Introduction- Zero To One Book Summary in Hindi (परिचय)
हेलो दोस्तों, स्वागत है आपका Zero To One Book Summary in Hindi में ।
दोस्तों, जीरो टू वन पीटर थिएल द्वारा लिखित एक बहुत ही इंटरेस्टिंग बुक है जो पारम्परिक तरीकों को चुनौती देती है और एन्त्रेप्रेंयूर्शिप और इनोवेशन पर एक नया पर्सपेक्टिव हमारे सामने रखती है। पीटर खुद एक इंटरप्रेन्योर और वेंचर कैपिटलिस्ट हैं और वह पे पाल के सह संस्थापक होने के साथ साथ फेसबुक के सबसे पहले निवेशकों में से एक हैं। वह कहते हैं की प्रगति और वैल्यू क्रिएशन तब तक हासिल नहीं किया जा सकता जब तक के हम मौजूदा मॉडल्स के नक़ल करते रहेंगे या उनमे इंक्रीमेंटल सुधार करेंगे। वैल्यू क्रिएशन के लिए हमें कुछ नया बनाना होगा और इसी को वह जीरो टू वन कहते हैं।
थिएल ऐसी स्ट्रेटेजीज और प्रिंसिपल्स शेयर करते हैं जिससे के एंट्रेप्रेन्योर्स और स्टार्ट-अप्स मौजूदा मार्किट में तहलका मचा सकते हैं। और ऐसा करने के लिए वह ओरिजिनल थिंकिंग, सवाल पूछने और अप्रयुक्त अवसरों की पहचान करने को आवश्यक मानते हैं।
ऑथर पीटर थिएल के विचार स्टार्टअप की दुनिया में काफी प्रभावशाली माने जाते हैं और इन पर काफी बहस और चर्चा होती रहती है। आगे आने वाले सेक्शंस में, हम बुक में दी गयी मुख्य और महत्वपूर्ण बातों के बारे में जानेंगे, और साथ ही ऑथर के विचारों का विस्तार से विश्लेषण करेंगे।
The Challenge of the Future (भविष्य की चुनौती)
ऑथर कहते हैं की भविष्य में प्रगति २ प्रकार से होती है- हॉरिजॉन्टल और वर्टीकल। हॉरिजॉन्टल प्रगति मौजूदा मॉडल्स की नक़ल करके हासिल की जा सकती है और वर्टीकल प्रगति कुछ नया बनाकर हासिल की जा सकती है।
हॉरिजॉन्टल प्रगति जिसे ग्लोबलाइजेशन भी कहा जाता है, चीन एक बेहतरीन उदहारण है जिसने विकसित देशों के सक्सेसफुल मॉडल्स को अडॉप्ट किया। लेकिन ये ध्यान रखना आवश्यक है की टेक्नोलॉजी की प्रगति के बिना ग्लोबलाइजेशन ज़्यादा समय तक नहीं टिक सकता।
वहीँ दूसरी ओर वर्टीकल प्रगति टेक्नोलॉजी द्वारा होती है और इसमें पर्यावरणीय चुनौतियों का समाधान करने और अधिक समृद्ध भविष्य बनाने की क्षमता होती है। लेकिन टेक्नोलॉजिकल सफलता भी अथक प्रयास और इनोवेटिव सोच के बिना संभव नहीं है।
ऑथर का मानना है की तकनीकी प्रगति को बढ़ावा देने में स्टार्टअप महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं क्यूंकि उनका छोटा आकार उन्हें पारमपरिक सोच से आगे बढ़कर सोचने में सहायक होता है।
इस बुक में ऑथर ने ऐसी ही स्ट्रेटेजीज और माइंडसेट के बारे में बात की है जो स्टार्टअप के सफल होने के लिए आवश्यक हैं। बुक पारम्परिक सोच से आगे बढ़कर सोचने और व्यवसाय को नयी नयी तकनीकों की मदद से वैल्यू क्रिएशन करने के बारे में सिखाती है।
Party Like It’s 1999 (विश्लेषण)
ऑथर हमें बताते हैं की 1990 के आख़िर का समय इंटरनेट के लिए काफी उत्साह और आशावाद का समय था। हर जगह नयी कम्पनियाँ उभर रही थीं और निवेशक उनमे पैसा लगाने को उत्सुक थे। तीव्र विकास और निवेश की इस अवधि को डॉट-कॉम बबल के रूप में जाना जाता है।
हालाँकि, डॉट-कॉम बबल और बबल्स की तरह अस्थिर था। कई नई कंपनियाँ लाभदायक नहीं थीं और उनका मूल्यांकन अवास्तविक उम्मीदों पर आधारित था। 2000 में बुलबुला फूट गया और कई कंपनियाँ दिवालिया हो गईं।
डॉट-कॉम बुलबुले के नकारात्मक परिणामों के बावजूद, कुछ महत्वपूर्ण सबक भी सीखे गए। सबसे महत्वपूर्ण सबक में से एक यह था कि एक सॉलिड बिज़नेस प्लान बनाना और प्रोफिटेबिलिटी पर ध्यान केंद्रित करना ज़रूरी है। कंपनियों ने अनुकूलनशील होने और आवश्यकतानुसार अपनी रणनीतियों को बदलने के इच्छुक होने के महत्व को भी सीखा।
ऑथर का कहना है कि बोल्ड और इनोवेटिव होना ज़रूरी है, भले ही इसके लिए जोखिम उठाना पड़े। उनका यह भी कहना है कि प्लान होना भी ज़रूरी है, लेकिन प्लान ऐसा होना चाहिए जिसमे फ्लेक्सिबिलिटी हो और ज़रुरत पड़ने पर बदलाव किया जा सके।
ऑथर एंट्रेप्रेन्योर्स को पारंपरिक ज्ञान को चुनौती देने और अपने बारे में सोचने के लिए प्रोत्साहित करते हैं क्यूंकि वह मानते हैं कि इनोवेटिव और सफल कंपनियां बनाने का यही एकमात्र तरीका है।
All Happy Companies Are Different (सभी कंपनियाँ अलग-अलग हैं)
कम्पटीशन से बचना: स्थाई सफ़लता मार्ग
ऑथर कहते हैं की बिज़नेस में अक्सर ऐसा होता है की सफ़लता की तलाश में कम्पनियाँ ऐसी रास्ते पर चली जाती हैं जहाँ उन्हें बहुत ज़्यादा कम्पटीशन का सामना करना पड़ता है जिससे की उन्हें मार्किट शेयर और कस्टमर लॉयल्टी के लिए मारामारी में शामिल होना पड़ता है। और इस सबका परिणाम यह होता है की अपने प्रदर्शन को बेहतर करने और प्रोबीटाब्लिटी बनाये रखने के लिए इन कंपनियों को नैतिक समझौते भी करने पड़ते है और यही उनके आगे बढ़ने की संभावनाओं में बाधा का काम करते हैं।
