हो जाता है।
डिफ़ॉल्ट चॉइस से डिसिशन को सरल बनाना
ऑथर हमें डिफ़ॉल्ट decisions के बारे में बताते हैं जो ऐसी चॉइस होती हैं जिन्हे हम समय से पहले लेते हैं जिससे हमें उन्हें तुरंत न लेना पड़े।
डिफ़ॉल्ट decisions, decision-making को simplify बनाता है और स्ट्रेस को कम करता है क्यूंकि हमें हर बार निर्णय लेते समय हर available ऑप्शन के pros और cons को परखना नहीं पड़ता है।
डिफ़ॉल्ट decisions हमारी निर्णय लेने की क्षमता को भी बेहतर बनाते हैं क्यूंकि अगर हमने पहले से ही कुछ करने का निर्णय कर लिया है तो हमें कुछ करने की अधिक संभावना है।
उदाहरण के लिए, अगर हम healthy खाना खाना चाहते हैं, तो हम ऑफिस में अपना लंच हमेशा बाहर खाने के बजाय घर से पैक कराकर ले जाने का डिफ़ॉल्ट डिसिशन ले सकते हैं। इस तरह, हमें लंच के लिए healthy ऑप्शन ढूंढने में टाइम नहीं वेस्ट करना पड़ेगा। चूंकि हमने समय से पहले ही निर्णय ले लिया होगा और हमें उस पर अमल करने की अधिक संभावना है।
“डिफ़ॉल्ट decisions” लॉ ऑफ़ लीस्ट एफर्ट के साथ भी मेल खता है जो कहता है की मनुष्य स्वाभाविक रूप से कम से कम प्रतिरोध का रास्ता अपनाना पसंद करते हैं। डिफ़ॉल्ट निर्णय लेकर, हम अपनी वांछित आदतों का पालन करना अपने लिए आसान बना सकते हैं।
How to Stop Procrastinating by Using the Two-Minute Rule (दो मिनट के नियम का उपयोग करके टालमटोल को कैसे रोकें)
जेम्स क्लियर इस चैप्टर में हमें बताते हैं की ऐसी किसी भी आदत जिसे पूरा होने में दो मिनट लगें को शुरू और बरकरार रखा जा सकता है।
इसकी वजह यह है की एक नई आदत शुरू करने में ही सबसे ज़्यादा प्रतिरोध का सामना करना पड़ता है। एक बार अगर हम शुरुआत कर देते हैं, तो आगे बढ़ना आसान हो जाता है।
बड़ी आदतों को छोटे, दो मिनट के कामोँ में तोड़कर, हम इनिशियल रेजिस्टेंस को दूर करना और मोमेंटम बनाना शुरू करना आसान बना सकते हैं।
उदाहरण के लिए, अगर हम दौड़ना शुरू करना चाहते हैं, तो हम हर दिन सिर्फ दो मिनट दौड़कर शुरुआत कर सकते हैं। एक बार जब वह आदत स्थापित हो जाती है, तो हम धीरे-धीरे हर दिन दौड़ने का समय बढ़ा सकते हैं।
2 मिनट रूल हैबिट फार्मेशन में बहुत इम्पोर्टेन्ट रोल प्ले करता है और यह लॉ ऑफ़ लीस्ट एफर्ट को भी सच साबित करता है । मनुष्य स्वाभाविक रूप से कम से कम प्रतिरोध का रास्ता अपनाना पसंद करता है, और 2 मिनट रूल ऐसा करना आसान बनाता है। ऑथर कहते हैं की अपनी आदतों को हम जितना आसान बना लेंगे उतना ही हम इनिशियल रेसिस्टेन्स को काम करके अपने गोल्स की तरफ़ मोमेंटम से बढ़ सकते हैं।
2 मिनट रूल का उपयोग करने के लिए यहां कुछ सुझाव दिए गए हैं:
- उन सभी आदतों की एक लिस्ट बनाएं जिन्हें हम स्टार्ट करना चाहते हैं।
- हर एक आदत को 2 मिनट रूल प्रत्येक आदत को दो मिनट के काम में विभाजित करें।
- हर आदत को आज से ही शुरू करें.
- पूर्णता के बारे में चिंता मत करो. बस आरंभ करने पर ध्यान केंद्रित करें.
