Introduction- The Subtle Art of Not Giving a F*ck Summary in Hindi (परिचय)
हेलो दोस्तों, स्वागत है आपका The Subtle Art of Not Giving a F*ck Summary in Hindi में।
“The Subtle Art of Not Giving a F*ck” लेखक मार्क मैनसन की ऐसी किताब है जिसे दुनियाभर में बहुत पसंद किया गया है।
दोस्तों, ये दुनिया ऐसे सेल्फ-हेल्प गुरुओं से भरी पड़ी है जो कहते हैं की हमें परफेक्शन और पाजिटिविटी का पीछा करना चाहिए। हमें लगातार ये बात बताई जाती है की हमें खुद पर विश्वास करना चाहिए, अपने सपनो को फॉलो करना चाहिए और कभी भी हार नहीं माननी चाहिए। क्या कभी आपने सोचा है की ऐसा भी हो सकता है की ये सब बातें फायदे से ज़्यादा आपको नुकसान पहुंचा रही हों।
The Subtle Art of Not Giving a F*ck इन सब बातों का उत्तर देती है। बुक के ऑथर Mark Manson ट्रेडिशनल सेल्फ-हेल्प के तरीक़ों को चुनौती देते हैं और हर समय ख़ुशी या सकारात्मकता का पीछे करने और अपने नेगेटिव इमोशंस को दबाने के नुकसान के बारे में हमें बताते हैं। वह कहते हैं की हमारा फोकस हमेशा सकारात्मक रहने के बजाए ऐसी चीज़ों पर होना चाहिए जो वास्तव में महत्वपूर्ण हैं। अपने जीवन में दुःख, दर्द, असफ़लता और इम्पेर्फेक्शन जैसी चीज़ों को एक्सेप्ट करके हम अपने जीवन को और अधिक संतुष्ट बना सकते हैं।
ऐसी दुनिया में जहाँ हमें निरंतर प्रयास करने के लिए कहा जाता है, ये बुक हमें सिखाती है की कभी कभी सबसे महत्वपूर्ण बात जाने देना है।
तो आइये शुरू करते हैं The Subtle Art of Not Giving a F*ck Summary in Hindi
Chapter 1: Don’t Try (कोशिश मत करिये)
The desire for more positive experience is itself a negative experience. And, paradoxically, the acceptance of one’s negative experience is itself a positive experience.
अधिक सकारात्मक अनुभव की इच्छा अपने आप में एक नकारात्मक अनुभव है। और, विरोधाभासी रूप से, किसी के नकारात्मक अनुभव को स्वीकार करना अपने आप में एक सकारात्मक अनुभव है।
फ़ीडबैक लूप फ्रॉम हेल
बुक के शुरुआती चैप्टर में ऑथर हमें फीडबैक लूप फ्रॉम हेल के बारे में बताते हैं जोकि नेगेटिव विचारों और इमोशंस का ऐसा दुष्चक्र है जो लोगों को हताशा और नाखुशी की स्तिथि में फंसा सकता है। इसकी शुरुआत किसी बाहरी घटना या स्तिथि से होती है जो चिंता, उदासी या क्रोध जैसी नकारात्मक भावना को जन्म देती है। इस भावना के जवाब में हम नकारात्मक विचारों या बिहैवियर में engage हो सकते हैं, जैसे की समस्या पर ध्यान देना, अपनी पुरानी गलतियों पर चिंतन करना, या स्तिथि से पूरी तरह से बचना।
ऑथर का मानना है की ये नकारात्मक विचार और व्यवहार केवल नकारात्मकता को बढ़ाने का काम करते हैं, जिससे एक ऐसा दुष्चक्र बनता है जिससे बच पाना मुश्किल हो सकता है।
इससे कैसे बचें?
फ़ीडबैक लूप फ्रॉम हेल से बचने का सबसे आसान तरीक़ा यह है की ऐसी चीज़ों को कण्ट्रोल करने की कोशिश न की जाए जो हमारे कण्ट्रोल से बाहर हैं और सच्चाई को एक्सेप्ट किया जाए। इसका मतलब यह स्वीकार करना है कि नकारात्मक भावनाएँ जीवन का स्वाभाविक हिस्सा हैं और हम हमेशा उनसे बच नहीं सकते हैं।
इसका एक मतलब इस सच्चाई को स्वीकार करना है की हमारे साथ होने वाली हर चीज़ को हम नियंत्रित नहीं कर सकते हैं और हमें निश्चितता और नियंत्रण की भावना को त्याग देना चाहिए।
जब हम इस सच्चाई को स्वीकार कर लेते हैं तो हम अपने नेगेटिव इमोशंस से ख़ुद को कण्ट्रोल करने की पावर छीन लेते हैं और तब हम ऐसी चीज़ों पर अपना ध्यान केंद्रित कर सकते हैं जिन्हे हम कण्ट्रोल कर सकते हैं जैसे अपना बिहेवियर।
The Subtle Art of Not Giving a F*ck
The Subtle Art of Not Giving a F*ck हमें उदास रहना नहीं सिखाती है बल्कि यह हमें बताती है की हमें अपनी एनर्जी को ऐसी चीज़ों पर फोकस करना चाहिए जो हमारे लिए वास्तव में महत्वपूर्ण हैं। इसका मतलब हैं की उन चीज़ों को जाने देना जिन्हें हम नियंत्रित नहीं कर सकते और उन चीज़ों के बारे में सोचना जो हमारे नियंत्रण में हैं।
बुक हमें यह भी सिखाती है की हम अपनी खुशियों के लिए ख़ुद ज़िम्मेदार हैं क्यूंकि दूसरों से ये अपेक्षा रखना की वो हमें खुश रखेंगे बेईमानी है और दुसरे लोग कैसा फील करते हैं ये चीज़ भी हमारे नियंत्रण से बहार है। हम सिर्फ अपने थॉट्स और एक्शन्स को कण्ट्रोल कर सकते हैं।
ऐसी चीज़ों के बारे में न सोचकर जिन्हे हम कण्ट्रोल नहीं कर सकते हम खुद को ख़ुश रहने की एक वजह देते हैं तथा हम दूसरों के साथ भी बेहतर सम्बन्ध बना सकते हैं क्यूंकि खुश रहने के लिए हमें उनकी आवश्यकता नहीं होती या फिर ये भी कहा जा सकता है की हमें उनसे ये अपेक्षा नहीं होती के वो हमें खुश रखेंगे और काम अपेक्षा का मतलब है अधिक ख़ुशी।
The Subtle Art of Not Giving a F*ck अच्छा जीवन जीने के लिए एक नया दृष्टिकोण हमारे सामने रखती है। यह हमें हमेशा सकारात्मक या खुश रहने की बजाए चीज़ों को एक्सेप्ट करना या फिर वास्तविकता को एक्सेप्ट करना सिखाती है और अपनी ेवेरग्य को ऐसी चीज़ों कर केंद्रित करना सिखाती है जो वास्तव में हमारे लिए ज़रूरी हैं।
Chapter 2: Happiness is a Problem (प्रसन्नता की चाहत एक समस्या है)
ऑथर हमें एक कहानी बताते हैं जिसमे एक राजा ने अपने बेटे को उत्तम जीवन देने की कोशिश की और उसने राजकुमार को सभी कठिनाइयों से बचाकर, विलासिता भरा जीवन दिया लेकिन इसके बावजूद राजकुमार दुखी और अधूरा हो गया। जिज्ञासावश, उसने जीवन के संघर्षों को देखने का साहस किया और इस अनुभव ने उसे इतना अभिभूत किया की उसने अपने आश्रित जीवन के लिए अपने पिता को दोषी ठहराया। जीवन में कठिन परिस्थियों का सामना करने के लिए राजकुमार ने भिखारी बनने का फैसला किया लेकिन फिर भी दुःख सहने के बावजूद उसे वह सब उत्तर नहीं मिले जिसकी उसे तलाश थी।
कई वर्षों बाद एक पेड़ के नीचे मैडिटेशन करते समय राजकुमार को इस महत्वपूर्ण बात का एहसास हुआ की दुःख जीवन का एक अभिन्न हिस्सा है। हर कोई दुःख और दर्द का अनुभव करता है, चाहिए उनकी परिस्थितियाँ कुछ भी क्यों न हों। और इस एहसास ने उन्हें बुद्ध बनाया और उन्होंने ये सिखया के शांति पाने के लिए दुःख दर्द को स्वीकार करना महत्वपूर्ण है।
यह बुक इस धारणा को चुनौती देती है की हम अपने गोल्स को प्राप्त करने के बाद खुश हो सकते हैं। इसके बजाय, बुक हमें सिखाती है कि असंतोष मानव जीवन का एक स्वाभाविक हिस्सा है और यह स्थायी ख़ुशी के लिए आवश्यक है।
डिसअप्पोइंटमेंट पांडा के मिसडवेंचर्स
ऑथर हमारा परिचय एक डिसअपॉइंटमेंट पांडा नामक एकसुपरफिशियल करैक्टर से कराते हैं जो जीवन की कड़वी सच्चाई बताता है और जिसे लोगों को सुनना चाहिए। ये ऐसी सच्चाइयाँ हैं जिन्हे स्वीकार करना अक्सर मुश्किल होता है, लेकिन इन्हे स्वीकार करके हमें जीवन में आगे बढ़ने और कुछ सीखने में मदद मिल सकती है।
जीवन के कठोर सत्यों में से एक यह है की दुःख जीवन का ही एक हिस्सा हैं। यह हमारे जीवन का एक स्वाभाविक परिणाम है जोकि वास्तव में फायदेमंद हो सकता है। दर्द हमें सिखाता है की किस चीज़ पर ध्यान देना चाहिए और भविष्य में वही गलतियाँ करने से बचने में हमारी मदद करता है।
एक और सच्चाई यह है कि समस्याएँ कभी ख़त्म नहीं होतीं। हमेशा नई चुनौतियों का सामना करना पड़ेगा, लेकिन हम उनसे स्वस्थ तरीके से निपटना सीख सकते हैं।
अंत में, डिसअपॉइंटमेंट पांडा हमें याद दिलाता है कि “अच्छी समस्याओं” से भरे जीवन में आशा रखना महत्वपूर्ण है। इसका मतलब ऐसी समस्याएं हैं जिन्हें हम हल कर सकते हैं और सीख सकते हैं, न कि ऐसी समस्याएं जो हमें कमजोर बनाती हैं।
यह कहानी याद दिलाती है कि जीवन हमेशा आसान नहीं होता, लेकिन यह हमेशा जीने लायक होता है।
ख़ुशी समस्याओं को सुलझाने से मिलती है