इस कट थ्रोट कम्पटीशन से बचने का एकमात्र तरीक़ा है मार्किट में अपनी एक यूनिक पोजीशन या मोनोपोली बनाना। मोनोपोली बनाकर कोई भी कंपनी कम्पटीशन से बचकर अपना ध्यान अपने कस्टमर्स के लिए वैल्यू क्रिएट करने में लगा सकते हैं।
मोनोपॉली क्यों ज़रूरी है
वैसे तो मोनोपॉली को कंस्यूमर्स के लिए हानिकारक माना जाता है लेकिन सच्चाई ये है की इससे इनोवेशन को बढ़ावा मिलता है। ऐसा कहा जाता है की मोनोपॉली वाली कम्पनियाँ अपने एकाधिकार का फ़ायदा उठाकर और बिना प्रतिस्पर्धा के डर के अत्यधिक लाभ कमाने के लिए प्रयासरत रहती हैं। लेकिन वास्तविकता यह है की जिस डायनामिक दुनिया में हम रहते हैं, वहां एकाधिकार को कंस्यूमर्स के लिए कुछ नया करने और नए वैल्यू क्रिएशन के लिए प्रोत्साहित किया जाता है, जैसे Apple के iPhone ने किया।
सरकारें एकाधिकार के संभावित लाभों को पहचानती हैं, यही कारण है कि वे नए आविष्कारों की सुरक्षा के लिए पेटेंट प्रदान करती हैं। ये अस्थायी एकाधिकार कंपनियों को रिसर्च और डेवलपमेंट में अपने निवेश की भरपाई करने में मदद करते हैं, जिससे आगे नवाचार को बढ़ावा मिलता है।
परफेक्ट कम्पटीशन का मिसकन्सेप्शन
अर्थशास्त्रियों की नज़र में परफेक्ट कम्पटीशन का वातावरण आदर्श होता है जहाँ कई समान कंपनियां बिना किसी एंट्री बैरियर के एक दूसरे के साथ प्रतिस्पर्धा करती हैं। लेकिन ये ध्यान रखना ज़रूरी है ऐसा परफेक्ट कम्पटीशन वास्तविक दुनिया में संभव नहीं है क्यूंकि आजकल हर कंपनी इस बात को समझती है और इसलिए वो खुद को अपने कम्पटीशन से अलग करके और एक यूनिक वैल्यू प्रोपोज़िशन बनाकर मार्किट में सर्वाइव करती हैं।
वास्तव में, प्रत्येक सफल व्यवसाय कुछ हद तक मोनोपॉली है, क्योंकि इसमें एक विशिष्ट लाभ होता है जो इसे अपने प्रतिस्पर्धियों से अलग करता है। यह लाभ प्रोप्राइटरी टेक्नोलॉजी, यूनिक ब्रांड आइडेंटिटी या बेहतर कस्टमर एक्सपीरियंस हो सकता है।
मोनोपॉली का रास्ता
मोनोपॉली बनाने के लिए कंपनियों को यह समझना होगा के कम्पटीशन अंतिम लक्ष्य नहीं है। इसके बजाये उन्हें अपने कस्टमर्स की किसी यूनिक समस्या को पहचान करके उसका समाधान ढूंढने पर ध्या देना चाहिए और एक ऐसा प्रोडक्ट या सर्विस बनाना चाहिए जो मार्किट में उपलब्ध अन्य विकल्पों से अलग हो।
उद्यमियों को अपने बाज़ारों को बहुत संकीर्ण रूप से परिभाषित करने के जाल से बचना चाहिए, क्योंकि इससे उनके प्रतिस्पर्धी लाभ का अधिक आकलन हो सकता है। इसके बजाय, उन्हें एक व्यापक परिप्रेक्ष्य अपनाना चाहिए, यह पहचानते हुए कि उनके असली प्रतिस्पर्धी उनकी कथित उद्योग सीमाओं के बाहर हो सकते हैं।
नैतिक आयाम
मोनोपॉलिज, कम्पटीशन के दबाव से मुक्त होती हैं इसलिए वो नैतिकता के दायरे में रहकर दीर्घकालिक परिणामों के बारे में सोच सकते हैं। गूगल का motto: “Don’t be evil,” उदाहरण देता है कि कैसे एक एकाधिकार अपनी सफलता को खतरे में डाले बिना नैतिक विचारों को प्राथमिकता दे सकता है।
दूसरी ओर, कम्पटीशन में फंसे बिज़नेस अक्सर शार्ट टर्म फायदों के लिए क्रूर रणनीतियों और अनैतिक शॉर्टकट का सहारा लेते हैं। अपने सर्वाइवल के लिए उनका संघर्ष इतना गहरा होता है की वह अक्सर अपने एम्प्लाइज की अनदेखी करते हैं तथा पर्यावरण या अन्य सामाजिक चिनताओं पर भी ध्यान नहीं दे पाते हैं।
The Ideology of Competition (प्रतिस्पर्धा की विचारधारा)
प्रतियोगिता: एक व्यापक विचारधारा
वैसे तो आमतौर पर ये माना जाता है की कम्पटीशन यानी प्रतिस्पर्धा प्रगति और सफ़लता के लिए आवश्यक है, लेकिन बुक के ऑथर पीटर थिएल का मानना है अत्यधिक प्रतिस्पर्धा हानिकारक भी हो सकती है।
शिक्षा में प्रतिस्पर्धा
ऑथर शिक्षण प्रणाली का उदहारण देते हुए कहते हैं की बचपन से ही एक्साम्स और टेस्ट के माध्यम से हमारे अंदर कम्पटीशन की विचारधारा को कूट कूट कर भरा जाता है। लेकिन इसका असर यह होता है की हमारे अंदर की क्रिएटिविटी समाप्त हो जाती है और हम सिर्फ एक्साम्स में अच्छे मार्क्स लाने के लिए ही पढ़ते हैं और कुछ नया करने या एक्सपेरिमेंट करने से डरते हैं क्यूंकि हमारे मस्तिष्क में ये बात भर दी जाती है ऐसी कोई भी चीज़ जो एक्साम्स में अच्छे मार्क्स न दिलाये वो किसी काम की नहीं है।
थिएल की सफलता की राह