- परफेक्शन की परवाह किये बिना आदत को करने के समय को धीरे-धीरे बढ़ाएँ।
- अपनी सफलताओं का जश्न मनाएं, चाहे वह कितनी भी छोटी क्यों न हो।
इन बातों का उपयोग करके, हम अपनी इच्छानुसार किसी भी आदत को शुरू करने और बनाए रखने के लिए खुद को सक्षम बना सकते हैं।
How to Make Good Habits Inevitable and Bad Habits Impossible (अच्छी आदतों को अपरिहार्य और बुरी आदतों को असंभव कैसे बनाएं)
3rd Law of Behavior Change
जेम्स क्लियर “एटॉमिक हैबिट्स” के बताते हैं की हमारा वातावरण हमारी आदतों को बनाने में इम्पोर्टेन्ट रोल प्ले करता है। वह कहते हैं की ऐसी आदतों को जिन्हे हम बनाना चाहते हैं convenient बनाकर और ऐसी आदतों को जिन्हे हम छोड़ना चाहते हैं inconvenient बनाकर अपना और छोड़ सकते हैं। हमें ऐसा वातावरण की कोशिश करनी चाहिए जिससे की नकारात्मक कामों में obstacle पैदा हो और सकारात्मक यानी अच्छी आदतों करने में सुविधाजनक बनें।
Environmental Cues and Habit Initiation
ऑथर हमें बताते हैं की अगर हमें अपने वातावरण को सही तरह से डिज़ाइन किया होगा तो एनवायर्नमेंटल cues हमें अच्छी आदतें अपनाने के लिए ट्रिगर कर सकते हैं। वह यह भी कहते हैं की हमें अच्छी आदतों के cues को ज़्यादा obvious और prominent बनाना चाहिए और अपने वातावरण में ऐसे cues रखने चाहिए जो हमें अच्छी आदतें अपनाने के लिए मोटीवेट करें।
Digital Optimization
ऑथर हमें सलाह देते हैं की हमें distractions को कम करने की कोशिश करनी चाहिए और ऐसे apps का इस्तेमाल करना चाहिए जो अच्छी आदतें अपनाने में मददगार हों।
उदाहरण के लिए, हम काम करते समय सोशल मीडिया वेबसाइटों को ब्लॉक करने के लिए एक प्रोडक्टिविटी ऐप का उपयोग कर सकते हैं।
The Cardinal Rule of Behavior Change (व्यवहार परिवर्तन का कार्डिनल नियम)
What is immediately rewarded is repeated. What is immediately punished is avoided.
James Clear
व्यवहार परिवर्तन का प्रमुख नियम
ऑथर इस चैप्टर में हमें कार्डिनल रूल ऑफ़ बिहेवियर चेंज के बारे में बताते हैं जो कहता है की समय के साथ लगातार किये गए छोटे छोटे incremental improvements ही लम्बे समय तक टिकने वाले changes लाने का सबसे कामयाब तरीका है।
यह नियम कहता है की अगर हम रातों-रात बड़े पैमाने पर बदलाव करने की कोशिश करने के बजाय अपनी आदतों में छोट छोटे लेकिन स्थायी बदलाव करें तो हमारे सफल होने के चान्सेस ज़्यादा होते हैं।
असल में यह रूल कंपाउंड इंटरेस्ट के प्रिंसिपल को फॉलो करता है। कंपाउंड इंटरेस्ट कहता है की इन्वेस्ट की गई छोटी सेविंग्स समय के साथ अदभुत परिणाम दे सकती हैं।
Compound Growth
असल में ऊपर दिया गया रूल कंपाउंड इंटरेस्ट के प्रिंसिपल को फॉलो करता है। कंपाउंड इंटरेस्ट कहता है की इन्वेस्ट की गई छोटी सेविंग्स समय के साथ अदभुत परिणाम दे सकती हैं। ठीक इसी तरह compounded growth कहती है कि छोटे लेकिन लगातार किये गए improvements समय के साथ मिलकर महत्वपूर्ण परिणाम दे सकते हैं।
उदाहरण के लिए, अगर हम 5% के इंटरेस्ट रेट वाले सेविंग्स अकाउंट में 100 रुपये निवेश करते हैं, तो एक वर्ष बीत जाने पर हमारे पास 105 रुपये होंगे। अगले वर्ष, हमें अपने इनिशियल इन्वेस्टमेंट 100 रुपये पर तो इंटरेस्ट मिलेगा ही, साथ ही पहले वर्ष मिले इंटरेस्ट पर भी ब्याज मिलेगा, इसलिए दूसरे वर्ष के अंत में हमारे पास 110.25 रुपये होंगे।