ऑथर बताते हैं की हमारे जीवन में समस्याएं बनी रहती हैं, एक समस्या ख़त्म होती है तो दूसरी शुरू हो जाती है। उद्दाहरण के लिए, अगर आप अपनी फिटनेस ठीक करने के लिए एक्सरसाइज करना शुरू करते हैं तो इसके लिए आपको सुबह जल्दी उठना पड़ेगा और अपने काम का समय एडजस्ट करना पड़ेगा। कहने का अलप्राय यह है की समस्याएँ निरंतर और विकसित होती रहती हैं; वे गायब नहीं होती हैं।
ऑथर कहते हैं की खुशी अपनी समस्याओं का समाधान करने से मिलती है। अगर आप टालते हैं या ये मानते हैं की आपको समस्या नहीं है, तो आप खुद को दुखी कर लेंगे। असल बात समस्याओं को सुलझाने के प्रोसेस में है, न की समस्या-मुक्त जीवन जीने में। ख़ुशी एक ऑनगोइंग एफर्ट है, न की कोई पैसिव गिफ्ट या डिस्कवरी।
सच्ची खुशी उन समस्याओं को हल करने में मिलती है जिनका आप आनंद लेते हैं। ये समस्याएं सरल हो सकती हैं, जैसे अच्छे भोजन का आनंद लेना या वीडियो गेम जीतना, या फिर जटिल समस्याएं, जैसे रिश्तों को सुधारना या एक पूर्ण कैरियर ढूंढना। अवधारणा वही है: खुश रहने के लिए समस्याओं का समाधान करें।
कुछ लोग इसे इस प्रकार जटिल बनाते हैं:
- इनकार: समस्याओं को नज़रअंदाज़ करना और अपना ध्यान भटकाना, जिससे असुरक्षा और भावनात्मक दमन होता है।
- पीड़ित मानसिकता: यह मानना कि वे समस्याओं का समाधान नहीं कर सकते और दूसरों या परिस्थितियों को दोष देते हैं, जिसके परिणामस्वरूप क्रोध और निराशा होती है।
इनकार और दोषारोपण अल्पकालिक राहत प्रदान कर सकते हैं लेकिन ये अनप्रोडक्टिव होते हैं। कई स्व-सहायता दृष्टिकोण अंतर्निहित मुद्दों को हल करने के बजाय अस्थायी समाधान पर ध्यान केंद्रित करते हैं। ये समाधान नशे की तरह हैं, जो अस्थायी रूप से दर्द को सुन्न करके अस्थाई राहत देते हैं लेकिन लंबे समय में उस दर्द/समस्या को नासूर बना देती हैं। स्थायी खुशी तभी मिल सकती है जब हम जीवन में आने वाली समस्याओं को सक्रिय रूप से सामना करें और उन्हें निबटाएँ।
इमोशंस ओवररेटेड होते हैं
इमोशंस हमारे जीवन में मार्गदर्शन का काम करते हैं, लेकिन हमें उन्हें इतना हावी नहीं होने देना चाहिए की वो ही हमें नियंत्रित करने लगें। इमोशंस हमें प्रॉब्लम का सिग्नल देते हैं और हमारे एक्शन्स को पुरस्कृत करते हैं लेकिन ये temporary होते हैं और हमेशा हमें पूरी कहानी नहीं बताते हैं, इसलिए हमें अपने इमोशंस पर आँखें बंद करके विश्वास करने की जगह उनसे सवाल करना चाहिए।
साथ ही साथ हमें अपने इमोशंस को दबाना भी नहीं चाहिए क्योंकि यह हमें समस्याओं का पता लगाने में मदद करते हैं। लेकिन हमें उनपर अत्यधिक प्रतिक्रिया करने से भी बचना चाहिए क्योंकि इमोशंस बदलते रहते हैं और गलत निर्णयों की वजह बन सकते हैं।
अनंत खुशियों का पीछा करना एक कभी न ख़त्म होने वाले चक्र की तरह है। जीवन में उतार चढ़ाव आते रहते हैं और दुःख का कोई स्थाई समाधान नहीं है। हमें यह समझना चाहिए की हर चीज़ का सकारात्मक और नकारात्मक पक्ष होता है, और क्षणभंगुर आनंद का पीछा करने के बजाये हमें अर्थ और उद्देश्य खोजने पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए।
अपने स्ट्रगल को चुनें
ऑथर कहते हैं की हमें सिर्फ ख़ुशी की कामना करने की जगह खुद से ये सवाल पूछना चाहिए की हम इसके लिए कितनी परेशानियों का सामना करने के लिए तैयार हैं।
- खुश रहना कोई जादू नहीं है, इसे बाधाओं पर काबू पाकर और स्ट्रगल को मैनेज करने ख़ुशी हासिल की जा सकती है।
- दर्द अपरिहार्य है, लेकिन आप इसे कैसे हैंडल करते हैं यह मायने रखता है। चुनातियों का सामना करके आप इस प्रक्रिया का आनंद ले सकते हैं।
- सफलता के लिए सही स्ट्रगल को चुनने की आवश्यकता होती है। इसका मतलब यह नहीं की असुविधा से बचा जाए, बल्कि ऐसे स्ट्रगल (संघर्ष) को ढूंढने है जो हमारे जीवन को बेहतर बना सकते हैं।
- आप कौन है, ये इस बात से तय होता है की आप किस चीज़ के लिए संघर्ष करने को तैयार हैं। जीवन के असल आनंद यात्रा में है, न की मंज़िल पर।
याद रखिये-
- जीवन कोई फेरीटेल नहीं है। अपने गोल्स के रास्ते में आने वाली चुनातियों का सामना करें और बलिदान देने या संघर्ष करने के लिए तैयार रहे।
- सिर्फ सपने न देखें, उन्हें पूरा भी करें। ऐसे संघर्षों को चुनें जो आपको प्रेरित कर सकें और ख़ुशी प्रदान कर सकें।
- अपना मन बदलना ठीक है। अगर आपको लगता है की आप जिस रास्ते पर चल रहे है, वो सही नहीं हैं तो नए रास्ते का चुनाव करें और आगे बढ़ें।
Chapter 3: You Are Not Special (आप खास नहीं हैं)
ऑथर कहते हैं की high self-esteem मूवमेंट ने एक ऐसी जनरेशन तैयार की है जो वास्तविक सफलता प्राप्त करने से अधिक अपने बारे में अच्छा महसूस करने को प्राथमिकता देते हैं।
- आत्म-सम्मान सफलता या खुशी का विश्वसनीय संकेतक नहीं है। अपने बारे में अच्छा महसूस करने का मतलब यह नहीं है कि आप वास्तव में कुछ सार्थक कर रहे हैं।
- असफ़लता और मुश्किलें विकास के लिए आवश्यक हैं। अगर आप चुनौतियों से बचते हैं तो आप सफलता प्राप्त करने के लिए आवश्यक कौशल और लचीलापन विकसित नहीं कर पाते हैं।
- ऐसे लोग जो हकदार होते हैं वो भ्रम में रहते हैं। वह मानते हैं की वे अच्छी चीजों के हकदार हैं लेकिन उन्हें अर्जित नहीं करना चाहते हैं और अपना अधिकांश समय अपनी असफलताओं को सही ठहराने में बिताते हैं।
- सच्चा आत्मसम्मान अपनी कमजोरियों का मुकाबला करने से आता है। हमेशा अच्छा महसूस करना ज़रूरी नहीं है, बल्कि ईमानदारी से अपनी सीमाओं को स्वीकार करने और उन्हें सुधारने के लिए काम करना ज़रूरी है।
- हर समय अच्छा महसूस करना एक ऐसी भावना है जो लंबे समय तक नहीं टिकती। स्थायी खुशी पाने के लिए चुनौतियों का सामना करने और वास्तविक उपलब्धि वाला जीवन बनाने से आती है।
ऑथर कहते हैं की हमें सिर्फ अपने बारे में अच्छा महसूस करने पर ध्यान केंद्रित नहीं करना चाहिए। इसके बजाय, अपने कौशल को विकसित करने, कड़ी मेहनत करने और अपनी चुनौतियों का डटकर सामना करने पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए। यही सच्चे आत्म-मूल्य और खुशी का मार्ग है।
असाधारणता का अत्याचार
ऑथर कहते हैं की हम में से ज़्यादातर लोग ज़्यादातर चीज़ों में औसत होते हैं, लेकिन सोशल मीडिया हमें हर चीज़ में सबसे अच्छा और सबसे ख़राब ही दिखाता है, जिससे हम अपने अंदर कमी महसूस करते हैं। एक्सेप्शनल यानी असाधारण बनने का यह दबाव हमें इस दबाव से बचने और अपने अंदर महसूस होने वाली कमियों को दूर करने के लिए गलत रास्तों पर चलने से भी नहीं कतराते हैं। वैसे तो टेक्नोलॉजी ने जानकारी को आसानी से उपलब्ध कराया है लेकिन इसकी वजह से असुरक्षा और शर्म भी फैली है। इसलिए ये याद रखें की औसत होना साधारण बात है और इसमें शर्म महसूस करने जैसी कोई बात नहीं है।
हमारा समाज हर किसी को एक्स्ट्राऑर्डिनरी बनने के लिए प्रेरित करता है, और “औसत” को कमतर मानता है। इतना ही नहीं ये ध्यान आकर्षित करने के लिए कुछ लोगों को नकारात्मकता अपनाने के लिए मजबूर भी करता है। खुद को या किसी दुसरे को कमतर समझना सही नहीं है। हमें अपनी सामान्यता को स्वीकार करके अपने अंदर सुधार करने के लिए मेहनत करनी चाहिए।
Chapter 4: The Value of Suffering (मुश्किलों की कीमत)
ऑथर हमें दो व्यक्तियों की कहानी बताते हैं जिन्होंने जीवन में असामान्य विकल्प चुनें और अपनी पीड़ा में मतलब पाया।
हिरू ओनोदा नामक एक सैनिक ने जापान के लिए एक ऐसे युद्ध में लड़ाई लड़ी जो वर्षों पहले ख़त्म हो चुका था। उन्हें नहीं पता था कि युद्ध ख़त्म हो गया है और वे लगभग 30 वर्षों तक लड़ते रहे।
नोरियो सुज़ुकी, एक यात्री थे जो ओनोडा को खोजने के लिए एक साहसिक यात्रा पर निकले। जंगल में चार दिनों की खोज के बाद, अंततः उसकी मुलाकात ओनोडा से हुई।
दोनों व्यक्तियों ने, अपने-अपने कारणों से, अपना जीवन उस चीज़ के लिए समर्पित कर दिया जो दूसरों को निरर्थक लग सकती है। लेकिन उनके लिए, उनकी पीड़ा का अर्थ और उद्देश्य था।