थिएल की व्यक्तिगत यात्रा इस बात पर प्रकाश डालती है कि सफलता हमेशा अंतिम प्रतियोगिता जीतने से नहीं मिलती है। कभी-कभी, अपरंपरागत रास्ते अपनाने और भयंकर प्रतिद्वंद्विता से बचने से अप्रत्याशित अवसर मिल सकते हैं।
व्यवसाय में प्रतिस्पर्धा: एक विनाशकारी शक्ति
जबकि व्यापार की तुलना अक्सर युद्ध से की जाती है, थिएल का तर्क है कि प्रतिस्पर्धा, व्यापार नहीं, युद्ध की विनाशकारी प्रकृति से मिलती जुलती है। प्रतिद्वंद्विता कंपनियों को उनके वास्तविक लक्ष्यों से भटका सकती है और अवसर चूक सकती है।
मार्क्स बनाम शेक्सपियर: संघर्षों को समझना
थिएल संघर्षों को समझने के लिए दो मॉडल पेश करते है: मार्क्स का मॉडल, और शेक्सपियर का मॉडल। मार्क्स और शेक्सपियर संघर्ष पर विपरीत दृष्टिकोण प्रस्तुत करते हैं। मार्क्स सुझाव देते हैं कि मतभेद संघर्ष को जन्म देते हैं, जबकि शेक्सपियर अनावश्यक प्रतिद्वंद्विता में संलग्न समान पार्टियों बेतुका मानते हैं। लेखक शेक्सपियर के मॉडल को व्यावसायिक प्रतिस्पर्धा पर अधिक उपयोगी मानते हैं, जहां कंपनियां अक्सर इनोवेशन और वैल्यू क्रिएशन पर ध्यान केंद्रित करने के बजाय अपने प्रतिद्वंद्वियों को हराने के प्रति जुनूनी हो जाती हैं।
ऑथर ने माइक्रोसॉफ्ट और गूगल के बीच प्रतिद्वंद्विता की तुलना रोमियो और जूलियट में मोंटेग्यूज़ और कैपुलेट्स से की है। ये दोनों प्रतिद्वंद्वि काफी ताक़तवर थे लेकिन एक दुसरे के प्रति गहरी प्रतिस्पर्धा करने के चक्कर में दोनों ही कई अवसर चूक गए और दोनों को काफ़ी नुक्सान भी उठाना पड़ा।
प्रतिस्पर्धा के नुकसान
प्रतिस्पर्धा मौलिकता के बजाय नकल को बढ़ावा देती है, जिससे कंपनियां ऐसे बाजारों की ओर अग्रसर हो सकती हैं जिनके लिए वे लड़ने लायक नहीं हैं। इसके परिणामस्वरूप बड़े पैमाने पर नुकसान हो सकता है और अवसर चूक सकते हैं। अपने प्रतिस्पर्धियों से आगे निकलने की चाहत में अंधी हो चुकी कंपनियाँ बड़ी तस्वीर को नज़रअंदाज़ कर देती हैं और अंततः अस्थिर उद्यमों पर संसाधनों को बर्बाद कर देती हैं।
विलय बनाम लड़ाई: रणनीतिक निर्णय
तीव्र प्रतिस्पर्धी परिदृश्यों में, विनाशकारी लड़ाई में शामिल होने की तुलना में प्रतिद्वंद्वी के साथ विलय एक बेहतर विकल्प हो सकता है। X.com और PayPal के साथ थिएल का अनुभव इस रणनीति का उदाहरण है।
कब लड़ना है: तर्कसंगत निर्णय लेना
प्रतिस्पर्धी से अगर लड़ना आवश्यक है, तो इसे निर्णायक रूप से किया जाना चाहिए, लेकिन गर्व और सम्मान को तर्कसंगत निर्णय लेने पर हावी नहीं होना चाहिए।
Last Mover Advantage (अंतिम प्रस्तावक लाभ)
फ्यूचर कॅश फ़्लो की वैल्यू
“लास्ट मूवर एडवांटेज” कांसेप्ट के अनुसार किसी भी बिज़नस को लॉन्ग टर्म स्टेबिलिटी पर ध्यान देना चाहिए। किसी कंपनी की असल वैल्यू यह है की वो फ्यूचर में भी लगातार कॅश फ्लो को बनाये रखे न की सिर्फ शार्ट टर्म में प्रॉफिट दे।
ट्विटर बनाम द न्यूयॉर्क टाइम्स: ए टेल ऑफ़ टू वैल्यूएशंस
ऑथर अपनी बात को स्पष्ट करने के लिए ट्विटर और द न्यूयॉर्क टाइम्स का उदाहरण देते हैं और बताते हैं की ट्विटर अपने आईपीओ के समय लाभदायक नहीं था, लेकिन इसका मूल्य एक लाभदायक कंपनी द न्यूयॉर्क टाइम्स से काफी अधिक था। ऐसा इसलिए है क्योंकि निवेशकों ने ट्विटर की लॉन्ग टर्म ग्रोथ की क्षमता और भविष्य में मॉनोपोली प्रॉफ़िट्स पर कब्जा करने की क्षमता को पहचाना, जबकि द न्यूयॉर्क टाइम्स जैसे पारंपरिक समाचार पत्रों को घटती पाठक संख्या और बढ़ती प्रतिस्पर्धा का सामना करना पड़ा।
व्यावसायिक मूल्य को परिभाषित करना
ऑथर कहते हैं की किसी बिज़नेस की असली वैल्यू भविष्य में अर्जित होने वाले पैसे से होता है। लेकिन इस मूल्यांकन में भविष्य के नकदी प्रवाह में छूट को भी ध्यान क्यूंकि भविष्य में अर्जित पैसे की वैल्यू उतनी नहीं होगी जितनी के आज है।
लो ग्रोथ बनाम हाई ग्रोथ बिज़नेस
ऑथर कहते हैं की लो ग्रोथ वाले व्यवसाय जैसे की न्यूज़पेपर्स, अपनी ज़्यादातर वैल्यू नियर टर्म कॅश फ़्लो से प्राप्त करते हैं। उनक बिज़नेस मॉडल वर्तमान में लगातार रेवेन्यू उत्पन्न करने पर आधारित होता है, लेकिन उनकी भविष्य की संभावनाएं सीमित होती हैं।
वहीँ दूसरी ओर, हाई ग्रोथ स्टार्टअप, ख़ास तौर से टेक्नोलॉजी कम्पनियाँ, अक्सर शुरआत में नुक्सान उठती हैं क्यूंकि वे अपने प्रोडक्ट्स और कस्टमर बेस बनाने में निवेश करते हैं। उनकी असल वैल्यू भविष्य के 10 से 15 सालों में पता चलती है जब वो पर्याप्त कॅश फ़्लो हासिल कर लेते हैं। पेपाल और लिंकडिन जैसी कम्पनियाँ इसका बेहतरीन उदहारण हैं।
शार्ट टर्म के नुकसान