और यह प्रोसेस साल-दर-साल जारी रहकर छोटी सी रकम को काफी बड़ा बना देगी।
छोटे छोटे लाभों का इकठ्ठा होना
छोटे छोटे लाभ यानी marginal gains के अनुसार कई भले ही हमें छोटे छोटे सुधारों के नगण्य फायदे दिखें, लेकिन एक साथ इकट्ठे होकर ये छोटे छोटे मार्जिनल गेन्स काफी असाधारण परिणाम दे सकता है।
ऑथर अपनी समझने के लिए ब्रिटिश साइकिलिंग टीम का उद्दाहरण देते हैं, जिसने 2012 से 2019 तक लगातार सात बार टूर डी फ्रांस जीता। और वह ऐसा इसलिए कर पाए क्यूंकि उन्होंने अपना ध्यान मार्जिनल गेन्स को ऑप्टिमाइज़ करने में लगाया, जैसे कि बाइक का डिज़ाइन, डाइट यानी आहार की संरचना और ट्रेनिंग तकनीक इत्यादि।
अगर हम ऊपर दिए गए कारणों को individually देखेंगे तो इनमें से हर एक कारण हमें महत्वहीन या बहुत छोटा लगेगा, लेकिन उन सभी को एक साथ करने और ऑप्टिमाइज़ करने से टीम की परफॉरमेंस में काफी इम्प्रूवमेंट हुआ
How to Stick with Good Habits Every Day (हर दिन अच्छी आदतों से कैसे जुड़े रहें)
आदतें बनाने की राह में मुश्किलें
इस चैप्टर में ऑथर जेम्स क्लियर कहते हैं हमारे लिए रोज़ नयी अच्छी आदतें अपनाना मुश्किल हो सकता है और इसके कई कारण हैं जैसे की आदतें थोड़े टाइम बाद बोरिंग लगने लगती हैं या फिर हमारी लाइफस्टाइल की वजह उनमे distractions आ सकते हैं या फिर हमें अपनी आदतों को बनाये रखने में मोटिवेशन की कमी भी हो सकती है। इन्ही सब बातों से उबरने के लिए ऑथर ने हमें कुछ strategies बताई हैं जिनके बारे में आगे बताया गया है।
सीनफील्ड स्ट्रेटेजी/द पेपर क्लिप स्ट्रैटेजी: विज़ुअलाइज़िंग प्रोग्रेस
ऑथर हमें आदतें बनाने की एक तकनीक के बारे में बताते जिसका उपयोग हास्य अभिनेता जेरी सीनफील्ड ने किया और इस तकनीक का उन्ही के नाम पर रखा गया है। जेरी को चुटकुले लिखने की आदत डालनी थिस और इस आदत को अपनाने में उन्हें थोड़ी कठिनाई हो रही थी। फिर उन्होंने चुटकुले लिखने के बाद उन दिनों को कैलेंडर में मार्क करना शुरू कर दिया जिस दिन वह चुटकुले लिख लेते थे। अपने कैलेंडर को देखकर उन्हें लिखने के लिए और मोटिवेशन मिलता था।
जैसे-जैसे दिनों की संख्या बढ़ती रहती है, वैसे वैसे हमें आदत को बनाए रखने के लिए ज़्यादा मोटिवेशन मिलता है क्यूंकि हम इस चेन को तोडना नहीं चाहते हैं।
उदाहरण के लिए, अगर हम रोज़ एक्सरसाइज करना शुरू करना चाहते हैं, तो हम एक्सरसाइज करने वाले दिन को कैलेंडर पर मार्क कर सकते हैं। जैसे-जैसे दिनों की संख्या ज़्यादा होती जाएगी, हम एक्सरसाइज करने के लिए मोटीवेट होते रहेंगे।
ऑथर कहते हैं की सीनफील्ड स्ट्रेटेजी आदतों को बनाए रखने का एक सरल लेकिन प्रभावी तरीका है। जब हम कोई नई आदत शुरू करते हैं, तो हम उस आदत को और लंबा होते देखने की इच्छा से प्रेरित होते हैं। जैसे-जैसे यह सिलसिला लंबा होता जाता है, मोटिवेशन भी मजबूत होता जाता है। ज़रूरी यह है कि इस क्रम को कभी न तोड़ें, भले ही इसके लिए केवल कुछ मिनटों के लिए उस आदत को क्यों न करना पड़े।
The Truth About Talent-(When Genes Matter and When They Don’t) (प्रतिभा के बारे में सच्चाई – कब जीन मायने रखता है और कब नहीं)