यह कहानी हमें दुख और हमारे जीवन में उसके स्थान के बारे में सोचने पर मजबूर करती है। यह पूछने के बजाय कि “मैं दुःख कैसे रोक सकता हूँ?”, हमें यह पूछना चाहिए कि “मैं दुःख क्यों भोग रहा हूँ?” जब हम अपने दुख में अर्थ ढूंढ लेते हैं, तो उसे सहना आसान हो जाता है।
ओनोडा की कहानी यह भी दिखाती है कि जब हमारे आस-पास की दुनिया बदल जाती है तो पीड़ा कैसे अपना अर्थ खो सकती है। जब वह जापान लौटे, तो उन्हें एक ऐसा समाज मिला जिसने उन चीज़ों को महत्व नहीं दिया जिनके लिए उन्होंने संघर्ष किया। इससे उसे एहसास हुआ कि उसकी पीड़ा व्यर्थ थी।
यह कहानी याद दिलाती है कि दुख जीवन का एक हिस्सा है, लेकिन इसका अर्थहीन होना जरूरी नहीं है। यदि हम अपनी पीड़ा में उद्देश्य ढूंढ सकें, तो यह शक्ति और लचीलेपन का स्रोत बन सकता है।
आत्म जागरूकता की परतें
ऑथर कहते हैं की सेल्फ-अवेयरनेस यानी आत्म-जागरूकता एक प्याज़ की तरह है जिसमे कई परतें होती है। इसकी पहली परत है अपने इमोशंस को समझना। दूसरी परत है खुद से पूछना की आप ऐसा क्यों महसूस करते हैं। इससे आपको यह पता लगाने में मदद मिलती है कि आपके लिए क्या मायने रखता है और आप सफल या असफल क्यों महसूस करते हैं।
सबसे अंदर की परत सबसे कठिन है और अपनी वैल्यूज पर सवाल करना और खुद को कैसे मापते हैं। यह ज़रूरी है क्यूंकि यह हमारे सोचने, महसूस करने और जीने के तरीक़े को प्रभावित करता है। आत्म-जागरूक लोग कठिन प्रश्न पूछते हैं और असुविधा से नहीं कतराते। वे अपनी गलतियों से सीखते हैं और आवश्यकतानुसार अपना दृष्टिकोण बदलते हैं। भले ही जीवन में समस्याएं आती हैं, हम चुनते हैं कि उन्हें कैसे देखा जाए और वे हमें कैसे प्रभावित करती हैं। अपने विचारों पर नियंत्रण रखकर और हम सफलता को कैसे मापते हैं, हम अपनी खुशी को आकार दे सकते हैं।
The Subtle Art of Not Giving a F*ck Summary in Hindi के इस चैप्टर में, ऑथर हमें बताते हैं की सफलता और असफ़लता को मापने के लोगों के अपने अलग अलग पैमाने होते हैं। इस बात को समझाने के लिए वो डेव मुस्टेन नमक एक प्रतिभाशाली गिटारवादक का उद्दाहरण देते हैं जिन्हे फेमस बंद मेटालिका से बहार निकाल दिया गया था और उसके बाद उन्होंने अपना खुद का बंद मेगाडेथ शुरू किया जो की सफ़ल भी हुआ, लेकिन डेव ने उसे कभी सफ़ल नहीं समझा क्यूंकि वो मेटालिका जितना बड़ा नहीं था।
कुछ लोग, डेव मुस्टेन की तरह अपनी तुलना दूसरों से करते हैं और अगर वे सर्वश्रेष्ठ नहीं हुए तो वो खुद को विफ़ल समझने लगते हैं। कुछ अन्य लोग, ऑथर मार्क मैनसन की तरह सफ़लता को अलग तरह से मापते हैं जैसे एक अच्छी नौकरी या सुखी परिवार से।
ऑथर एक अन्य व्यक्ति पेट बेस्ट का उद्दाहरण देते हैं जिन्हे मशहूर बंद बीटल्स से निकाल दिया गया था। शुरू में तो उन्होंने थोड़ा स्ट्रगल किया लेकिन आख़िरकार उन्हें अपने परिवार और साधारण जीवन में ख़ुशी मिली।
इन उद्दाहरणों से पता चलता है की सफ़लता को मापने के कुछ तरीक़े दूसरों की तुलना में बेहतर हैं। कुछ तरीक़े ऐसी “अच्छी समस्याओं” को जन्म देते हैं जिन्हे हल काना आसान होता है, जबकि अन्य “बुरी समस्याओं” को जन्म देते हैं जिन्हे हल करना मुश्किल होता है। इसलिए सबसे ज़्यादा ज़रूरी है की लगाया जाए की आपके लिए क्या मायने रखता है और उसके आधार पर अपनी सफलता को मापें।
घटिया वैल्यूज
ऑथर कहते हैं की जीवन में कई वैल्यूज ऐसी होती हैं जो जीवन में कठिनाई और लगातार समस्याओं को जन्म देती हैं। ऐसी ही कुछ वैल्यूज के बारे में उन्होंने बताया है जो इस प्रकार हैं –
- Pleasure (आनंद)– वैसे तो pleasure का आनंद लिया जा सकता है, लकिन ये जीवन का मुख्य लक्ष्य नहीं होना चाहिए। सिर्फ pleasure पर ध्यान केंद्रित करने से चिंता, अवसाद और अन्य समस्याएं हो सकती हैं। वास्तविक खुशी अन्य मूल्यों से आती है, और आनंद स्वाभाविक रूप से आता है।
- Material Success (भौतिक सफलता)– सिर्फ पैसा और संपत्ति ही जीवन में ख़ुशी नहीं ला सकते। बुनियादी ज़रूरतों को पूरा करने के बाद, पैसे या संपत्ति का ख़ुशी पर बहुत कम प्रभाव पड़ता है। भौतिक सफ़लता पर बहुत ज़्यादा ध्यान केंद्रित करने के अन्य महत्वपूर्ण वैल्यूज को नुकसान पहुँच सकता है।
- हमेशा सही बने रहना– ऑथर कहते हैं की जब हम हमेशा सही बने रहते हैं, तो हम ख़ुद के सीखने और आगे बढ़ने के रास्ते बंद कर देते हैं। अपनी गलतियों को स्वीकार करना और दूसरों के दृष्टिकोण को समझना, पर्सनल डेवलपमेंट के लिए ज़रूरी है।
- सकारात्मक रहना– लगातार और हर परिस्थिति में सकारात्मक बने रहना भी ठीक नहीं है। नकारात्मक भावनाएँ जीवन का एक सामान्य हिस्सा हैं और उन्हें नज़रअंदाज़ नहीं किया जाना चाहिए। नकारात्मक भावनाओं को दबाने से भावनात्मक समस्याएं पैदा हो सकती हैं।
- सार्थक गतिविधियां– चुनौतीपूर्ण लक्ष्यों को पूरा करना और संघर्षों पर काबू पाना तत्काल ख़ुशी या आराम पाने की तुलना में अधिक आनंदायक हो सकती हैं। ऐसी गतिविधियों में अक्सर दर्द और संघर्ष शामिल होता है और ये एक सार्थक और पूर्ण जीवन जीने में मदद करती हैं।
दोस्तों, इसलिए ये आवश्यक है की हम अपनी सफ़लता को मापने के लिए सही वैल्यूज (मूल्यों) और मैट्रिक्स का चयन करें। जब हम सार्थक वैल्यूज पर ध्यान केंद्रित करेंगे तो ख़ुशी और पॉजिटिव एक्सपीरियंस जीवन में स्वाभाविक रूप से आएंगे।
अच्छी और बुरी वैल्यूज (मूल्य)
चैप्टर एक अंत में ऑथर हमें अच्छी और बुरी वैल्यूज के बीच के अंतर को समझाते हैं, और ऐसी वैल्यूज अपनाने के लिए कहते हैं जो हमारे लिए हितकारी हो।
अच्छे मूल्य
- वास्तविकता पर आधारित– सत्य पर आधारित और वास्तविक दुनिया को प्रतिबिंबित करता है।
- सामाजिक रूप से रचनात्मक– दूसरों को लाभ पहुंचाने वाली और समाज की भलाई में योगदान देने वाली।
- तत्काल और नियंत्रणीय– वर्तमान क्षण में प्राप्त करने योग्य और आपके नियंत्रण में।
- उदाहरण: ईमानदारी, इनोवेशन, आत्म-सम्मान, जिज्ञासा, दान, विनम्रता, रचनात्मकता।
ख़राब वैल्यूज
- अंधविश्वास– अतार्किक, विश्वास या भाग्य पर आधारित।
- सामाजिक रूप से नुक़सानदायक– दूसरों को नुक़सान पहुँचाने वाली और समाज पर नकारात्मक प्रभाव डालने वाली।
- तत्काल या नियंत्रणीय नहीं– ऐसे बाहरी कारणों पर निर्भर जो आपके नियंत्रण से बाहर हों।
- उदाहरण- हेरफेरी, निरंतर अपनी ओर ध्यान आकर्षित करना, लोकप्रियता का जुनून, पैसों का दीवानापन, दूसरों को नुकसान पहुँचाना।
Chapter 5: You Are Always Choosing (आप हमेशा चुन रहे हैं)
कल्पना कीजिये की कोई आपको मैराथन दौड़ने के लिए मजबूर करता है। आम तौर पर लोगों के लिए मैराथन दौड़ना संभव नहीं है इसलिए ये परेशान करने वाला हो सकता है। अब कल्पना कीजिये के आप अच्छी तरह ट्रेनिंग के बाद मैराथन दौड़ने का फैसला करते हैं। ये आपके लिए एक प्राउड मोमेंट हो सकता है। परन्तु ध्यान देने योग्य बात ये है की सामान दूरी (मैराथन की दूरी), समान प्रयास लेकिन अपनी पसंद के साथ धारणा बदल जाती है।
जब हम चीज़ों पर अपना कण्ट्रोल महसूस करते हैं और अपनी चुनातियों को चुनते हैं, तो वे सशक्त अवसर अवसर बन जाती हैं। वहीँ दूसरी ओर जब समस्याएँ हम पर थोपी जाती हैं तो हम असहाय और दुखी महसूस करते हैं।
इसलिए, अगर आप किसी दुविधा में फंसा हुआ महसूस कर रहे हैं तो ये याद रखिये की आपके पास अपना दृष्टिकोण चुनने और अपनी चुनातियों की ज़िम्मेदारी लेने की शक्ति है। ऐसा करके, आप अपनी शक्ति से समस्याओं को सफलता में तब्दील कर लेते हैं।
द चॉइस
ऑथर हमें विलियम जेम्स के बारे में बताते हैं जिन्होंने अपनी समृद्ध पृस्ठभूमि के बावजूद, लगातार चुनातियों का सामना किया। कभी स्वस्थ्य सम्बन्धी समस्याएं, कभी पारिवारिक और कभी करियर में विफ़लता। इस सब से वह निराशा की इस हद तक पहुँच गए के वो आत्महत्या के बारे में सोचने लगे।
फिर, उन्होंने जीवन बदलने वाला निर्णय लिया। परिस्थितियों की परवाह किए बिना, अपने जीवन की हर चीज़ की पूरी ज़िम्मेदारी लेते हुए, उन्होंने एक साल का प्रयोग शुरू किया। परिप्रेक्ष्य में इस बदलाव ने परिवर्तन को जन्म दिया।