ऑथर कहते हैं की कई एंट्रेप्रेन्योर्स शार्ट टर्म ग्रोथ पर ध्यान देते हैं क्यूंकि इन्हे मापना आसान होता है। लेकिन ऐसा करने से बिज़नेस के स्थायित्व को खतरे में डालने वाली लॉन्ग टर्म चुनैतियों की अनदेखी हो सकती है। ऑथर ज़िंगा और ग्रुपन जैसी कंपनियों का उदहारण देते हुए बताते हैं की इन दोनों कंपनियों ने शुरूआती दौर में तेज़ी से विकास किया लेकिन उन्हें उस विकास को बनाये रखने और अपने कस्टमर्स को बनाये रखने में कठिनायों का सामना भी करना पड़ा।
दीर्घकालिक स्थिरता को प्राथमिकता देना
ऑथर कहते हैं की हर एक बिज़नेस को यह प्रश्न अवश्य पूछना चाहिए की वो अब से एक दशक बाद भी अस्तित्व में होंगे या नहीं। इसके लिए उन्हें व्यवसाय की विशेषताओं, बदलती बाजार की स्थिति के अनुकूल होने की क्षमता और लॉन्ग टर्म इनोवेशन की क्षमता का मूल्यांकन करना चाहिए।
You Are Not A Lottery Ticket (आप कोई लॉटरी टिकट नहीं हैं)
सफलता भाग्य के कारण है या कौशल के कारण?
ऑथर कहते हैं की इस बात पर काफी बहस होती है की किसी को सफ़लता उनके भाग्य की वजह से मिलती है या फिर उनके कौशल की वजह से। मैल्कम ग्लैडवेल, वॉरेन बफेट, जेफ बेजोस और बिल गेट्स जैसे लोगों के बीच भी इस बात को लेकर मतभेद है। इनमे से कुछ का मानना है की ज़्यादातर मामलों में सफ़लता भाग्य की वजह से मिलती है।
सीरियल एंट्रेप्रेन्योर्स और कौशल की भूमिका
जो लोग यह मानते हैं की सफ़लता पूरी तरह से भाग्य पर निर्भर करती है, उन्हें स्टीव जॉब्स, जैक डोरसे और एलोन मस्क जैसे एन्त्रेप्रेंयूर्स ने गलत साबित किया है। ये लोग भाग्य के कारण सफ़ल न होकर अपने कौशल की वजह से सफ़ल हुए हैं।
सफलता का सब्जेक्टिव नेचर
ऑथर कहते हैं की scientifically ये निर्धारित कर पाना की सफ़लता भाग्य या कौशल की वजह से मिलती है, संभव नहीं है क्यूंकि सफ़लता सब्जेक्टिव होती है। हर कंपनी की परिस्थिति यूनिक होती है और उन परिस्थितियों को एनालाइज करने के लिए दोहराया नहीं जा सकता है।
सफ़लता के लिए कई अलग अलग पैमाने हैं जैसे वित्तीय प्रदर्शन, मार्किट इम्पैक्ट, इनोवेशन और सामाजिक प्रभाव इत्यादि। इन सभी पहलुओं को मापना और निष्पक्ष रूप से तुलना कर पाना अक्सर मुश्किल होता है जिससे इस डिबेट को सुलझा पाना संभव नहीं होता।
भाग्य की विकसित होती धारणाएँ: निपुणता से निष्क्रियता तक
भाग्य के प्रति दृष्टिकोण पीढ़ी दर पीढ़ी विकसित हुआ है। पुरानी पीढ़ियाँ अक्सर कड़ी मेहनत और दृढ़ संकल्प के माध्यम से भाग्य पर काबू पाने और उसे नियंत्रित करने में विश्वास रखती थीं। वे भाग्य को एक ऐसी चीज़ के रूप में देखते थे जो उनके कर्मो और चॉइस से प्रभावित हो सकती है। इसके विपरीत, आधुनिक दृष्टिकोण भाग्य को भी आवश्यक मानते हैं और साथ ही साथ यह भी मानते हैं की परिणामों को लिए अप्रत्याशित ताकतें भी भूमिका निभाती हैं।
भविष्य पर दो विरोधाभासी दृष्टिकोण
भविष्य को लेकर आमतौर पर दो विपरीत दृष्टिकोण हैं जो लोगों के जीवन और काम को प्रभावित करते हैं:
- निश्चित भविष्य: इस पर्सपेक्टिव के अनुसार भविष्य एक निश्चित इकाई है जिसे योजना, कड़ी मेहनत और रणनीतिक कार्रवाई के माध्यम से आकार दिया जा सकता है। इस मानसिकता वाले व्यक्तियों का मानना है कि वे अपने भाग्य पर नियंत्रण रख सकते हैं और अपने लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए सक्रिय रूप से काम कर सकते हैं।
- अनिश्चित भविष्य: इस पर्सपेक्टिव के अनुसार भविष्य अनिश्चित है जिसे अप्रत्याशित ताक़तें कण्ट्रोल करती हैं। इस मानसिकता वाले व्यक्ति ज़्यादा अडाप्टेबल होते हैं और अप्रत्याशित अवसरों के लिए तैयार रहते हैं और परिस्थितियों के अनुसार अपनी योजनाओं को बदलने के लिए भी तैयार रहते हैं।
भविष्य पर चार दृष्टिकोण: आशावाद और निराशावाद
ऑथर ने भविष्य के बारे में सोचने चार अलग-अलग तरीक़ों के बारे में बताया है। इन तरीकों से पता चलता है की भविष्य के बारे में किसी के दृष्टिकोण का उनके जीवन जीने और योजनाएँ बनाने के तरीक़े पर कैसे असर डालता है। आइये एक नज़र डालते हैं इन विभिन्न दृष्टिकोणों पर-
- अनिश्चितकालीन निराशावाद– यह दृष्टिकोण भविष्य को अनिश्चित और निराशा से भरा हुआ मानता है। इस दृष्टिकोण को रखने वाले लोग मानते हैं की भविष्य अप्रत्याशित है और इसके नकारात्मक होने की सम्भावना ज़्यादा है। ऐसे लोग हमेशा समस्याओं और चुनातियों पर अपना ध्यान केंद्रित रखते हैं।
- निश्चित निराशावाद– यह दृष्टिकोण कहता है की भविष्य पहले ही निर्धारित हो चुका है और यह नकारात्मक ही होगा। इस दृष्टिकोण को रखने वाले लोग मानते हैं की उनके पास अपनी परिस्तिथि को बदलने के लिए आवश्यक शक्ति नहीं है और भाग्यवादी रवैया अपनाते हैं।