The Nature vs. Nurture Debate
एटॉमिक हैबिट्स के इस चैप्टर में ऑथर हमें बताते हैं की हमारी genes हमारे कुछ physical attributes पर थोड़ा बहुत असर तो डाल सकती है, लेकिन कौशल का विकास काफी हद तक हमारे वातावरण और हमारे द्वारा की गयी प्रैक्टिस पर निर्भर करता है।
Deliberate practice ऐसी practice है जिसमें परफॉरमेंस को बेहतर बनाने के लिए फोकस्ड efforts शामिल होते हैं। ऑथर कहते हैं की deliberate practice
genetic limitations को पार कर सकता है और हमें महारत हासिल करने में मदद कर सकता है।
जन्मजात प्रतिभा का मिथक
ऑथर कहते हैं की प्रतिभा का असल रूप तभी सामने आता है जब हम मेहनत करते हैं। जो लोग जल्दी शुरुआत करते हैं खूब मेहनत करते हैं वही अपने फील्ड में कामयाब होते हैं।
ऑथर यह भी कहते हैं की जो कौशल जन्मजात प्रतीत होते हैं वे अक्सर अथक परिश्रम और अनुभव का परिणाम होते हैं। साथ ही साथ ऑथर हमें यह भी समझते हैं की शुरुआत में मिली सफलता से हमें ये लग सकता है की ये हमारे टैलेंट की वजह से मिली है और हम आगे मेहनत करने से चूक जायेंगे और जिसकी वजह से ये सफलता ज़्यादा समय तक नहीं रह सकती। इसलिए हमें थोड़ा सावधान रहना चाहिए और मेहनत करने से नहीं बचना चाहिए चाहे हम कितने भी टैलेंटेड क्यों न हों।
एक रिसर्च के अनुसार किसी विशेष क्षेत्र में महारत हासिल करने के लिए हमें लगभग 10,000 घंटे की deliberate practice की ज़रुरत होती है। लेकिन ऑथर यह भी कहते हैं की क्वालिटी और फोकस्ड प्रैक्टिस, क्वांटिटी से ज़्यादा ज़रूरी है और अहम् रोल प्ले करती है। हमें अच्छी परफॉरमेंस के लिए प्रयास और अभ्यास ध्यान देना चाहिए और ऑथर इसी को विकास मानसिकता कहते हैं जिसे आगे बढ़ने के लिए अपनाना बहुत ज़रूरी है।
The Downside of Creating Good Habits (अच्छी आदतें बनाने का नकारात्मक पहलू)
एटॉमिक हैबिट्स के इस चैप्टर में ऑथर हमें बताते हैं की हम जो भी काम करते हैं उससे पता चलता है की हम किस तरह के इंसान बनना चाहते हैं। वह कहते हैं की हमारी आदतें ही हमारी पहचान बन जाती हैं इसलिए हमें अपनी आदतों के संभावित नुकसान के बारे में भी चाहिए। उदाहरण के लिए, अगर हम unhealthy खाना खाने की आदत बना लेते हैं तो हम खुद को unhealthy इंसान बना रहे हैं।
Keystone Habits
कीस्टोन आदतें ऐसी आदतें हैं जिनक हमारे जीवन के अन्य क्षेत्रों पर भी असर पड़ता है। उदाहरण के लिए, अगर हम regularly एक्सरसाइज करने की आदत बना लेते हैं तो इसका असर ये हो सकता है की हमें नींद अच्छी आये, हम अच्छा खाना खाएं और पहले से ज़्यादा एनर्जेटिक महसूस करें। ऑथर कहते हैं की हम कीस्टोन आदतों पर फोकस करने से हम एक साथ कई अच्छी आदतें अपना सकते हैं।
Rigid हैबिट्स
ऑथर कहते हैं की अगर हम अपनी आदतों पर ध्यान न दें तो आदतें rigid और restrictive हो सकती हैं। कुछ आदतें ऐसी होती हैं जिन्हे हम करते करते ऐसे हो जाते हैं की हम उन्हें बदलने के लिए तैयार ही नहीं होते भले ही उन आदतों का हमारे जीवन में कोई फायदा न हो। ऑथर कहते हैं की यही वजह है की हमें अपने अंदर सेल्फ अवेयरनेस डेवलप करनी चाहिए जिससे हमें ये पता रहे के कौन सी आदत हमारे लिए फायदेमंद है और कौनसी नहीं। तभी हम बुरी आदतों से बच पाएंगे।