अपने संघर्षों की वजह से, जेम्स अमेरिकी मनोविज्ञान में एक प्रसिद्ध व्यक्ति बन गए। उन्होंने शिक्षण, लेखन और पारिवारिक जीवन में सफलता हासिल की।
ऑथर विलियम जेम्स के उद्दाहरण के माध्यम से ये सन्देश देते हैं की हम बाहरी कारण चाहे जो भी हों, हम सभी अपने जीवन के लिए ख़ुद ज़िम्मेदार हैं। हम घटनाओं को इन्टरप्रेट करने और उनपर रेस्पॉन्ड करने के तरीक़े से अपने अनुभवों को आकार देते हैं।
यहाँ तक की जब हम अपने जीवन में काफ़ी निराश और शक्तिहीन महसूस करते हैं, तब भी हमारे पास अपना दृष्टिकोण और अपने एक्शन्स को चुनने की शक्ति होती है।
ये एक ऐसी ज़िम्मेदारी है जिसे हम अक्सर पहचान नहीं पाते लेकिन इसमें हमारे जीवन को बदलने की क्षमता होती है।
बुक के इस सेक्शन में ऑथर conscious choice के महत्व पर प्रकाश डालते हैं और कहते हैं की हम चुनते हैं की हमारे लिए क्या मायने रखता है, हम घटनाओं को कैसे इन्टरप्रेट करते हैं और कैसे मूल्य हमारे जीवन के मार्गदर्शन करते हैं। अच्छी चॉइस एक बेहतर और खुशहाल जीवन जीने में हमारी मदद करती हैं।
उत्तरदायित्व/दोष भ्रान्ति
ऑथर बुक के इस सेक्शन में हमें ज़िम्मेदारी (Responsibility) और दोष (Blame) के बारे में बताते हैं और कहते हैं की लोग अक्सर इन दोनों को लेकर भ्रमित रहते हैं। इन दोनों के बीच के अंतर को समझाने के लिए ऑथर कहते हियँ की ग़लती अतीत में हुई चीज़ों के बारे में है, जबकि ज़िम्मेदारी वर्तमान में हमारे द्वारा चुने गए विकल्पों के बारे में है।
इस सेक्शन का मुख्य संदेश यह है की हमें ज़िम्मेदारी लेनी चाहिए, यहाँ तक की उन चीज़ों के लिए भी जिनमे हमारी गलती है है। ऐसा करने से हमें अपने जीवन पर अधिक नियंत्रण मिलता है और समस्याओं को हल करने में मदद मिलती है।
ज़िम्मेदारी का मतलब दूसरों पर उँगलियाँ उठाना नहीं है, इसका मतलब है चार्ज लेना। साथ ही साथ इसका मतलब यह भी है की अपनी समस्याओं से सीखा जाए और चीज़ों को बेहतर बनाया जाए। अपनी पसंद की ज़िम्मेदारी लेकर, हम अपनी स्थिति को बदल सकते हैं।
ऑथर एक ऐसे व्यक्ति का उदहारण देते हैं जिसने अपनी डेटिंग सम्बंधित समस्याओं के लिए अपनी हाइट को दोष दिया। इसी वजह से वो और कोई एक्शन नहीं ले पाए तथा अपने डेटिंग जीवन को बेहतर नहीं बना पाए। लेकिन ज़िम्मेदारी हमें सिखाती है की हम ऐसी चीज़ों पर ध्यान केंद्रित करें जिन्हे हम नियंत्रित कर सकते हैं, जैसे हमारी वैल्यूज और एक्शन्स।
ऑथर यह भी कहते हैं की जिम्मेदारी एक ऑनगोइंग प्रोसेस है। यह सिर्फ एक दो दिन की बात नहीं है, ये उन विकल्पों के बारे में है जिन्हे हम रोज़ चुनते हैं। हम चुनते हैं की चीज़ों को कैसे देखें, उन पर कैसे रियेक्ट करें और उन्हें कितना महत्व दें। इन विकल्पों की ज़िम्मेदारी लेकर, हम अपने इच्छित जीवन के निर्माण के लिए ख़ुद को सशक्त बनाते हैं।
अंततः, यह सेक्शन हमें इस बात पर पुनर्विचार करने के लिए प्रोत्साहित करता है कि हम जिम्मेदारी के प्रति कैसे दृष्टिकोण रखते हैं। ज़िम्मेदारी लेने का मतलब दोषारोपण करना नहीं है बल्कि इसका मतलब है ओनरशिप यानी स्वामित्व लेना और इसे विकास और सुधार के लिए एक उपकरण के रूप में उपयोग करना।
त्रासदी पर प्रतिक्रिया
ऑथर कहते हैं की जीवन में जब कोई बुरी चीज़ होती है, लेकिन हमारे पास यह चॉइस होती है के हम उन पर कैसे रियेक्ट करते हैं। अगर किसी के साथ कोई त्रासदी होती है तब भी हम प्रतिक्रिया देने का तरीका चुन सकते हैं। हो सकता है कि बुरी चीज़ के लिए हम दोषी न हों, लेकिन उस बुरी चीज़ के बाद हम कैसा महसूस करते हैं और कैसे एक्ट करते हैं, इसके लिए हम ज़िम्मेदार हैं।
ऑथर एक अन्य उदहारण देते हुए बताते हैं की एक बार वो पर्सनल रिस्पांसिबिलिटी के बारे में बात कर रहे थे जिसपर एक व्यक्ति, जिसने कार एक्सीडेंट में अपने बेटे को खो दिया था, गुस्सा हो गया। वह कहते हैं की ये सही है के वो व्यक्ति बहुत दुःख में था, लेकिन इसके बावजूद उसके पास ये चॉइस थी के वो कैसे रियेक्ट करे।
हमारे गुस्सा और बहस करना चुन सकते हैं या फिर हम चीज़ों से सीखकर जीवन में आगे बढ़ सकते हैं। ऑथर कहते हैं की उन्होंने उस व्यक्ति के गुस्से से सीखा और एक अच्छे राइटर बने।
हम हमेशा होने वाली बुरी चीज़ों को ठीक नहीं कर सकते, लेकिन हम यह चुन सकते हैं कि कैसे प्रतिक्रिया देनी है। जिम्मेदारी लेना ही सब कुछ है।
जेनेटिक्स और चॉइसेस से सबक
2013 में BBC ने ऑब्सेसिव-कमपल्सिव डिसऑर्डर (OCD) से पीड़ित टीनएजर्स पर एक डाक्यूमेंट्री बनायीं जिसमे उन्होंने उन टीनएजर्स की चुनातियों और उपचार के बारे में दिखाया। OCD एक प्रकार का जेनेटिक डिसऑर्डर है जिसे ठीक नहीं किया जा सकता, सिर्फ मैनेज किया जा सकता है और यह तभी संभव है जब हम तर्कहीन मूल्यों की पहचान करें और स्वस्थ्य मूल्यों को प्राथमिकता दें।
ख़ामियों को स्वीकार करना
उन टीनएजर्स ने अपनी ख़ामियों को स्वीकार करना सीखा और ये सीखा ही इम्पेर्फेक्ट होना कोई गलत बात नहीं है। किसी ने अपने डर का सामना किया और इसी तरह हर किसी ने अपने इम्पेर्फेक्शन्स को एक आम बात की तरह स्वीकार करना सीखा।
तर्कसंगत मूल्यों का चयन
तर्कसंगत मूल्यों पर ध्यान केंद्रित करते हुए, किशोरों ने सामान्य सामाजिक जीवन, भावनात्मक रूप से बेहतर बनने और दर्दनाक एपिसोड्स से मुक्ति का प्रयास किया।
इंटेंसिव डीसेन्सिटिज़ेशन
अभ्यास के माध्यम से, पैनिक अटैक्स का और आंसुओं का सामना करते हुए उन्होंने अपने मूल्यों को अपनाया। और इससे उन्हें बेहतर परिणाम देखने को मिले।
विकल्पों की जिम्मेदारी
ज़िन्दगी के दिन ताश के पत्तों की तरह होते हैं, जिनमे से कुछ पत्ते अच्छे होते हैं और कुछ बुरे। पोकर से हम ये सीख सकते हैं की भाग्य अपनी जगह है, लेकिन हमारी चोइसस लॉन्ग टर्म परिणाम निर्धारित करती हैं। इसी तरह, जीवन की चुनातियाँ, चाहे वो अनुवांशिक (जेनेटिक) हों या फिर परिस्थितिजन्य, अपनी चोइसस के लिए ज़िम्मेदारी की मांग करती हैं।
विक्टिमहुड से आगे बढ़ना
जीवन में चाहे जितनी भी चुनातियाँ क्यों न हों, हम अपनी ज़िम्मेदारी से मुक्त नहीं हो सकते हैं। चुनातियाँ सबके जीवन में आती हैं लेकिन कुछ लोग उनसे हार मान कर बैठ जाते हैं और कुछ आगे बढ़ते रहते हैं। स्वीकृति और प्रोएक्टिव विकल्प हमारी जिम्मेदारी को परिभाषित करते हैं।
विक्टिमहुड चिक
ऑथर कहते हैं की इंटरनेट और सोशल मीडिया के इस दौर में, “जिम्मेदारी/फॉल्ट fallacy” लोग अपनी समस्याओं का दोष दूसरों को देकर उन्हें हल करने से बचते हैं। इंटरनेट और सोशल मीडिया ने दूसरों को दोष देना आसान बना दिया है। लोग अपनी समस्याओं को सुलझाने से बचने और ध्यान आकर्षित करने (विक्टिमहुड चिक) के लिए इसका उपयोग करते हैं। और यह सब सभी तरह के लोगों का साथ हो रहा है, चाहे वो किसी भी उम्र के हों या समाज के किसी भी तबके से संबंध रखते हों, हर कोई ख़ुद को पीड़ित जैसा महसूस करता है।
मीडिया को ये सब बहुत पसंद है क्यूंकि इससे वे पैसे बनाते हैं। वो छोटी छोटी बातों को उठाते हैं और उन्हें तूल दे देते हैं, जिससे सभी नाराज हो जाते हैं। यह क्रोध हमें विभाजित करता है और वास्तविक समस्याओं से ध्यान भटकाता है।
“विक्टिमहुड चिक” के साथ समस्या यह है कि यह वास्तविक पीड़ितों को आहत करता है। लोग आहत महसूस करने के आदी हो जाते हैं, जो एक नशे की तरह है। लेकिन लंबे समय में यह हमारे लिए बुरा है।
लोकतंत्र में रहने का मतलब उन लोगों से निपटना है जिन्हें हम पसंद नहीं करते हैं। हमें अपनी लड़ाई चुननी होगी, जिनसे हम असहमत हैं उन्हें समझना होगा और सब खबरों पर विश्वास करने से बचना होगा। हमें ईमानदार और पारदर्शी होने की जरूरत है, न कि केवल सही महसूस करने या बदला लेने पर ध्यान केंद्रित करने की।
ये मूल्य हमारे लोकतंत्र के भविष्य के लिए महत्वपूर्ण हैं। हमें ज़िम्मेदारी लेने और यह सुनिश्चित करने की ज़रूरत है कि वे जीवित रहें!