- निश्चित आशावाद– यह दृष्टिकोण बेहतर भविष्य बनाने के लिए योजना, कड़ी मेहनत और प्रगति में विश्वास करता है। इस दृष्टिकोण वाले लोगों को विश्वास है कि वे मेहनत करके और अच्छी योजना से अपने भाग्य को आकार दे सकते हैं। वे इस विश्वास से प्रेरित होते हैं कि प्रगति हासिल की जा सकती है और भविष्य में सकारात्मक संभावनाएं हैं।
- अनिश्चितकालीन आशावाद– यह दृष्टिकोण बिना किस अच्छी योजनाओं के बेहतर भविष्य की अपेक्षा करता है। इस दृष्टिकोण वाले लोग भविष्य के बारे में आशावादी हैं लेकिन साथ ही साथ वे ये भी मानते हैं की विस्तृत योजना आवश्यक नहीं है। वे फ्लेक्सिबल और अडाप्टेबल बने रहना पसंद करते हैं, अवसर आने पर उन्हें इनकैश करते हैं।
विभिन्न क्षेत्रों पर अनिश्चित सोच का प्रभाव
ऑथर कहते हैं की अनिश्चित सोच, फाइनेंस, पॉलिटिक्स, फिलोसॉफी, जीवन और बायोटेक्नोलॉजी जैसे विभिन्न क्षेत्रों में पाई जाती है।
- अनिश्चित फाइनेंस– ऑथर मानते हैं की फाइनेंस इंडस्ट्री अनिश्चित सोच का बेहतरीन उदहारण है जिसमे लोग बिना किसी लॉन्ग टर्म करियर प्लानिंग के बैंकिंग और लॉ जैसे क्षेत्रों में करियर बनाते हैं। इससे ये पता चलता है की लोग खुद को किसी करियर के प्रति समर्पित करने के बजाये शार्ट टर्म बेनिफिट्स के बारे में ज़्यादा सोचते हैं। इसके अलावा, फाइनेंस इंडस्ट्री रिस्क को कम करने के लिए डायवर्सिफिकेशन जैसी रणनितियों पर अत्यधिक निर्भर करती हैं। यह दृष्टिकोण मार्किट की रैंडमनेस और निश्चितता के साथ भविष्य के परिणामों की भविष्यवाणी करने की वजह से बनता है।
- अनिश्चित राजनीति– आधुनिक राजनीति में अक्सर दूरदर्शी, लॉन्ग टर्म सोच की जगह वर्तमान के जनमत को प्राथमिकता दी जाती है क्यूंकि वर्तमान का जनमत राज-नेताओं को सत्ता में बने रहने सहायक होता है। इस दृष्टिकोण की वजह से राजनेता समाज की चुनातियों का समाधान नहीं कर पाते हैं और सिर्फ रिएक्टिव पॉलिसी मेकिंग ही करते रहते हैं।
- अनिश्चित फिलॉसॉफी– ऑथर कहते हैं की राइट विंग और लेफ्ट विंग दोनों राजनितिक दर्शनों ने भविष्य के लिए विज़न रखने की बजाये प्रक्रियाओं पर अपना ध्यान केंद्रित किया है। यह प्रवृत्ति भव्य वैचारिक आख्यानों से हटकर व्यावहारिक दृष्टिकोण की प्राथमिकता को दर्शाती है जो लचीलेपन और अनुकूलनशीलता पर जोर देती है। हालाँकि, प्रक्रियाओं पर अधिक जोर देने से स्पष्ट लक्ष्यों की कमी हो सकती है और मूल सिद्धांत कमजोर हो सकते हैं।
- अनिश्चित जीवन– समाज मृत्यु को अपरिहार्य मानता है जिसे मानव जीवन को बढ़ाने और बेहतर बनाने के प्रयासों से ध्यान हटा है। जीवन के संदर्भ में अनिश्चित सोच मृत्यु की अनिवार्यता की स्वीकृति और इसकी अप्रत्याशित प्रकृति में विश्वास के रूप में प्रकट होती है। यह परिप्रेक्ष्य लॉन्ग टर्म गोल्स को फॉलो करने के जगह वर्तमान में जीने और जीवन का आनंद लेने को ज़रूरी मानता है।
- अनिश्चित बायोटेक्नोलॉजी– बायोटेक स्टार्टअप मानव जीव विज्ञान के सिद्धांतों को बेहतर बनाने की जगह ट्रायल एंड एरर पर ज़्यादा ध्यान देते हैं जो, ऑथर के अनुसार अनिश्चित सोच का ही एक उदहारण है। यह दृष्टिकोण वृद्धिशील प्रगति की ओर ले जा सकता है लेकिन अभूतपूर्व खोजों में बाधा उत्पन्न कर सकता है जिनके लिए अधिक केंद्रित और प्रतिबद्ध दृष्टिकोण की आवश्यकता होती है।
Follow The Money (पैसे का अनुगमन करो)
यह चैप्टर इस बात पर ज़ोर देता है की पैसा मल्टीप्लाई हो सकता है और exponentially ग्रो कर सकता है। कंपाउंड इंटरेस्ट की ताक़त किसी से छुपी नहीं है और अल्बर्ट आइंस्टीन ने भी इसे दुनिया का आठवाँ अजूबा कहा था। चैप्टर में यह भी बताया गया है की बहुत कम लोग इस बात को समझते हैं इसलिए दुनिया के 2% लोग दुनिया की 80% वेल्थ के मालिक हैं।
वेंचर कैपिटल में पावर ऑफ़ लॉ अप्लाई होता है और इसी वजह से बहुत कम कम्पनीज को एक्सपोनेंशियल ग्रोथ मिलती है जबकि ज़्यादातर कम्पनीज फेल हो जाती हैं। इससे हमें 2 बातें पता चलती हैं-
- वेंचर रिटर्न पावर ऑफ़ लॉ का पालन करता है: वेंचर रिटर्न नार्मल डिस्ट्रीब्यूशन का पालन नहीं करता; बहुत कम कंपनियाँ अधिकांश रिटर्न प्राप्त करती हैं।
- निवेश नियम: व्यापक रूप से निवेश में विविधता लाने के बजाय, संपूर्ण फंड का मूल्य लौटाने की क्षमता वाली कंपनियों पर ध्यान केंद्रित करें।
इन्वेस्टर्स को ऐसी कंपनियों की पहचान करनी चाहिए जिनके अंदर exponential ग्रोथ का पोटेंशियल हो और उनमे निवेश करना चाहिए। वेंचर इन्वेस्टिंग कोई लाटरी नहीं है बल्कि हाई इम्पैक्ट बिज़नेस की पहचान करके उसमे पैसा लगाना है।
लोग लॉ ऑफ़ पावर को क्यों चूकते हैं?