मेटा-आदतें
मेटा-आदतें ऐसी आदतें हैं जो हमें गाइड करती हैं कि हम अपनी दूसरी आदतों के प्रति कैसे दृष्टिकोण रखते हैं। उदाहरण के लिए, अपनी प्रोग्रेस को ट्रैक करने की आदत हमें मोटिवेटेड रहने में हमारी मदद कर सकता है। मेटा-आदतें हमें अपनी आदतों के प्रति ज़्यादा जागरूक रहने में मदद कर सकती हैं, और वे बुरी आदतों के नकारात्मक प्रभावों से बचने में हमारी मदद कर सकती हैं।
Conclusion (निष्कर्ष)
तो दोस्तों ये थी Atomic Habits Book Summary in Hindi
इस बुक में दी गयी टेक्निक्स का उपयोग आप भी पर्सनल डेवलपमेंट और अपने जीवन में पॉजिटिव changes लाने के लिए कर सकते हैं। इस बुक में ऑथर ने हैबिट्स को बनाने की साइंस के बारे में बताया है जिसमे छोटे छोटे लेकिन लगातार किये जाने वाले बदलावों की पावर को दर्शाया गया है। अगर आप भी अपने जीवन में बदलाव लाना चाहते हैं, तो आपको “एटॉमिक हैबिट्स” ज़रूर पढ़नी चाहिए।
दोस्तों, आप कौन सी बुरी habit छोड़ना चाहते हो। या नयी हैबिट बनाना चाहते हो ? और उसके लिए इस बुक में बताये गए कौन से टूल use करोगे, हमें Comments section में जरूर बताएँ।
I hope के आपको ये postअच्छी लगी होगी और आपको कोई अच्छी habit को develop करने में help भी मिलेगी. अगर ये post अच्छी लगी हो तो please इसे अपनी family और friends के साथ इसे share कीजिये। आप इस समरी को हमारे यूट्यूब चैनल पर भी देख सकते हैं पोस्ट को पूरा पढ़ने के लिए आपका धन्यवाद।
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FAQs (अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न)
What is the summary of the book Atomic Habits?
एटॉमिक हैबिट्स की समरी ये है के हम अपने जीवन में छोटे छोटे बदलाव करके कोई भी अच्छी हैबिट डेवेलोप कर सकते हैं और किसी भी बुरी हैबिट को छोड़ सकते हैं
Is Atomic Habits worth reading?
अगर आप अपने जीवन को बेहतर बनाना चाहते हैं तो आपको ये बुक ज़रूर पढ़नी चाहिए
What are the 4 Atomic Habits?
1) make it obvious,
2) make it attractive,
3) make it easy, and
4) make it satisfying.
What is the meaning of the book Atomic Habits?
The meaning of the book “Atomic Habits” is to emphasize the power of small, consistent habits in bringing about significant and lasting changes in our lives. It teaches us to focus on incremental improvements and align our habits with our desired identity to achieve personal and professional growth.
Can a 13 year old read Atomic Habits?
Yes, a 13-year-old can read “Atomic Habits” by James Clear. The book offers valuable insights and practical strategies for developing positive habits and achieving personal growth. While some concepts may require a level of maturity and self-reflection, the book can provide valuable guidance for young readers in understanding the importance of habits and how they can shape their lives. Parents or guardians may choose to discuss the concepts with the child and provide guidance as needed.
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