इसका कोई तरीका नहीं है
ऑथर कहते हैं की अगर हमें ये पता चल जाए की वास्तव में हमारे लिए क्या मायने रखता है तो ख़ुद को चेंज करना सरल है। लेकिन सरलता का मतलब यह नहीं की यह आसान है। मूल्यों में बदलाव के साथ अनिश्चितता महसूस करना, असफलता का डर और पुराने मूल्यों को मानने वाले लोगों के रिजेक्शन जैसी चुनोतियाँ आती हैं। ये असुविधाएँ अपरिहार्य हैं लेकिन ये आवश्यक है क्यूंकि आप अपना ध्यान ऐसी चीज़ों पर केंद्रित करते हैं जो वास्तव में आपके ध्यान के योग्य हैं। इस परिवर्तनकारी यात्रा में अनिश्चितता को अपनाना एक सकारत्मक पहलु है, जो विकास का संकेत है।
Chapter 6: You’re Wrong About Everything (But So Am I) (आप हर चीज में गलत हैं और मैं भी)
The Subtle Art of Not Giving a F*ck summary in Hindi के इस चैप्टर में ऑथर हमें बताते हैं की कैसे हम हमेशा चीज़ों के बारे में गलत होते हैं, लेकिन यह स्वाभाविक है क्यूंकि हम सभी समय के साथ सीखते और आगे बढ़ते हैं। ये पोकर के खेल की तरह हैं जिसमे चीज़ें संयोग से होती हैं, लेकिन हम ऐसे विकल्प चुनते हैं जो परिणाम को प्रभावित करते हैं।
ऑथर का सुझाव है कि हमें अपनी मान्यताओं पर सवाल उठाने से नहीं डरना चाहिए और नए विचारों के लिए ख़ुद को खुला रखना चाहिए। इसी तरह हम बढ़ते हैं और सीखते हैं। निश्चितता को पकड़कर रखना वास्तव में हमें पीछे खींचता है।
ऑथर यह भी कहते हैं की कि हम जो अच्छा या बुरा सोचते हैं वह हर किसी के लिए अलग-अलग हो सकता है। इसका कोई सही या ग़लत उत्तर नहीं है। आने वाली पीढ़ियाँ शायद हमारी मान्यताओं पर उसी तरह हँसेंगी जैसे हम अतीत में लोगों की सोच पर हँसते हैं।
इसका मुख्य संदेश यह है की गलत होना ठीक है, सीखते रहें और बदलाव के लिए तैयार रहें।
अपने बिलीफ के आर्किटेक्ट
कल्पना कीजिये की आप एक ऐसे कमरे में हैं जहाँ लाइट्स और बटन्स हैं। आप कोई बटन दबाते हैं और उससे लाइट जल जाती है। आपको लगता है की आपके बटन दबाने से ही लाइट जाली है लकिन लाइट रैंडम हैं जो थोड़ी देर में ख़ुद जल जाती हैं। हमारा मस्तिष्क भी इसी तरह काम करता है और दुनिया को समझने के लिए चीज़ों को जोड़ता है भले ही वे गलत क्यों न हों।
- बटन एक्सपेरिमेंट– कमरे में लोग पॉइंट्स हासिल करने के लिए पत्तों दबाते हैं, लेकिन पॉइंट्स रैंडम हैं। लेकिन फिर भी वे पॉइंट्स हासिल करने के लिए ख़ुद के रूल बना लेते हैं।
- मीनिंग मेकर्स– हमारा मस्तिष्क मशीन की तरह है जो अनुभवों को जोड़कर कोई तार्किक बात बनाता है। हम बटन को देखते हैं और उसके बाद लाइट को और फिर ये सोचते हैं की हमारे बटन दबाने से ही लाइट जली है।
- मस्तिष्क संबंधी गड़बड़ियाँ– हमारा मस्तिष्क पूर्ण नहीं है। हम गलतियाँ करते हैं और उन चीज़ों पर विश्वास कर लेते हैं जो सच नहीं हैं।
- टाइट पकड़ना– एक बार जब किसी चीज़ पर विश्वास कर लेते हैं तो हमारा मस्तिष्क उसे छोड़ना नहीं चाहता, भले ही वह ग़लत क्यों न हो।
- गलत विश्वास– हम जो मानते हैं उसमें से अधिकांश गलत है, या कम से कम पूरी तरह सच नहीं है। हमारा दिमाग पक्षपाती है और चीजों को स्पष्ट रूप से नहीं देख पाता है।
- असुविधाजनक सत्य– यह स्वीकार करना कि हमारी मान्यताएँ गलत हैं, असुविधाजनक है, लेकिन दुनिया को सीखने और समझने के लिए यह महत्वपूर्ण है।
- याद रखें– हमारा दिमाग दुनिया को समझने में बहुत अच्छा है, लेकिन वे हमेशा सही नहीं होते। हमें अपने पूर्वाग्रहों के प्रति जागरूक रहने और नई चीजें सीखने के लिए खुले रहने की जरूरत है।
सावधान रहें कि आप क्या मानते हैं
कल्पना कीजिये के आपको ये याद आता है की आपके पिता ने आपके बचपन ने कुछ गलत किया है। और ये याद करके आप परेशान रहने लगते हैं। फिर आपको पता चलता है की ऐसा कभी ऐसा कुछ हुआ ही नहीं था, ये सिर्फ आपके दिमाग़ की उपज थी।
ऑथर कहते हैं की ऐसा ही कुछ मेरेडिथ के साथ भी हुआ। उन्हें लगा की उनके पिता ने उनके साथ दुर्व्यवहार किया, लेकिन फिर बाद में पता चला की ये एक गलत मेमोरी थी। इस सब की वजह से मेरेडिथ का परिवार बहुत परेशान हो गया और उन्हें बहुत बुरा भी लगा।
इस कहानी से हमें पता चलता है की हमारा मस्तिष्क परफेक्ट नहीं होता है।
- बहुत से मेमोरी गेम की तरह, यादें हमारे मस्तिष्क में ट्रेवल करते समय गड़बड़ा सकती हैं।
- हमारा मस्तिष्क चीज़ों को समझना चाहता है और इसलिए वो gaps को भरने के लिए चीज़ें बना लेता है।
- हमारी भावनाएँ और beliefs भी हमारी यादों को ट्विस्ट कर सकते हैं।
- इस सबको फॉल्स मेमोरी सिंड्रोम (False Memory Syndrome) कहते हैं, और ये सबको दुःख पहुंचा सकता है।
इससे बचने के लिए हम क्या कर सकते हैं?
- हम जो मानते (believe) हैं उसके बारे में हमें सावधान रहना चाहिए, ख़ासतौर से अपने बारे में हमारे जो beliefs हैं, उनसे सावधान रहने की ज़रूरत है।
- हमें अपने विचारों और भावनाओं पर सवाल उठाने चाहिए, भले ही वे कितने भी मज़बूत विचार और भावनाएँ क्यों न हों।
- अलग अलग दृष्टिकोणों को जानने के लिए ऐसे लोगों से भी बात करें जिनपर आप भरोसा नहीं करते हैं।
- हमें ये याद रखना चाहिए की की हर किसी की याददाश्त कमज़ोर होती है, यहाँ तक की हमारी भी।
- सतर्क रहकर और खुले दिमाग से हम झूठी यादों के दर्द से बच सकते हैं और बेहतर रिश्ते बना सकते हैं।
दोस्तों, हमारा मस्तिष्क एक शक्तिशाली टूल है, लेकिन ये हमेशा सही नहीं होता है। इसलिए हमें इसे सावधानी से उपयोग करना चाहिए और इसके आउटपुट पर सवाल उठाने से नहीं डरना चाहिए।
निश्चितता के ख़तरे
एरिन का मानना है की वो मौत को पछाड़ सकती है और इसके लिए उसे आपकी ज़रुरत है। लेकिन उसे आपसे सलाह नहीं चाहिए, वह चाहती के आप उसके प्रेमी बनें और आप दोनों मिलकर मौत को पछाड़ें और अमर बन जाएँ। एरिन के साथ समस्या है की वह अपनी इस बात पर पागलों की तरह विश्वास करती है और इसे गलत मानने के लिए तैयार नहीं है।
एरिन की कहानी से हमें निश्चितता के खतरों के बारे में पता चलता है जो इस प्रकार हैं-
- वास्तविकता को नज़रअंदाज करना: निश्चितता हमें सच्चाई से दूर कर सकती है। एरिन का अपने भाग्य पर विश्वास इतना ज़्यादा था की वो किसी और सुझाव पर हावी हो जाता था जिसकी वजह से वो किसी भी सबूत पर विश्वास नहीं करती थी।
- बुराई को उचित ठहराना: निश्चितता हानिकारक कार्यों को बढ़ावा देती है। नस्लवादी, कट्टरपंथी, और दुर्व्यवहार करने वाले सभी अपने अटूट विश्वासों के आधार पर नैतिक धार्मिकता का दावा करते हैं।
- असुरक्षा को बढ़ावा देना: निश्चितता की खोज अक्सर गहरी असुरक्षा की ओर ले जाती है। एरिन को सत्यापन की निरंतर आवश्यकता उसके जुनून को बढ़ाती है।
अनिश्चितता को स्वीकार करने का मतलब अज्ञानता नहीं बल्कि खुलापन है। इसके कुछ फायदे जो ऑथर ने बताये हैं इस प्रकार हैं-
- जिज्ञासा और विकास: अनिश्चितता हमें सीखने और बढ़ने में मदद करती है। एरिन की रिजिड मान्यताएँ उसके व्यक्तिगत विकास में बाधा डालती हैं।
- गैर-निर्णयात्मक: अनिश्चितता पूर्वाग्रहों और निर्णयों को दूर करती है, जिससे हम दुनिया को स्पष्ट रूप से देख पाते हैं। एरिन की निश्चितता दूसरों के प्रति उसकी धारणा को धूमिल कर देती है।
- विनम्रता और परिवर्तन: अनिश्चितता आत्म-चिंतन और परिवर्तन की इच्छा को प्रोत्साहित करती है। एरिन का पूर्ण विश्वास उसे अपने मूल्यों में सुधार करने से रोकता है।
एरिन के उद्दाहरण से हमें ये सीखने को मिलता है की निश्चितता खतरनाक हो सकती, जो हमारे व्यक्तिगत विकास में रुकावट पैदा कर सकती है। अनिश्चितता हमें सीखने, जीवन में आगे बढ़ने और बेहतर रिश्ते बनाने में हमारी मदद करती है। इसलिए हमें अनिश्चितता को स्वीकार करना चाहिए, अपनी मान्यताओं पर सवाल उठाना चाहिए और एक बेहतर जीवन के लिए बदलाव करने के लिए तैयार रहना चाहिए।
मैनसन लॉ ऑफ़ एवॉइडेन्स
कल्पना कीजिये के भरी ठण्ड में आप एक अच्छा स्वेटर कम्फर्टेबल हैं, तभी कोई आकर आपको एक फैंसी जैकेट देकर कहता है की उसे पहन कर आप बहुत अच्छे लगेंगे। आपको लालच तो आएगा लेकिन साथ ही साथ अपने कम्फर्ट जोन से निकलकर ठण्ड में कपडे चेंज करने से आप बचना चाहेंगे। यही मैनसन लॉ है। कोई चीज़ आपकी सेल्फ-इमेज को जितना ज़्यादा चैलेंज करती है आप उसे उतना ही ज़्यादा अवॉयड करते हैं।
- परिवर्तन डरावना होता है– सफलता या रोमांच जैसी अच्छी चीजें भी आपकी पहचान को खतरे में डाल सकती हैं।
- हम आराम (कम्फर्ट) से चिपके रहते हैं– हम “एक असफल कलाकार” होने का जोखिम उठाने के बजाय “एक शून्य कलाकार” बनना पसंद करेंगे।
- मूल्य पिंजरे बन जाते हैं– हम अपनी मान्यताओं को कायम रखने को प्राथमिकता देते हैं, भले ही वे हमें सीमित क्यों न करती हों।
- स्वयं को जानना आपको फँसा सकता है– किसी रिजिड आत्म-परिभाषा में न फंसें।
- खुले और विनम्र रहें– विकास को अपनाएं और स्वीकार करें कि आप हमेशा विकसित हो रहे हैं।
- याद रखें: अपने आराम क्षेत्र को अपने ऊपर हावी न होने दें। अज्ञात को गले लगाओ और ये ढूंढते रहिये की आप कौन बन सकते हो!
किल योरसेल्फ
ये टाइटल सुनने में थोड़ा अटपटा लग सकता है लेकिन इसका मैसेज ये है की अपनी आत्म-छवि को त्यागकर साधारण को अपनाया जाए।
बौद्ध धर्म सिखाता है कि अपने “स्वयं”- अपने विचारों, भावनाओं और उपलब्धियों से चिपके रहकर आप एक ट्रैप में फँस जाते हैं। यह एक ऐसा भरी भरकम कवच पहनने जैसा है जिसे पहनकर आप ठीक से चल फिर नहीं सकते। ठीक उसी तरह अपने “स्वयं” से छिपकर आप वास्तव में अपना जीवन नहीं जी सकते हैं।
लेकिन अच्छी खबर यह है की आपकी समस्याएं बिलकुल सामान्य हैं। हममें से अधिकांश लोग अपने बारे में चिंतित, असुरक्षित और अनिश्चित महसूस करते हैं। अपने मुद्दों को यूनिक और स्पेशल समझना छोड़ना होगा।
लेकिन इसके साथ बुरी ख़बर यह है की अपनी सेल्फ़-इमेज (आत्म-छवि) को जाने देना काफी मुश्किल है। यह किसी नशे को छोड़ने जैसा है।
इसके लिए ऑथर ने कुछ सुझाव दिए हैं जो इस प्रकार हैं-
- ख़ुद को फैंसी टाइटल्स से परिभाषित करना बंद करें।
- अपनी पहचान को जितना हो सके सरल रखें- फ्रेंड, पार्टनर, स्टूडेंट या क्रिएटर इत्यादि।
- आपकी पहचान जितनी व्यापक होगी, आपको दुनिया से उतना ही कम ख़तरा महसूस होगा।
- अपने और अपनी विशिष्टता के बारे में भव्य विचार त्यागें।
- स्वीकार करें कि आप भी हममें से अधिकांश की तरह सामान्य हैं।
इस सबका मतलब यही नहीं की है की आप अपने सपनों को त्याग दें या अपनी समस्याओं को नज़रअंदाज़ कर दें। इसका मतलब है जीवन को अधिक शांत और खुले मन से जीना।
अपने बारे में थोड़ा कम आश्वस्त कैसे रहें?