बहुत से उद्दमी सहित कई अन्य लोग, पावर ऑफ़ लॉ को पहचाने में सफल नहीं हो पाते हैं क्यूंकि इसे सामने आने लगता है। शुरूआत में, सभी कम्पनियाँ एक जैसी ही दिखाई देती हैं और उनकी असल सच्चाई कुछ समय बाद ही सामने आती है।
निवेशक अपना अधिकांश समय कंपनियों के प्रारंभिक चरण के साथ बिताते हैं, और उन्हें थोड़ी बहुत ही सफ़लता मिल पाती है। इन्वेस्टर्स सुधार की उम्मीद के साथ संघर्षरत कंपनियों के साथ अटके रहते हैं।
लॉ ऑफ़ पावर का प्रभाव
ला ऑफ़ पावर का वितरण इतना व्यापक है कि उन पर अक्सर ध्यान ही नहीं जाता। उद्यम पूंजी निवेश (Venture capital investments) वैसे तो सकल घरेलू उत्पाद (GDP) का एक छोटा सा हिस्सा है, लेकिन इसका अर्थव्यवस्था पर प्रतिकूल प्रभाव डालता है।
पावर लॉ सभी के लिए प्रासंगिक है क्योंकि हर कोई एक निवेशक है। उद्यमी स्टार्टअप्स में समय निवेश करते हैं, और करियर विकल्प किसी के भविष्य में निवेश होते हैं।
पावर लॉ के इम्प्लिकेशन्स
पावर लॉ डायवर्सिफिकेशन के विचार को चुनौती देता है। जो निवेशक इसे समझते हैं वे तेजी से सफलता की संभावना वाले प्रयासों पर ध्यान केंद्रित करते हैं।
पारंपरिक शिक्षा और पारंपरिक ज्ञान डायवर्सिफिकेशन को ज़रूरी मानते हैं लेकिन साथ ही साथ ये ऐसे क्षेत्रोँ की पहचान करने से चूक जाते हैं जहाँ बेहतर भविष्य की संभावनाएं छुपी हैं।
स्टार्टअप की दुनिया में, पावर लॉ को समझने से लोग अपना उद्यम शुरू करने के बजाय तेजी से बढ़ती कंपनियों में शामिल हो सकते हैं।
Secrets (सीक्रेट्स)
इस चैप्टर में ऑथर ने सीक्रेट्स के महत्व पर चर्चा की है और साथ ही साथ यह भी बताया है की कैसे वे जीवन और व्यवसाय के विभिन्न पहलुओं में कैसे मूल्यवान हो सकते हैं।
सीक्रेट्स का इतिहास
ऑथर कहते हैं की कई चीज़ें जिनपर हम ज़्यादा ध्यान नहीं देते वह कबि सीक्रेट हुआ करती थी, जैसे की पाइथागोरस थेओरम, जो ट्रायंगल की तीनो भुजाओं के बीच एक मैथमेटिकल सम्बन्ध है जो एक समय तक ऐसा सीक्रेट था जिससे बहुत कम लोग ही जानते थे। और फिर पाइथागोरस तथा कई अन्य वैज्ञानिकों ने इस रहस्य को उजागर करने के लिए कड़ी मेहनत की, और फिर ये एक सामान्य ज्ञान बन गया। इससे ये साबित होता है की रहस्यों को उजागर करने की क्षमता प्रगति के लिए महत्वपूर्ण है।
विरोधाभासी प्रश्न
ऑथर कहते हैं की हमें अपने आप से ये सवाल पूछना चाहिए की कौन सा महत्वपूर्ण सत्य है जिस पर बहुत कम लोग मुझसे सहमत हैं।
ऑथर के अनुसार यह प्रश्न महत्वपूर्ण है क्योंकि यह हमें अलग ढंग से सोचने और यथास्थिति को चुनौती देने में मदद करता है। साथ ही साथ यह हमें नए और नवीन विचारों को खोजने के लिए भी प्रोत्साहित करता है।
उद्दाहरण के लिए अगर हर कोई मानता है कि पृथ्वी चपटी है। लेकिन क्या होगा अगर आप मानते हैं कि पृथ्वी गोल है?
अगर आप अपने आप से विरोधाभासी प्रश्न पूछते हैं, तो आप यह सोचने पर मजबूर हो जाएंगे कि क्यों बाकी सभी गलत हैं और आप सही हैं। इससे आपको अपनी बात को सिद्ध करने लिए नए सबूत मिल सकते हैं कि पृथ्वी गोल है, और अन्य लोगों को अपना मन बदलने के लिए राजी कर सकते हैं।
विरोधाभासी प्रश्न नवाचार और प्रगति के लिए एक शक्तिशाली उपकरण है। यह हमें दुनिया को नए तरीकों से देखने और पारंपरिक ज्ञान को चुनौती देने में मदद कर सकता है। यदि हम दुनिया में बदलाव लाना चाहते हैं, तो नियमित आधार पर अपने आप से यह प्रश्न पूछना महत्वपूर्ण है।
लोग सीक्रेट को खोजना क्यों बंद कर देते हैं?