ऑथर कहते हैं की खुद पर संदेह करना वास्तव में अच्छा हो सकता है। ऐसा करके हम निश्चितता पर अपने विश्वास को कम कर सकते हैं और अपने आगे बढ़ने के रास्ते को खोल सकते हैं। ऑथर ने हमें खुद से तीन प्रश्न पूछने की सलाह दी है , आइये नज़र डालते हैं इन प्रश्नों पर।
- अगर आप ग़लत हैं तो क्या होगा ?
किसी ऐसे दोस्त या सिचुएशन की कल्पना कीजिये जहाँ आप अपने बारे में अत्यधिक आश्वस्त हों। अब, इस संभावना की कल्पना करें कि आपसे गलती हो सकती है। हो सकता है की आपके दोस्त की फाइनेंसियल सिचुएशन उतनी अच्छी न हो जितनी आपको लगती है या हो सकता है की आपकी राय समय के साथ कमज़ोर होती होती गयी हो। इन ‘हो सकता है/शायद’ जैसी चीज़ों को एक्स्प्लोर करना ठीक है। इससे आपसी समझ पैदा होती है और अपने रिश्तों को भी बेहतर बनाने में मदद मिलती है। - आपके गलत होने का क्या मतलब है?
गलत होने के परिणामों की कल्पना करें। क्या यह एक डिजास्टर की तरह भयावह होगा ? या क्या यह वास्तव में किसी सकारात्मक चीज़ की ओर ले जा सकता है, जैसे चीज़ों को अलग तरह से देखना या किसी के साथ सुधार करना? बिना घबराए संभावनाओं पर विचार करें। - क्या गलत होना आपके और दूसरों के लिए आपकी वर्तमान समस्या से बेहतर या बदतर समस्या पैदा करेगा?
कभी-कभी हमारी दृढ़ मान्यताएँ दूसरों को चोट पहुँचा सकती हैं। अपने आप से पूछें कि क्या एक कदम पीछे हटने और अनिश्चितता को अपनाने से वास्तव में स्थिति आसान हो सकती है। याद रखें, आत्म-चिंतन और समझ का कठिन रास्ता चुनने से स्वस्थ संबंध बन सकते हैं और आप अधिक खुश रह सकते हैं।
ख़ुद से सवाल पूछने से न डरें। ऐसा करके आप अपने दिल और दिमाग को आगे बढ़ने के लिए खोलते हैं। तो अगली बार जब किसी चीज़ को लेकर अत्यधिक आश्वस्त महसूस करें, तो थोड़ी देर रुक कर ‘हो सकता है/शायद’ वाले सवाल पूछें। और इन सवालों के जवाब आपको हैरान कर सकते हैं।
Chapter 7: Failure Is the Way Forward (असफलता ही आगे का रास्ता है)
कल्पना कीजिये की आप ऐसे समय में कॉलेज से पास आउट होते हैं जब मार्किट में नौकरियों की कमी है। आपकी सारी सेविंग्स समाप्त हो जाती है और आप बहुत परेशानी में हैं। ये थोड़ा पीड़ादायक लग सकता है लेकिन हो सकता है की ये यह शुरुआती “असफलता” आपके साथ अब तक हुई सबसे अच्छी चीज़ हो सकती है।
ऑथर का कहना है की रॉक बॉटम एक बहुत ही सॉलिड लॉन्चपैड है। चूंकि आप सबसे बुरा देख चुके हैं, इसलिए बाकी कुछ भी कठिन नहीं है। फेलियर या रॉक बॉटम पर आने से आप उन चीज़ों को अपनाने से नहीं डरते जो पहले आपको डरावनी लगती थी, जैसे अपना खुद का व्यवसाय शुरू करना, या पूरी तरह से नए रास्ते का अनुसरण करना। इन नयी चीज़ों को अपनाने से सबसे बुरा क्या हो सकता है? आप फिर रॉक बॉटम पर आ जायेंगे, लेकिन आपको रॉक बॉटम पर पहुँचने में घबराहट नहीं होगी।
लेकिन यहाँ एक समस्या है और वो ये की आप किस चीज़ को “विफलता” के रूप में देखते हैं ये पूरी तरह आप पर निर्भर है। फेलियर रिलेटिव है। जो चीज़ एक व्यक्ति को फ्लॉप लगती है वह दूसरे के लिए जीत हो सकती है। यह सब इस बात पर निर्भर करता है कि आप क्या महत्व देते हैं।
पैसा ही सब कुछ नहीं है। ऑथर को एहसास हुआ कि आजादी और काम अपने तरीके से करना पैसे से ज्यादा महत्वपूर्ण है।
जीवन को अपने अपने नियमों से जीयें। जिस नौकरी से आप नफरत करते हैं, सिर्फ इसलिए उससे समझौता न करें क्योंकि उसमें अच्छा पैसा मिलता है। अपने जुनून का पीछा करें, भले ही इसके लिए आपको कुछ समय के लिए अधिक मेहनत करनी पड़े। आपको इसका पछतावा नहीं होगा!
दोस्तों याद रखिये की असफलता अंत नहीं है, यह सीखने और बढ़ने का मौका है। अपना रास्ता खुद चुनें और अपने सपनों का पीछा करें।
फेलियर/सक्सेस पैराडॉक्स
ऑथर हमें पिकासो के उद्दाहरण के माध्यम से फेलियर/सक्सेस पैराडॉक्स को समझाते है। पिकासो casually नैपकिन पर एक डूडल बनाते हैं जो देखने में एक चित्र लग सकता है, लेकिन उस चित्र में 60 वर्षों का अभ्यास, गलतियाँ और सीख शामिल हैं। इससे हमें पता चलता है की किसी काम में महारत जादू से या ख़ुद ब ख़ुद नहीं आती, बल्कि अनगिनत छोटी छोटी असफलताओं से आती है।
हमें बचपन से हर जगह फेलियर से डरना और बचना सिखाया जाता है और सक्सेस को किसी मैजिकल लाइन की तरह दर्शाया जाता है, सफलता के रास्ते में आने वाली बाधाओं को बिलकुल नज़रअंदाज़ कर दिया जाता है। असफलता के प्रति इस डर से हम सेफ गेम कहलते हैं और अपने कम्फर्ट ज़ोन के अंदर छिपे रहते हैं जिससे हम कभी भी अपनी पूरी क्षमता तक नहीं पहुंच पाते हैं।
लेकिन अच्छी बात यह है की हम इस कम्फर्ट जोन से बहार निकल सकते हैं और इसके लिए हमें ऐसे मूल्य चुनने होंगे जो हमें आगे बढ़ने में मदद करें, जैसे सीखना या कुछ नया क्रिएट करना। और ऐसी बातोंकी परवाह न करें की दूसरे क्या सोचेंगे।
उस बच्चे की तरह सोचें जो चलना सीख रहा है। वे गिरते हैं, लड़खड़ाते हैं, लेकिन वे कोशिश करते रहते हैं। हमारे अंदर भी ऐसी ही स्पिरिट होनी चाहिए की हम ठोकर खाकर भी आगे बढ़ते रहें।
जीवन में लक्ष्य होना अच्छी बात है लेकिन मूल्य होना ज़रूरी हैं। घर खरीदना अच्छा है लेकिन इससे आप अपने लिए खुशियाँ नहीं ख़रीद सकते। ऐसे मूल्य चुनें जो आपको व्यस्त रखें, जैसे खुद को ईमानदारी से व्यक्त करना।
पिकासो की सफ़लता का राज़ यह है की वो फिनिश्ड प्रोडक्ट की जगह कुछ क्रिएट करने को ज़्यादा पसंद करते थे। वो सृजन करने से प्यार करते थे और यही वजह है की वो अनगिनत असफलताओं के बाद भी आगे बढ़ते गए।
दोस्तों, याद रखिये की फेलियर आपका दुश्मन नहीं है बल्कि आपका टीचर है। उससे डरने की जगह उसे स्वीकार कीजिये। सही मूल्य चुनें और जीवन में आगे बढ़ते रहें।
पेन प्रोसेस का एक हिस्सा है
ऑथर बताते हैं की द्वितीय विश्व युद्ध में बच गए लोगों जब एक मनोवैज्ञानिक ने रिसर्च की तो उन्होंने पाया के वो लोग अधिक मज़बूत, समझदार और ख़ुश हो गए थे, भले ही उनका पास्ट कितना भी डरावना क्यों न रहा हो। ऐसा इसलिए हुआ क्यूंकि दर्द, व्यायाम की तरह, हमें विकसित कर सकता है। हम जितना दर्द सहेंगे, उतने ही साहसी बनेंगे।
कैंसर से उबरने वाला व्यक्ति बीमारी को मात देने के बाद अजेय महसूस कर सकता है, और सैनिक कठिन परिस्थितियों में भी मजबूत रहना सीखते हैं। लेकिन अगर आप हमेशा दर्द से भागते हैं, तो आप विकास करने से चूक जाते हैं। यह व्यायाम से छिपने जैसा है क्योंकि इससे आपकी मांसपेशियों में दर्द होता है!
हम अक्सर ध्यान भटकाकर या सब कुछ ठीक होने का दिखावा करके दर्द से बचने की कोशिश करते हैं, लेकिन यह टूटी हुई हड्डी पर पट्टी बांधने जैसा है। इसके बजाय, जब आप एक बेहतर इंसान बनने की कोशिश कर रहे हों तो उस दर्द को स्वीकार करें। यह उस जलन की तरह है जिसे आप कसरत करते समय महसूस करते हैं – यह इस बात का प्रमाण है कि आप मजबूत हो रहे हैं!
डू समथिंग प्रिंसिपल
समस्या- क्या आप एक जगह अटके हुए हैं और आगे बढ़ने के लिए प्रेरित नहीं हैं ? क्या आप ज़्यादा सोचते हैं?
समाधान- बस कुछ भी, कुछ भी करना शुरू करें! एक्शन लेने से ही मोटिवेशन मिलता है।
इसे ऐसे समझें:
- मिस्टर पैकवुड की सलाह– उत्तम विचारों की प्रतीक्षा न करें, बस काम करना शुरू करें। अव्यवस्थित कार्य से भी अच्छे परिणाम मिल सकते हैं।
- अंतहीन लूप– इंस्पिरेशन → मोटिवेशन → एक्शन → रिपीट। कार्रवाई से प्रेरणा मिलती है, दूसरे तरीके से नहीं।
- 200 बेकार शब्द– 200 शब्द लिखने जैसे छोटे कदम भी प्रेरणा और गति दे सकते हैं।
फ़ायदे:
- विलंब पर काबू पाना– प्रेरणा की प्रतीक्षा करना बंद करें और छोटे-छोटे काम भी शुरू कर दें।
- असफलता को स्वीकार करना– असफलता से डरें नहीं, इसे सीखने की प्रक्रिया में एक कदम आगे बढ़ने के रूप में देखें।
- नए मूल्यों को अपनाना– छोटी शुरुआत करें, अपने नए लक्ष्यों की दिशा में कार्रवाई करें और अपने कार्यों को अपने मूल्यों को आकार देने दें।
Chapter 8: The Importance of Saying No (न कहने का महत्व)
“The Subtle Art of Not Giving a F*ck summary in Hindi” के इस चैप्टर में ऑथर हमें बताते हैं की उन्होंने ख़ुशी की तलाश में दुनिया की यात्रा करने में 5 साल बिताये। लेकिन उन्हें इससे भी ख़ुशी नहीं मिली। यूँ तो उन्होंने कई जगहों का दौरा किया और ऑनलाइन बिज़नेस भी शुरू किये लेकिन फिर भी उन्हें कुछ कमी महसूस होती रही।
फिर उन्हें एहसास हुआ की बिना सीमाओं का फ्रीडम ही सब कुछ नहीं है। यह एक बुफे की तरह है जहाँ आप जो चाहे और जितना चाहे खा सकते हैं, लेकिन फिर भी आप भूखे ही रहते हैं। अपने इस अनुभव से ऑथर ने ये conclusion निकला की आपको ऐसी चीज़ों को चुनना होगा जो वास्तव में आपके लिए ज़रूरी हैं और बाकी को “No” कहना सीखना होगा।
अपनी यात्रााओं के दौरान ऑथर रहने और बात करने के विभिन्न रूप देखे। और उन्होंने सीखा की मुश्किल परिस्थितियों में ईमानदार बने रहकर आप लोगों के बीच लोकप्रिय बन सकते हैं।
अंत में, उन्हें एहसास हुआ कि सच्ची खुशी प्रतिबद्धता से आती है, न कि केवल exploration से। इसका मतलब यह है की आपको ऐसी जगहों को चुनना होगा जो मायने रखते हैं। इसके साथ ही साथ उन्होंने यह भी सीखा की किसी adventure को करने के बजाय सार्थक संबंध बनाने से सच्ची ख़ुशी मिलती है।
ये एक सैंडविच या और कोई डिश बनाने जैसा है जिसमे आप अपने किचन में मौजूद हर किसी चीज़ को रेसिपी में उपयोग नहीं करते हैं बल्कि जो चीज़/मसाला इत्यादि उस डिश के लिए उपयोगी होता है आप सिर्फ उसी को चुनते हो और बाकी को ‘न’ कह देते हो।
दोस्तों, हमारा जीवन भी ऐसा ही है। इसलिए सिर्फ वह चुनें जो वास्तव में आपकी आत्मा को पोषण दे और बाकी को ना कह दें।
रिजेक्शन आपके जीवन को बेहतर बनाता है
ऑथर कहते हैं की जीवन में हमेशा “हाँ” कहकर रिजेक्शन को अवॉयड करना आवश्यक नहीं है। कभी कभी “न” कहना भी वास्तव में आपके लिए अच्छा होता है। इसकी कुछ वजह जो ऑथर ने बताई हैं वो इस प्रकार हैं-
- अपनी प्राथमिकताओं को चुनना– जब आप किसी चीज़ के लिए “न” कहते हैं तो आप उन चीज़ों पर फोकस कर सकते हैं जो आपके लिए वास्तव में महत्वपूर्ण हैं। जैसे कोई मज़बूत रिश्ता बनाने या किसी कौशल में महारत हासिल करने के लिए वर्षों बिताना। इससे आपके जीवन को अर्थ और उद्देश्य (पर्पस) मिलता है।
- नो पेन, नो गेन– रिजेक्शन को अवॉयड करने से डर हर चीज़ के लिए “हाँ” कह देना आसान है, लेकिन अगर आप ज़्यादा समय तक ऐसा करते रहे तो आप दिशाहीन हो सकते हैं। हर चीज़ के लिए “हाँ” कहकर आप अपने जीवन के लक्ष्य निर्धारित करने के लिए समय नहीं निकाल सकते।
- अपनी बात पर क़ायम रहना– किसी चीज़ को चुनने का एक मतलब है बाकी और चीज़ों को रिजेक्ट करना। ऐसी चीज़ें जो आपके मूल्यों से मेल नहीं खातीं, उन्हें ना कहने से जीवन अधिक खुशहाल होता है।
- रिजेक्शन दुश्मन नहीं है– ये जीवन का एक सामान्य हिस्सा है जिसे सभी लोग अनुभव करते हैं। और ये मददग़ार भी हो सकता है क्यूंकि ये आपको जीवन के उन क्षेत्रों के बारे में बताता है जहाँ आपको सुधर करने के आवश्यकता है।
- रिजेक्शन आपको मज़बूत बनाता है– “न” कहकर रिजेक्शन का सामना करना मुश्किल हो सकता है लेकिन लम्बे समय में ये आपको साहसी और अधिक आत्मविश्वासी बनाता है। रिजेक्शन आपको मज़बूत रिश्ते बनाकर ऐसा जीवन जीने में आपकी सहायता करता है जो आप जीना चाहते हैं।
तो दोस्तों, रिजेक्शन से डरे नहीं और इसे जीवन के एक मूल्यवान कौशल की तरह स्वीकार करें। ये आपको जीवन में आगे बढ़ने और ख़ुद का सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन करने में मदद कर सकता है। दोस्तों याद रखिये, कभी कभी चीज़ों के लिए “न” कहना भी ठीक है और ये लम्बे समय में आपके जीवन को बेहतर बना सकता है।
सीमाएं
ऑथर रोमियो और जूलिएट की कहानी में, हमारे समाज समाज में प्रचलित रोमांटिक आइडियल पर सवाल उठाते है और कहते हैं की सच्चा प्यार वह है जिसमे सीमाएं हों, रिस्पांसिबिलिटी हो और रिजेक्शन हो।
- अस्वस्थ बनाम स्वस्थ प्रेम– अस्वस्थ प्रेम वह है जिसमे समस्याओं से बचने के लिए एक-दूसरे का उपयोग किया जाता हो, जबकि स्वस्थ प्रेम आपसी सहयोग से व्यक्तिगत समस्याओं का समाधान करता है। स्वस्थ रिश्तों में मजबूत सीमाएँ जिम्मेदार और अच्छे व्यवहार को जन्म देती हैं।
- सीमाओं को परिभाषित करना– जब हम स्वस्थ सीमाएं निर्धारित करते हैं तो हम खुद का और अपने रिश्ते का खयाल करते हैं। हम स्वतंत्र और ज़िम्मेदार बनते हैं जिससे हमारा पार्टनर सम्मानित और सपोर्टेड महसूस करते हैं। दोनों पार्टनर्स के लिए ये एक विन-विन सिचुएशन होती है।
- ख़राब सीमाओं के उद्दाहरण– ख़राब सीमाएँ सूत के जाल में उलझने के समान हैं। आप बहुत से चीजों को नियंत्रित करने की कोशिश करते हैं, अपनी समस्याओं के लिए दूसरों को दोष देते हैं, या उनकी समस्याओं के लिए ख़ुद को ज़िम्मेदार मानते हैं। इससे यह जानना कठिन हो जाता है कि आपकी समस्या क्या है और उनकी क्या है, और यह आपके रिश्ते को गड़बड़ और निराशाजनक बना सकता है।
- हकदार रिश्ते– कुछ लोग सोचते हैं कि दूसरों को उनकी समस्याओं का समाधान तो करना ही चाहिए उनके लिए और भी सब कुछ करना चाहिए। इससे रिश्ते ख़राब हो सकते हैं। यह एक ऐसा खेल खेलने जैसा है जिसमें या तो आपको हमेशा मदद की ज़रूरत होती है (पीड़ित) या फिर आप हमेशा सबको ठीक करने की कोशिश कर रहे होते हैं (बचाने वाला)। दोनों में कोई भी तरीका स्वस्थ नहीं है।
- सच्चा प्यार और त्याग– सच्चे प्यार का मतलब है बिना किसी मजबूरी के अपना सब कुछ त्याग करने को तैयार रहना । आप अपने साथी के लिए चीजें इसलिए करते हैं क्योंकि आप ऐसा करना चाहते हैं, इसलिए नहीं कि आप बदले में कुछ पाने की उम्मीद करते हैं। सच्चे प्यार में आप अपने पार्टनर को गले इसलिए लगाते हैं क्यूंकि आप उनकी केयर करते हैं इसलिए नहीं क्यूंकि आप बदले में उनसे कुछ एक्सपेक्ट करते हैं।
- मजबूत सीमाओं का महत्व– जो लोग अपने रिश्तों में मज़बूत सीमाएँ बनाना जानते हैं, वह जानते हैं कि कोई भी व्यक्ति पूर्ण नहीं होता। वे भावनात्मक रूप से प्रभावित हुए बिना या एक-दूसरे को नियंत्रित करने की कोशिश किए बिना, एक-दूसरे को बढ़ने और समस्याओं को हल करने में मदद करने में खुश होते हैं।
- अनकंडीशनल लव– सच्चा प्यार का मतलब है अपने पार्टनर को हर हाल में खुश रखना। सच्चे प्यार में आप अपने पार्टनर को जैसा वह है, उसे उसी रूप में ही एक्सेप्ट करते हैं न की उन्हें बदल कर एक्सेप्ट करते हैं। जैसा किसी गार्डन में होता है जहाँ विभिन्न प्रकार के फूल एक दुसरे के बगल में खिल रहे होते हैं।
विश्वास कैसे बनायें
रिश्तों में ट्रस्ट यानी विश्वास सुपरग्लू का काम करता है। इसलिए ये आवश्यक है की आप कठिन से कठिन परिस्थिति में भी ईमानदार बने रहें, क्यूंकि झूठ से विश्वास टूट जाता है। जब तक आप साथ मिलकर काम करते हैं तब तक थोड़ी बहुत असहमतियाँ ठीक हैं लेकिन ये याद रखिये की जैसे कांच को टूटने के बाद जोड़ा नहीं जा सकता वैसे ही विश्वास को भी टूटने के बाद जोड़ना बहुत मुश्किल होता है।
- विश्वास, ईमानदारी और खुल कर बात करने से बनता है।
- रिश्तों में कॉनफ्लिक्ट्स सामान्य बात है, इससे आपको एक दुसरे की बेहतर समझ होती है।
- धोखा विश्वास को तोड़ देता है और इसे दोबारा बनाने के लिए बहुत मेहनत करनी पड़ती है।
- ट्रस्ट/विश्वास एक सुपरग्लू की तरह है जिसे सावधानीपूर्वक संभालना पड़ता है।
प्रतिबद्धता के माध्यम से स्वतंत्रता
ऑथर कहते हैं की “अधिक/ज़्यादा” हमेशा बेहतर नहीं होता है और ये एक ट्रैप है। जब हम अनगिनत ऑप्शन और अनुभवों के पीछा करते हैं तो ये हमें ख़ुशी देने की जगह दुःख का कारण बन सकता है। ये कुछ कुछ सुपर मार्किट में ग्रोसरी शॉपिंग जैसा है जहाँ उपलब्ध कई चीज़ों में से हमें कुछ चुनना होता है। जितने ज़्यादा ऑप्शन होंगे उतना ज़्यादा ही कन्फ्यूज़न भी होगा और हम चुनने के बाद भी अपनी चॉइस को शक की ही नज़रों से देखेंगे।
इससे अच्छा है , कम चीज़ों के लिए प्रतिबद्ध रहे और उन्हें सर्वोत्तम बनाएं। किसी एक व्यक्ति, एक जगह, एक पैशन में इन्वेस्ट करें। इससे आपको खुश रहने में मदद मिलेगी।
इसे ऐसे समझें-
- जब आपने पहली बार प्लेन में सफ़र किया होगा तो आपको बहुत अच्छा लगा होगा लेकिन जब आपने प्लेन में अपनी 50th यात्रा की होगी तो ये एक सामान्य अनुभव होगा। आप जितना ज़्यादा अनुभव करते हैं, प्रत्येक नयी चीज़ उतनी की कम प्रभावशाली होती जाती है।
- यूथ के समय नए रिश्ते बनाने का शौक़ ठीक है लेकिन जितना सुख और शांति आपको एक कमिटेड रिलेशनशिप में मिलेगा वो अन्यथा मिलना संभव नहीं है।
- एक कौशल में महारत हासिल करना एक दर्जन कौशल में महारत हासिल करने से कहीं ज़्यादा बेहतर है।
कमिटमेंट कोई पिंजरा नहीं है बल्कि ये एक लॉन्चपैड है। ध्यान भटकाने वाली चीजों को “नहीं” कहने और जो वास्तव में मायने रखता है उस पर ध्यान केंद्रित करने से, आपको निम्नलिखित लाभ मिलते है-
- अनिर्णय और FOMO से मुक्ति- जब आप ये जानते हैं कि क्या अच्छा है, तो अधिक का पीछा क्यों करना है?