लोग सीक्रेट की तलाश इस वजह से नहीं करते क्यूंकि वो रिस्क लेने से डरते हैं, चीज़ें जैसी चल रही है वो उससे संतुष्ट हैं और ये मानते हैं की नया सीखने के लिए कुछ भी नहीं है।
इस बात को समझने के लिए ऑथर ने कुछ पॉइंटर्स दिए हैं जो इस प्रकार हैं-
- वृद्धिवाद: लोग अक्सर बड़ी सफलताओं की तलाश के बजाय छोटे, क्रमिक परिवर्तन करने पर ध्यान केंद्रित करते हैं।
- जोखिम से बचना: लोग अक्सर जोखिम लेने से डरते हैं, खासकर जब नए और अपरंपरागत विचारों को आजमाने की बात आती है।
- शालीनता: लोग नई चुनौतियों और अवसरों की तलाश करने के बजाय, यथास्थिति से संतुष्ट हो सकते हैं।
- “सपाट” दुनिया में विश्वास: लोगों का मानना हो सकता है कि खोजने के लिए और कोई रहस्य नहीं है, और सब कुछ पहले से ही ज्ञात है।
ऑथर का मानना है कि रहस्यों की तलाश जारी रखना महत्वपूर्ण है, भले ही यह कठिन और चुनौतीपूर्ण हो क्यूंकि रहस्य इनोवेशन, प्रगति और एक बेहतर दुनिया की ओर ले जा सकते हैं।
रहस्यों पर विश्वास न करने के परिणाम
जब कोई कंपनी सीक्रेट्स पर विश्वास करना बंद कर देती है, तो वह अपनी प्रतिस्पर्धात्मक बढ़त खो सकती है और उसका पतन हो सकता है। ऑथर कहते हैं की हेवलेट-पैकर्ड इसका एक उदहारण है जो एक समय इनोवेशन में अग्रणी थी लेकिन उसने नयी तकनीक में इन्वेस्ट करना बंद कर किया और अपने रास्ते से भटक गयी और अपनी कॉम्पिटीटिव एज को खो दिया। इससे उनकी मार्किट वैल्यू में गिरावट आयी और उन्होंने कस्टमर्स भी खो दिए।
इससे हमें ये पता चलता है की जो कंपनी नए सीक्रेट्स ढूंढने की कोशिश नहीं करती, वो पीछे छूट जाती है।
रहस्य का मामला
सीक्रेट्स इसलिए ज़रूरी हैं क्यूंकि ये हमें अपने आसपास की दुनिया को समझने और बेहतर निर्णय लेने में हमारी मदद कर सकते हैं। नेचर के रहस्य हमें नयी तकनीक विकसित करने और अपने जीवन को बेहतर बनाने में हमारी मदद कर सकते हैं। मानव व्यवहार के सीक्रेट्स हमें बेहतर रिश्ते बनाने और एक बेहतर समाज के निर्माण में हमारी मदद कर सकते हैं।
ऑथर कहते हैं की लोग अक्सर मानव व्यवहार के सीक्रेटस की ताक़त को समझ नहीं पाते और उन्हें काम करके आंकते हैं। वो कहते हैं की कम्पनियाँ ह्यूमन साइकोलॉजी को समझ कर बेहतर मार्केटिंग कैंपेन बना सकती हैं। गवर्नमेंट मानव व्यव्हार के सीक्रेट्स को समझकर ज़्यादा प्रभावी सामाजिक कार्यक्रम बना सकती हैं।
सीक्रेट कैसे ढूंढें
ऑथर कहते हैं की सीक्रेट को ढूंढने के लिए आउट ऑफ़ द बॉक्स सोच विकसित करनी पड़ेगी। इसका मतलब है, उन जगहों पर देखना जहाँ देखने के बारे में कोई और नहीं सोचता। यह तभी संभव है जब विचार खुले होंगे और हम यथास्थिति पर सवाल उठाएंगे। हमें अनऑर्थोडोक्स क्षेत्रों या उद्योगों का भी पता लगाना होगा क्यूंकि इनसे अक्सर मूल्यवान सीक्रेट मिल सकते हैं।
इसका मतलब है क्रिएटिव बनना और नए आइडियाज ढूंढना तथा जोखिम लेने और नई चीज़ों को आज़माने के लिए तैयार रहना।
सीक्रेट का क्या करें
जब आपको सीक्रेट मिल जाए तब आपको सावधान रहना होगा और सोच समझ कर ही उससे किसी के साथ शेयर करना चाहिए। ऑथर कहते हैं की सारे सीक्रेट्स ऐसे नहीं होते जिन्हें किसी के साथ भी शेयर किया जा सके। बिज़नेस में ख़ासतौर पर इस बात का ध्यान रखना चाहिए की सीक्रेट को सीक्रेट ही रखें। क्यूंकि सीक्रेट के बेसिस पर किसी कंपनी का निर्माण करना एक अच्छी रणनीति हो सकती है।
चूंकि सीक्रेट का सीधा कनेक्शन आपकी कॉम्पिटिटिव एडवांटेज से होता है और एक कंपनी के तौर पर आप किसी के साथ भी ये सीक्रेट शेयर करना नहीं चाहेंगे।
Foundations (कंपनी की नींव)
इस चैप्टर में ऑथर पीटर थिएल कहते की कुछ सही निर्णय कंपनी की शुरुआत में लेने बहुत ज़रूरी होते हैं क्यूंकि ये निर्णय ऐसे होते हैं जिन्हे बाद में सुधारा नहीं जा सकता और इनका कंपनी की लॉन्ग टर्म सक्सेस पर असर पड़ता है।
फॉउन्डिंग मॅट्रिमोनी
ऑथर कहते हैं की को-फाउंडर्स को चुनना विवाह करने जैसा होता है। जैसे सफ़ल शादी के लिए दो ऐसे लोगों की ज़रुरत होती है जो कम्पेटिबल हों और जिनके पास अपने फ्यूचर को लेकर एक जैसे प्लान्स हों ठीक इसी तरह किसी भी सफ़ल स्टार्ट-अप के लिए दो या दो से अधिक संस्थापकों की आवश्यकता होती है जो संगत हों और जिनके पास कंपनी के लिए साझा दृष्टिकोण हो।
ऑन द बस और ऑफ द बस
ऑथर का कहना है की कंपनी में शामिल सभी लोगों को लॉन्ग टर्म सफ़लता के लिए कमिटेड रहना चाहिए। इसका मतलब है कंपनी के गोल्स और वैल्यूज के साथ aligned रहना और वहां तक पहुँचने के लिए आवश्यक काम करना। वह कहते हैं की पार्ट टाइम एम्प्लाइज, रिमोट वर्कर्स और कंसलटेंट कमपनी के लॉन्ग टर्म गोल्स के साथ aligned नहीं होते हैं। इसकी वजह यह है की ये लोग और भी कंपनियों के साथ काम कर रहे होते होते हैं और किसी कंपनी के साथ बहुत थोड़े टाइम के लिए जुड़े होते हैं।