- बेहतर फोकस और स्पष्ट लक्ष्य- आप अलग अलग दिशाओं में नहीं भटकते हैं, इसलिए आप जो हासिल करना चाहते हैं आसानी से हासिल कर सकते हैं।
- अच्छे अनुभव और बेहतर सम्बन्ध- आप ऐसे अच्छे सम्बन्ध बना सकते हैं जो आपको बेहतर अनुभव प्रदान करेंगे।
दोस्तों इसलिए, बुद्धिमानी से चुनें, पूरे दिल से प्रतिबद्ध हों और अपने जीवन को खिलते हुए देखें।
Chapter 9: …And Then You Die (… और अंत में सब मर जाते हैं)
ऑथर हमें बताते हैं की उनका एक मित्र था जोश, जिसकी एक्सीडेंट में मृत्यु हो जाती है। इस हादसे की वजह से ऑथर बहुत उदास रहने लगे और उन्हें लगने लगा की जीवन के कोई मायने नहीं। लेकिन फिर तभी ऑथर को मृत्यु के बारे में सोचकर ये एहसास हुआ की जीवन कितना अनमोल और क़ीमती है।
जोश की मृत्यु ने ऑथर को बहुत कुछ सिखाया और उन्होंने अपना समय बर्बाद करना छोड़ कर अपना ख्याल रखना और अपने सपनों को साकार करने के लिए मेहनत करना शुरू कर दिया। उन्होंने पढाई में खूब मेहनत की, नए दोस्त बनाये और एक गर्लफ्रेंड भी बनाई। वो डरे हुए थे लेकिन उन्होंने इस डर को ख़ुद पर हावी नहीं होने दिया।
ऑथर कहते हैं की जोश को खोना उनके जीवन में घटित सबसे बुरी घटना थी लेकिन इस घटना ने उन्हें बेहतरी के लिए बदल भी दिया। इससे उन्हें पता चला की जीवन बहुत छोटा है इसलिए हमें इसे अपने दोनों हाथों से पकड़ना चाहिए। मृत्यु डरावनी है, लेकिन यह अपने जीवन को पूरी तरह से जीने की याद भी दिलाती है।
ख़ुद से आगे कुछ
ऑथर कहते हैं की सिर्फ मनुष्य ही ऐसा प्राणी है जो अपने भविष्य या पिछली गलितयों पर चिंता कर सकता और ये हमें यूनिक बनाती है। इतना ही नहीं हम अपने और मृत्यु के बारे में भी सोच सकते हैं और ये डरावना हो सकता है।
बेकर जो की एक प्रोफेसर है कहते हैं की ये डर हमें ऐसी चीज़ें बनाने के लिए प्रेरित करता है जो हमारी मृत्यु के बाद भी जीवित रहती हैं। मनुष्य शहर बनाते हैं, किताबें/ब्लॉग लिखते हैं, परिवार का पालन पोषण करते हैं और ये सभी एक “कॉन्सेप्चुअल सेल्फ” को छोड़ने के ऐसे तरीक़े हैं जो हमारे जाने के बाद भी जीवित रहते हैं। ये हमारे “Immortality Projects” हैं।
लेकिन कभी कभी ये प्रोजेक्ट्स ध्वस्त भी हो जाते हैं। लड़ाइयाँ या अन्य त्रासदियों की वजह से हमारी बनायीं हुई कोई भी चीज़ कभी भी नष्ट/ख़राब/ध्वस्त हो सकती है। इस सब से हमारा अर्थ ख़त्म हो जाता है और के प्रकार की मानसिक बीमारी को जन्म देता है। ऐसे समय में मौत का भय, जिसे “डेथ टेरर” भी कहाँ जाता है हमें सताने लगता है।
बेकर का सन्देश ये है की अपने प्रोजेक्ट्स, अपने मूल्यों, अपने अर्थ पर सवाल उठाने से दरें। मृत्यु एक ऐसा कड़वा सच है जिसे स्वीकार करके हम झूठे लक्ष्यों का पीछा करने से बच जाते हैं। मृत्यु के सच को स्वीकार करके हम बेहतर वैल्यूज बना सकते हैं और भय मुक्त जीवन जी सकते हैं।
मौत का सुखद पहलू
एक बार लेखक केप ऑफ़ गुड होप (जिसे कभी दुनिया का सबसे दक्षिणी बिंदु माना जाता था) पर खड़े होकर मृत्यु के डर और मृत्यु का सामना करने के अनुभव के बारे में बताते हैं। ऑथर एक चट्टान के किनारे पर पहुंचते हैं, जहाँ समुद्र और आकाश की विशालता एक मनमोहक दृश्य बनाती हैं। यह जगह अपने तूफानों और चुनातियों के लिए जाना जाता है, जो खोई हुई आशाओं का प्रतीक है।
उनके मन में तरह तरह के विचार आते हैं जिनमे से एक पुर्तगाली कहावत भी है जिसका अर्थ है जीवन के अंत तक पहुंचना। किनारे पर खड़े होकर वो जीवन की संभावनाओं और अनिश्चितताओं के बारे में सोचते हैं।
मनुष्य जब किसी ऐसी जगह पहुँचता है तो तो डर और खतरनाक स्तिथि से बचने के लिए उसका मन और मस्तिष्क वापस लौटने के लिए कहता है लेकिन ऑथर अपने अंदर के इस डर से लड़ाई लड़के आगे बढे। उनके मन में अभी भी तरह तरह के विचार थे और वो सोच रहे थे की जीवन की अनिश्चितता के बीच अपनी चॉइस की वजह से ही हम महान बनते हैं। और यह महानता सार्थक मूल्यों, किसी बड़ी चीज़ में योगदान देने और नश्वरता को स्वीकार करने से आती है।
ऑथर कहते हैं की नश्वरता को अपनाने से हमारा जीवन के प्रति दृष्टिकोण बदल जाता है और हम एक अधिक सार्थक जीवन जी सकते हैं। यही सब सोचते हुए ऑथर केप ऑफ़ गुड होप से नीचे उतर जाते हैं तथा अपने जीवन के लिए ईश्वर का आभार प्रकट करते हैं।
Conclusion (निष्कर्ष)
तो दोस्तों, ये थी The Subtle Art of Not Giving a F*ck Summary in Hindi
दोस्तों, ये बुक हमारे सामने जीवन जीने का एक नया दृष्टिकोण रखती है। अपनी क्षणभंगुर इच्छा का पीछा करने के बजाय, बुक के ऑथर मार्क मनसन हमसे उन मूल्यों को बनाये रखने का आग्रह करते हैं जो वास्तव में मायने रखते हैं, जिनकी मदद से हम जीवन की परेशानियों और मुश्किलों का सामना कर सकते हैं। इतना ही नहीं ऑथर हमसे अपनी ऊर्जा को वजह केंद्रित करने की भी सलाह देते हैं जहाँ वह वास्तव में मायने रखती है।
इस बुक से हम असुविधा को एक सीढ़ी के रूप देखना सीखते हैं, बाधा के रूप में नहीं और ऐसी चीज़ों को f*ck it कहना सीखते हैं जो हमारे ध्यान के लायक नहीं हैं। ऐसा करके हम एक ऐसा जीवन बनाते हैं जिससे हम संतुष्टि के साथ जी सकते हैं।
दोस्तों, आपको ये बुक समरी कैसी लगी हमें comment करके अवश्य बताएं और इस समरी को अपने फॅमिली और फ्रेंड्स के साथ अवश्य शेयर करें।
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FAQs (अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न)
What is the subtle art of not giving af short summary?
Life throws you crap, but you don’t have to eat it all. Stop chasing empty desires and approval. Choose meaningful values that matter even when things get tough. Embrace life’s struggles and learn from your mistakes. Don’t sweat the small stuff, say “fck it” to what doesn’t deserve your energy, and find purpose in the face of adversity. By letting go of the fcks that don’t matter, you can live a more authentic, fulfilling, and “f*ck yeah” kind of life.
What is the important lesson on the subtle art of not giving af?
The “subtle art of not giving a f*ck” is a multifaceted concept with several important lessons, but the core message boils down to one thing: choosing what truly matters and letting go of the rest.
What is Chapter 1 The Subtle Art of Not Giving about?
Chapter 1 of “The Subtle Art of Not Giving a F*ck” by Mark Manson is titled “Don’t Try”. The chapter’s main message is that trying too hard to be happy, positive, or successful can actually be counterproductive.
What are the five values in the subtle art of not giving af?
Mark Manson doesn’t explicitly outline five specific values in “The Subtle Art of Not Giving a F*ck,” but he does encourage a shift in mindset that emphasizes choosing meaningful values over fleeting desires and societal expectations. Here are some key principles that can be considered “values” in his approach:
1. Responsibility: Taking ownership of your choices, actions, and emotions, even the messy ones. Accepting that life throws curveballs and learning from your mistakes.
2. Uncertainty: Embracing the inherent uncertainty of life and letting go of the need for complete control. Cultivating a sense of comfort with the unknown and a willingness to adapt.
3. Failure: Viewing failure as a natural part of the learning process and an opportunity for growth. Not letting fear of failure hold you back from pursuing your goals.
4. Rejection: Accepting that not everyone will like you or agree with you, and that’s okay. Learning to say “no” and setting healthy boundaries.
5. Contemplating Mortality: Recognizing that life is finite and using that awareness to prioritize what truly matters. Focusing on living a meaningful and fulfilling life in the present moment.
These principles represent a move away from traditional values like success, pleasure, and popularity. Instead, Manson encourages readers to value things that are within their control, bring them genuine fulfillment, and help them navigate the inevitable challenges of life.
Who is the writer of the subtle art of not giving?
The author of “The Subtle Art of Not Giving a F*ck” is Mark Manson.
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