ऑथर का मानना है कि किसी को कंपनी में शामिल करने का निर्णय binary होना चाहिए अर्थात या तो वो कंपनी के लिए पूरी तरह से प्रतिबद्ध हो या फिर नहीं हो। इसका मतलब है की फाउंडर्स को सिर्फ ऐसे लोगों को शामिल करना चाहिए जो लम्बे समय तक कंपनी के साथ रह सकें।
कैश ही सब कुछ नहीं है
ऑथर पीटर थिएल का किसी भी स्टार्ट-आप के शुरुआत में उसके सीईओ को ज़्यादा सैलरी नहीं मिलनी चाहिए। ऐसा इसलिए है की उच्च वेतन सीईओ को स्टेटस क्वो का बचाव करने में मदद करता है जिससे वो नयी वैल्यू क्रिएट करने पर ध्यान नहीं देते। इतना ही नहीं सीईओ का कम वेतन कंपनी के अन्य सभी एम्प्लाइज के लिए मानक तय करता है और उन्हें कंपनी के मिशन के लिए प्रतिबद्ध रहने के लिए प्रोत्साहित करता है।
वह कहते हैं की कैश कंपनसेशन कर्मचारियों को कंपनी की दीर्घकालिक सफलता के लिए प्रतिबद्ध होने के लिए प्रेरित करने का सबसे अच्छा तरीका नहीं है। उनका मानना है की इक्विटी या कंपनी में ओनरशिप, कर्मचारियों को नए मूल्य बनाने के लिए प्रोत्साहित करने का एक बेहतर तरीका है।
चैप्टर में आगे बताया गया है की इक्विटी को अलॉट करते समय सावधानी बरतनी चाहिए, क्यूंकि सभी को सामान शेयर देना फेयर नहीं है और अगर सबको अलग अलग अमाउंट अलॉट किये जाए तो इससे भी नाराजगी हो सकती है। इसका उपाय यह की इक्विटी डिटेल्स को प्राइवेट रखा जाए क्यूंकि निष्पक्षता बनाये रखना चुनौतीपूर्ण हो सकता है।
Conclusion (निष्कर्ष)
तो दोस्तों, ये थी “Zero To One Book Summary in Hindi“
इस बुक को एंटरप्रेन्योर बनने की चाह रखने व्यक्ति को अवश्य पढ़ना चाहिए। बुक में ऑथर थिएल सह-संस्थापकों को चुनने, एक दृष्टिकोण बनाने और नवाचार की संस्कृति का निर्माण करने के बारे में आवश्यक बातें बताते हैं। साथ ही साथ वह कर्मचारियों को प्रेरित करने में संरेखण और समानता के महत्व पर भी जोर देते हैं।
थिएल का मुख्य संदेश यह है कि स्टार्टअप को मौजूदा उत्पादों और सेवाओं पर प्रतिस्पर्धा करने के बजाय नए मूल्य बनाने पर ध्यान केंद्रित करने की आवश्यकता है। उनका मानना है कि सबसे सफल कंपनियां वे हैं जो शून्य से शुरू होती हैं और एक तक काम करती हैं।
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पोस्ट तो पूरा पढ़ने के लिए धन्यवाद।
FAQs (अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न)
Zero to One Book किसे पढ़नी चाहिए?
“Zero to One” बुक को उन लोगों के लिए अधिक उपयोगी मानी जाती है जो नए उद्यमी हैं, खुद के बिजनेस को शुरू करने की सोच रहे हैं या उन्होंने बिजनेस शुरू कर दिया है और उसे आगे बढ़ाना चाहते हैं। यह उन लोगों के लिए भी उपयोगी हो सकती है जो नए उत्पादों या सेवाओं का निर्माण करना चाहते हैं जो बाजार में पहले से मौजूद नहीं हैं। इस बुक में प्रस्तुत की गई विचारधारा उन लोगों के लिए अधिक महत्वपूर्ण है जो अपने बिजनेस के लिए नए और यूनिक दृष्टिकोण का उपयोग करना चाहते हैं।
Zero to One Book के लेखक कौन है?
पीटर थिएल
पुस्तक जीरो टू वन का सारांश क्या है?
“जीरो टू वन: नोट्स ऑन स्टार्टअप्स, ऑर हाउ टू बिल्ड द फ्यूचर” पीटर थिएल द्वारा लिखी गई एक उद्यमिता परामर्श बुक है। यह बुक ऑथर के पर्सनल एक्सपेरिएंसेस पर आधारित है, जिन्होंने कई सफल स्टार्टअप्स में निवेश किया है, जिसमें PayPal, Palantir Technologies, और SpaceX शामिल हैं।
बुक का मुख्य विषय यह है कि दुनिया में मूल्य (value) बनाने के लिए, हमें “जीरो टू वन” सोचने की आवश्यकता है। इसका मतलब है कि हमें ऐसे उत्पादों या सेवाओं का आविष्कार करना चाहिए जो पहले से मौजूद न हों।
What have you learned from the book zero to one?
The book “Zero to One” by Peter Thiel emphasizes the importance of innovation and creating a unique product or service, as well as the benefits of building a monopoly rather than competing in an existing market.
क्या यह जीरो टू वन पढ़ने लायक है?
जी हाँ, जीरो टू वन पढ़ने लायक किताब है। यह किताब उन लोगों के लिए उपयोगी हो सकती है जो उद्यमिता और नवाचार के क्षेत्र में अपना करियर बनाना चाहते हैं। इसके अलावा, व्यापार विश्लेषक और व्यावसायिक उद्यमियों के लिए भी यह किताब उपयोगी हो सकती है जो उद्योग के नए और नवाचारी तरीकों के बारे में जानना चाहते हैं।
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